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संपादकीय { गहरी खोज }:मनुष्य को ज्ञान का तृतीय नेत्र प्रदान कर विवेकशील बनाना, उसमें अच्छे-बुरे की पहचान उत्पन्न करना, कायदे-कानून की समझ प्रदान करना और संस्कार व सुरुचि का बीज बोना ताकि वह इस संघर्षमय जीवन को मर्यादित ढंग से जी सके। मुख्य रूप से शिक्षा का यही लक्ष्य है। हमारे यहां तो यह कहावत मशहूर है कि विद्या विहीन मनुष्य पशु समान ही है।
पशु-पक्षियों तथा इंसान में विवेक के अंतर के कारण ही मनुष्य दुनिया में परमात्मा की सर्वोत्तम कृति मानी जाती है। मानव में विवेक को तराशने का काम शिक्षा ही करती है। सो शिक्षा का मानव जीवन में विशेष महत्व है। मानव समाज की इकाई है और समाज प्रदेश व देश की इकाई है। इसलिए शिक्षा मानव को तराशने के साथ-साथ प्रदेश व देश के भविष्य को भी संवारने व तराशने का काम करती है।
शिक्षा मंत्रालय द्वारा कराये गए राष्ट्रीय सर्वेक्षण में जो तथ्य सामने आये हैं वह सबके लिए चिंताजनक हैं। समग्र विकास के लिए ज्ञान का प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा और विश्लेषण (परख) राष्ट्रीय सर्वेक्षण, जिसे पहले राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एनएएस) के रूप में जाना जाता था, पिछले साल चार दिसंबर को आयोजित किया गया था। इस सर्वेक्षण में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 781 जिलों के 74,229 स्कूलों में कक्षा तीन, छह और नौ के सरकारी और निजी दोनों स्कूलों के 21,15,022 छात्रों को शामिल किया गया था। सर्वेक्षण में कहा गया कि तीनों कक्षाओं के 21,15,022 बच्चों का मूल्यांकन किया गया और 2,70,424 शिक्षकों और स्कूल का नेतृत्व करने वालों ने प्रश्नावली के माध्यम से जवाब दिया। रिपोर्ट के अनुसार, कक्षा तीन के केवल 55 फीसद विद्यार्थी ही 99 तक की संख्याओं को आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित कर सकते हैं, जबकि 58 प्रतिशत विद्यार्थी दो अंकों की संख्याओं का जोड़ और घटाव कर सकते हैं। कक्षा छह में केवल 53 प्रतिशत छात्र अंकगणितीय संक्रियाओं और उनके बीच संबंधों को समझ और देख सकते हैं, कम से कम 10 तक जोड़ और गुणन की सारणी जानते हैं और दैनिक जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए पूर्ण संख्याओं पर चार बुनियादी संक्रियाएं लागू करते हैं। कक्षा छह में भाषा और गणित के साथ-साथ एक अतिरिक्त विषय ‘हमारे आस-पास की दुनिया’ शुरू किया गया था, जिसमें पर्यावरण और समाज शामिल है। विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय स्तर पर गणित में सबसे कम अंक (46 फीसद) प्राप्त किए, जबकि भाषा में औसतन 57 फीसद और हमारे आस-पास की दुनिया में 49 फीसद अंक प्राप्त किए। शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, ऐसे उदाहरण जहां 50 प्रतिशत से कम छात्र सही उत्तर देने में सक्षम थे, सीखने की प्रक्रिया में बाधा को दर्शाते हैं। कक्षा नौ में केंद्र सरकार के स्कूलों के विद्यार्थियों ने सभी विषयों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, भाषा में स्पष्ट बढ़त हासिल की। निजी स्कूलों ने विज्ञान और सामाजिक विज्ञान में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन गणित में कम अंक प्राप्त किए। राज्य सरकार और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों में भी इसी तरह के परिणाम दर्ज किये गए। ग्रामीण-शहरी विभाजन भी काफी हद तक देखा गया। ग्रामीण क्षेत्रों में कक्षा तीन के छात्रों ने गणित और भाषा दोनों में बेहतर प्रदर्शन किया, जबकि शहरी क्षेत्रों में कक्षा छह और नौ के बच्चों ने सभी विषयों में अपने ग्रामीण समकक्षों से बेहतर प्रदर्शन किया। स्कूल शिक्षा सचिव संजय कुमार ने रिपोर्ट में कहा कि मूल्यांकन से आगे बढ़कर, इस पहल का अगला चरण व्यवस्थित कार्रवाई को सक्षम करने पर केंद्रित है। इसे सुविधाजनक बनाने के लिए परख राष्ट्रीय सर्वेक्षण-2024 के निष्कर्षों को सार्थक कार्य में बदलने के लिए एक व्यापक बहु-स्तरीय रणनीति की योजना बनाई गई है।
सर्वेक्षण में पंजाबियों के लिए राहत भरा समाचार यह है कि पंजाब के स्कूल अन्य प्रदेशों से शिक्षा के मामले में बेहतर हैं और पहले 20 स्कूलों की सूची में आते हैं। शिक्षा के मामले में प्रदेश व देश स्तर पर बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। विशेषतया सरकारी स्कूलों को लेकर जहां अधिकतर स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी है। देश का कल तो आज के छात्रों के हाथ में ही है। अगर वह शिक्षित नहीं होंगे या उनकी बुनियाद ही कमजोर होगी तो देश का भविष्य कैसे उज्ज्वल होगा। शिक्षा को लेकर उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हमें चिंता व चिंतन करने की आवश्यकता है।

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