जस्टिस वर्मा को हटाएंः जांच समिति रिपोर्ट

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संपादकीय { गहरी खोज }: 14 मार्च की रात जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास के स्टोर में लगी आग को बुझाने के प्रयासों में वहां बड़ी मात्रा में जले नोट मिले थे। नकदी मिलने के मामले को तीन जजों की समिति को जांच के आदेश दिये थे। तीन जजों की समिति ने जांच के बाद पाया कि कदाचार साबित होता है। जस्टिस वर्मा पद पर बने रहने के लायक नहीं हैं। उन पर आरोप गंभीर हैं और पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत है। तीन मई को आई यह रिपोर्ट लीक हो गई है।
इस रिपोर्ट के आधार पर ही तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) संजीव खन्ना ने भी महाभियोग चलाने की अनुशंसा की थी। यह गोपनीय रिपोर्ट व जस्टिस वर्मा का जवाब आठ मई को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा गया था। इससे पहले जस्टिस खन्ना ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी थी। जस्टिस खन्ना की अनुशंसा पर पहले ही सरकारी कार्रवाई शुरू हो चुकी है। पार्टियों में महाभियोग पर सहमति बनाने के लिए संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजीजू को जिम्मेदारी दी गई है। 21 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सत्र में महाभियोग लाया जाएगा। गौरतलब है कि जब जस्टिस वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश थे, तब 14 मार्च की रात 11:35 बजे उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लग गई थी। स्टोर रूम से बड़ी मात्रा में जले नोटों की गड्डियां मिली थीं। इसके बाद जस्टिस खन्ना ने जांच के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता में तीन जजों की समिति बनाई थी। जांच समिति ने 10 दिन तक जांच करने, 55 गवाहों से पूछताछ व इलेक्ट्रानिक साक्ष्य जांचने के बाद पाया कि जस्टिस वर्मा पर कदाचार साबित होता है। जस्टिस वर्मा से न्यायिक कामकाज वापस ले लिया गया था और दिल्ली हाई कोर्ट से वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया था। अभी वह इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज हैं, लेकिन न्यायिक कामकाज उनके पास नहीं हैं। जांच कमेटी ने तीन मई को सौंपी 64 पन्नों की रिपोर्ट में कहा है कि स्टोर रूम जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के नियंत्रण में था। जली नकदी को 15 मार्च को तड़के हटा दिया गया था। रिपोर्ट में नकदी हटाने वाले स्टाफ के नाम भी दिए गए हैं। रिपोर्ट बहुत विस्तृत है। उसमें 55 लोगों के बयान दर्ज किए गए हैं। आग लगने की सामान्य घटना के रूप में शुरू हुआ यह मामला अब न्यायिक कदाचार और सार्वजनिक विश्वास के उल्लंघन के गंभीर आरोपों में परिणत हो गया है। प्रत्यक्षदर्शियों ने समिति को बताया कि 500 रुपये के जले नोटों के ढेर देखे। एक गवाह ने कहा कि नोटों का ढेर जीवन में पहली बार ऐसा देखा। जस्टिस वर्मा स्टोर रूम में पैसे की मौजूदगी के बारे में क्या बताते हैं? समिति ने वर्मा से पूछा कि स्टोर रूम में मिले पैसे का स्रोत क्या था? 15 मार्च की सुबह स्टोर रूम से जले पैसे निकालने वाला व्यक्ति कौन था? जस्टिस यशवंत वर्मा ने इसे साजिश बताया है। उनका कार्यकाल पांच जनवरी, 2031 तक है। वह इस्तीफा नहीं देते हैं और महाभियोग का सामना करने पर अड़े रहते हैं तो महाभियोग सफल नहीं होने पर 2031 तक पद पर बने रहेंगे। नियम मुताबिक सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के जज सिर्फ महाभियोग के जरिये ही हटाए जा सकते हैं।
संविधान अनुसार उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश राष्ट्रपति को स्वयं अपना त्यागपत्र भेजे तभी राष्ट्रपति उसे उसके पद से हटा सकता है या फिर सदन द्वारा दो तिहाई बहुमत से न्यायाधीश को हटाया जा सकता है। संविधान निर्माताओं ने न्यायाधीश को हटाने के लिए इतने सख्त नियम इसलिए बनाये होंगे कि न्यायपालिका पर विधानपालिका या कार्यपालिका प्रभाव न डाल सके। समय के साथ हालात बदल रहे हैं। न्याय व्यवस्था व न्यायाधीशों पर ही प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं। अब जांच समिति की रिपोर्ट अनुसार जस्टिस वर्मा पद पर बने रहने के लायक नहीं और उन्हें हटाये जाने के लिए कहा गया है। इस मामले में व्यवस्था की बेबसी भी सामने आ रही है।
सर्वोच्च न्यायालय ने तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जस्टिस यशवंत वर्मा के विरुद्ध महाभियोग की सिफारिश पहले ही कर दी थी। इतिहास में जाएं तो पायेंगे कि जातिवाद या क्षेत्रवाद के कारण आज तक संसद में किसी भी जज के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव पारित नहीं हुआ। समय की मांग है कि न्यायपालिका की साख को ध्यान में रखते हुए जस्टिस वर्मा स्वयं त्यागपत्र दे दे। व्यवस्था की कमजोरी कैसे दूर हो इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है।

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