मां के हाथों टूटी मासूमियत : हरिद्वार में मां ने प्रेमी से करवाया नाबालिग बेटी का रेप, बीजेपी ने पार्टी से निकाला

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हरिद्वार { गहरी खोज }: हरिद्वार की हवाएं उस दिन कुछ अलग थीं। गंगा की लहरों में जैसे कोई दर्द घुला हो, और आसमान की नीली चादर में कोई चीख छिप गई हो। किसी ने नहीं सोचा था कि एक धार्मिक नगरी की एक जानी-पहचानी महिला, भारतीय जनता पार्टी की महिला मोर्चा की पूर्व जिलाध्यक्ष, एक दिन अपनी ही बेटी की मासूमियत की हत्यारिन कहलाएगी।
वह समाज सेवा की बातें करती थी, महिला सशक्तिकरण के नारे लगाती थी। मंचों से बेटियों की सुरक्षा की दुहाई देती थी। लेकिन उसके भीतर कुछ और ही उबल रहा था—एक अनैतिक प्रेम, जिसकी आग में उसने मां-बेटी के रिश्ते को झुलसा डाला।
उसकी 13 साल की बेटी… उम्र के उस मोड़ पर थी जहाँ दुनिया को समझने की कोशिश शुरू होती है। स्कूल, खिलौने, और नये सपने — ये उसकी दुनिया थे। पर मां ने उसकी ज़िंदगी को एक ऐसे अंधेरे में धकेल दिया, जहां से कोई रोशनी वापस नहीं आती।
कहानी में तीसरा किरदार था महिला का प्रेमी। उम्र में महिला से छोटा, लेकिन मानसिक विकृति का प्रतीक। सूत्रों के अनुसार, महिला अपने प्रेमी को किसी भी हाल में खोना नहीं चाहती थी। उसने बेटी को उसके सामने ‘तोहफे’ की तरह परोसा — एक शर्मनाक सौदा, जिसकी कल्पना भी रूह कंपा देती है।
वो एक रात थी — शायद गर्मी से बोझिल, शायद नियति से। मां ने बेटी को कहा कि अंकल के कमरे में जाकर बात करो, उनके साथ बैठो, वह तुम्हें गिफ्ट देंगे। बेटी कुछ नहीं समझ पाई। और फिर दरवाज़ा बंद हो गया।
जो हुआ, वह न बताने लायक था, और न सहने लायक। एक बच्ची की मासूम चीखें दीवारों से टकराईं, लेकिन मां ने कान बंद कर लिए। शायद उसे यही चाहिए था — प्रेमी की भूख मिटे, रिश्ता गहरा हो, और बेटी…?
बेटी अब बेटी नहीं रही, वह एक घाव बन गई।
यह घिनौनी साजिश लंबे समय तक छिपी नहीं रही। बच्ची की हालत बिगड़ने लगी। उसकी चुप्पी में कराह थी, और उसकी आँखों में जो कुछ बचा था, वह नफ़रत थी — खुद से नहीं, उस मां से जिसे वह कभी भगवान समझती थी।
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने संदेह के आधार पर मामला उठाया। जब बच्ची से बात की गई तो उसकी कांपती ज़ुबान और नम आंखों ने सब सच कह दिया।
FIR दर्ज हुई। महिला मोर्चा की पूर्व जिलाध्यक्ष और उसका प्रेमी गिरफ्तार हुए। मीडिया ने तूफान सा ला दिया। हरिद्वार सहम गया। यह महज़ एक अपराध नहीं था — यह उस विश्वास की हत्या थी जो हर बच्चा अपनी मां में देखता है। यह उन आदर्शों की धज्जियां थीं, जो महिला नेताओं के माध्यम से समाज में गढ़े जाते हैं।
यह सवाल है उस दोहरे चरित्र पर जो मंच पर कुछ और होता है, और घर के दरवाज़े बंद होते ही हैवान बन जाता है।
इस मामले में पॉक्सो एक्ट, बलात्कार, यौन उत्पीड़न और षड्यंत्र की धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ है। लेकिन क्या न्याय उस बच्ची को उसकी बचपन लौटा सकता है? क्या कोई अदालत उसकी आँखों की मासूमियत वापस कर सकती है?
पर अगर हम सब एकजुट हो जाएं, इस अपराध की गहराई को समझें और आवाज़ उठाएं — तो शायद कोई और मां ऐसा न करे।
हरिद्वार की शांत गंगा उस दिन गवाह बनी एक बेटी की चुप चीख की।

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