महाराष्ट्र में हिन्दी विरोध

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संपादकीय { गहरी खोज }: महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी कमजोर होती पकड़ व कमजोर होते राजनीतिक आधार को मजबूत करने के लिए ठाकरे बन्धु उद्धव व राज ठाकरे हिन्दी विरोध के नाम पर एकजुट हो गए हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कुछ कार्यकर्ताओं ने हिन्दी भाषाई लोगों से मारपीट भी की है। इसकी प्रतिक्रिया में उत्तराखंड से भाजपा सांसद निशीकांत दुबे ने ठाकरे बन्धुओं को चुनौती दी है कि मुंबई से बाहर निकल बिहार आएं फिर उन को स्थिति का पता चलेगा। निशीकांत के बयान के बाद महाराष्ट्र में शिवसैनिक व महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के लोग सड़कों पर उतर आये हैं।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने हिन्दी भाषा को स्कूलों में पहली स्तर से अनिवार्य पढ़ाने वाला अपना आदेश वापिस ले लिया था उसके बाद ठाकरे बन्धुओं ने अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए वीं में एक विजय रैली का आयोजन किया था, उसको संबोधित करते हुए उद्धव ने आगामी नगर निकाय चुनाव साथ मिलकर लड़ने का संकेत दिया। यहां के एनएससीआई डोम में आयोजित रैली में भारी भीड़ की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उन्होंने कहा कि हम एकजुट रहने के लिए एक साथ आए हैं। हम एक साथ मिलकर मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और महाराष्ट्र में सत्ता हासिल करेंगे। मुंबई के प्रतिष्ठित नगर निकाय को शिवसेना अपना गढ़ और गृह क्षेत्र मानती है तथा अन्य नगर निकाय चुनाव आगामी महीनों में होने वाले हैं। उद्धव से पहले रैली को संबोधित करते हुए राज ने चुटकी ली और कहा कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने दोनों चचेरे भाइयों को एक साथ लाकर वह काम कर दिया है जो शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे और अन्य लोग नहीं कर सके। चचेरे भाई के साथ मतभेदों के कारण शिवसेना छोड़ने के बाद राज ठाकरे ने वर्ष 2005 में मनसे का गठन किया और इसे भूमिपुत्रों के हितों के सच्चे हिमायती के रूप में पेश किया। राज ठाकरे ने आशंका जताई कि भाषा विवाद के बाद सरकार का राजनीति में अगला कदम लोगों को जाति के आधार पर बांटना होगा। उन्होंने आरोप लगाया किया कि भाजपा की चाल फूट डालो और राज करो की है। विपक्ष ने राज ठाकरे पर बेटे को ‘कॉन्वेंट में शिक्षा’ दिलाने को लेकर कटाक्ष किया है। इसे खारिज करते हुए मनसे अध्यक्ष ने कहा कि दक्षिण भारत में कई नेता और फिल्मी सितारे अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े हैं, लेकिन उन्हें तमिल और तेलुगु भाषाओं पर गर्व है। उद्धव ने कहा कि वे सरकार को लोगों पर हिन्दी थोपने नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि किसी को भी मराठी और महाराष्ट्र पर बुरी नजर नहीं डालनी चाहिए। उद्धव ने कहा कि हमारी ताकत हमारी एकता में होनी चाहिए। जब भी कोई संकट आता है तो हम एकजुट हो जाते हैं और उसके बाद हम फिर आपस में लड़ने लगते हैं। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा द्वारा गढ़ा गया नारा ‘बंटेगे तो कटेंगे’ हिंदुओं और मुसलमानों को बांटने के लिए था। उद्धव ने दावा किया कि हकीकत में, भाजपा ने इसका इस्तेमाल महाराष्ट्रवासियों को विभाजित करने के लिए किया। उन्होंने भाजपा को ‘राजनीति में व्यापारी’ करार दिया। उन्होंने कहा कि अगर अपनी भाषा के लिए लड़ना गुंडागिरी है तो हां हम हैं। मनसे अध्यक्ष ने अपने भाषण की शुरुआत में कहा कि राज्य सरकार द्वारा लागू किया गया त्रिभाषा फार्मूला, मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की उनकी योजना की शुरुआत है। उन्होंने कहा कि सरकार को प्रस्तावित विरोध मार्च के मद्देनजर ही विवादास्पद जीआर वापस लेना पड़ा। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि अपने-अपने स्थानों पर हम अपनी-अपनी भाषा में बात करते हैं। उन्होंने कहा प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही लेनी चाहिए, इसका सभी आग्रह भी करते हैं। आंबेकर चार से छह जुलाई तक संघ की आयोजित हुई अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक के संबंध में संवाददाताओं को संबोधित कर रहे थे।
संघ अनुसार सभी भारतीय भाषाएं राष्ट्रीय हैं, हां प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए। यह देश का दुर्भाग्य है कि स्वतंत्रता मिलने के बाद भी हम अंग्रेजों की नीति ‘बांटो और राज करो’ पर ही राजनीतिक दल विशेषतया क्षेत्रीय दल इस नीति को अपनाकर अपना राजनीतिक खेल खेल रहे हैं। तमिलनाडु और कर्नाटक के बाद अब महाराष्ट्र में ठाकरे बंधु भाषा को आधार बनाकर अपने कमजोर होते राजनीतिक आधार को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। भाषाई आधार पर बने प्रदेशों ने भारतीय राजनीति में भाषा और क्षेत्रवाद को बढ़ावा दिया। इसी कारण कुछ प्रदेशों में हिन्दी का विरोध केवल और केवल राजनीतिक देने लाभ-हानि को देखते हुए ही किया जा रहा है।
हिन्दी के सिवा देश में और कोई भी भाषा नहीं हो जो संपर्क भाषा का कार्य कर सके। अंग्रेजी को प्राथमिकता देने वाले भूल रहे हैं कि अंग्रेजी हिन्दी का विकल्प नहीं बन सकती। हिन्दी सनातन संस्कृति व धरोहर को समेटे हुए है। अंग्रेजी का हमारी विरासत व संस्कृति के साथ कोई मेल नहीं है। देश में 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी बोल या समझ सकते हैं। ऐसे में हिन्दी का विरोध एक घटिया राजनीति ही माना जाएगा। हिन्दी विरोध न ही महाराष्ट्र के हित है न ही राष्ट्र के हित में है। ठाकरे बन्धु राजनीतिक लाभ हेतु ही हिन्दी का विरोध कर रहे हैं। महाराष्ट्र में ठाकरे बंधुओं से पहले देश के कई अन्य प्रदेशों में हिन्दी का विरोध किया गया था और आज भी वहां हिन्दी का विरोध जारी है। भाषा के नाम पर समाज को बांटने वाले यह भूल रहे हैं कि हमारी गुलामी का मुख्य कारण भाषा और जाति के नाम पर समाज का विभाजित होना ही था। हिन्दी भाषा तो देश को जोड़ने का काम कर रही है। भाषा होती ही इंसान को इंसान के साथ जोड़ने के लिए। अपनी नकारात्मक सोच और स्वार्थसिद्धि के लिए आज भाषा को विवाद का विषय बनाया जा रहा है। यह विवाद देशहित में नहीं है। महाराष्ट्र सरकार ने अपना आदेश वापस ले लिया है। अब विवाद भी समाप्त होना चाहिए।

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