आज से कांवड़िए उठाएंगे कांवड़, जानिए क्या है इसका महत्व

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धर्म { गहरी खोज } : आज 11 जुलाई से सावन के आरंभ होते ही कांवड़ यात्रा का भी शुभारंभ हो गया है। शिव भक्त अपने कंधे पर गंगाजल भर तक मीलों तक पैदल जल भगवान शिव को जलाभिषेक करेंगे। जानकारी दे दें कि सावन माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि आज तड़के 02.06 बजे की लग गई है। शिवभक्त बोलबम का जयकारा लगाते हुए आज से कांवड़ यात्रा निकालेंगे।

कब तक चलेगी कावंड़ यात्रा?
11 जुलाई से शुरू हुआ यह कावंड़ यात्रा 23 जुलाई तक चलेगी यानी कांवड़ यात्रा का समापन 23 जुलाई को होगा, जबकि सावन माह का समापन 9 अगस्त दिन शनिवार को होगा।

किसे माना जाता है पहला कांवड़िया?
पौराणिक कथा की मानें तो जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से 14 कीमती रत्न निकले, पहला रत्न जो निकला वह था खतरनाक विष हलाहल, इस विष के बाहर आते ही संसार में प्रलय मच गया। कोई भी देव-दानव इसे लेकर क्या करे असमंजस में था। इसके बाद सभी के कहने पर भगवान शिव आगे आए और उस विष को पी लिया। विष बहुत खतरनाक था इसलिए उन्होंने उसे अपने कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया, इसीलिए वह नीलकंठ कहलाए। चूंकि विष का असर काफी घातक था तो महादेव के शरीर में तेज जलन और दर्द होने लगा। देवताओं ने यह देख तुरंत उन्हें इससे मुक्ति दिलाने के लिए पवित्र नदियों का शीतल जल से अभिषेक करना शुरू कर दिया। इसके बाद उनके शरीर का जलन शांत हुआ। तभी से जलाभिषेक किया जाने लगा। मान्यता है कि हर साल सावन में उस विष का प्रभाव महादेव के शरीर पर होता है, इस कारण इस माह में जलाभिषेक आदि का अधिक महत्व है।

बता दें कि भगवान शिव का परम भक्त रावण पहला कांवड़िया था, रावण ने अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए सावन माह में ही गंगाजल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। इसके बाद से यह प्रथा आज भी बरकरार है। इसके बाद भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद दिया था।

क्या है इसका महत्व?
माना जाता है कि कांवड़ यात्रा करने से भगवान शिव बेहद प्रसन्न होते हैं। अपने भक्त से प्रसन्न हो वे उसे भय, रोग, शोक और दरिद्रता से मुक्ति दिलाते हैं। गंगाजल से अभिषेक कराना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। इस यात्रा से भक्त के सभी पापों का नाश होता है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। कांवड़ियों को भगवान शिव का परम भक्त माना जाता है।

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