संगठन सृजन अभियान के जरिए क्या कांग्रेस अपनी “जमीन” कर सकेगी हासिल

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भोपाल{ गहरी खोज }: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की मध्यप्रदेश कांग्रेस संगठन को मजबूती देने और उसकी जमीनी पकड़ बेहतर बनाने के उद्देश्य से भोपाल यात्रा के बाद अब सत्ता के गलियारों और कांग्रेसजनों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या वाकई “संगठन सृजन अभियान” के जरिए पार्टी इस राज्य में अपनी खोई हुई “जमीन” और प्रतिष्ठा वापस हासिल कर सकेगी।
लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री गांधी ने मंगलवार को गुजरात के बाद मध्यप्रदेश में “संगठन सृजन अभियान” की शुरुआत भोपाल में की। इस दौरान उन्होंने प्रदेश कांग्रेस संगठन के प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं से अलग अलग चार बैठकों के जरिए बात की और फिर रवींद्र भवन में अभियान की शुरूआत के मौके पर संबोधन के दौरान वरिष्ठ समेत सभी नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं को सख्त संदेश देने का प्रयास किया। श्री गांधी ने प्रदेश में राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक की। सभी विधायकों को संबोधित किया। प्रदेश पदाधिकारियों के साथ ही अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रतिनिधियों और प्रदेश कांग्रेस के प्रतिनिधियों से चर्चा की।
श्री गांधी का “रेस का घोड़ा, बारात का घोड़ा और लंगड़ा घोड़ा” संबंधी बयान पार्टी जनों के बीच कल से ही चर्चा का विषय बना हुआ है। श्री गांधी ने कहा कि रेस के घोड़े को “रेस” में भेजा जाएगा, बारात के घोड़े को बारात में और लंगड़े घोड़ों को “रिटायर” किया जाएगा। यहां लंगड़े घोड़े से आशय पार्टी के ऐसे नेताओं से लगाया जा रहा है, जो उम्रदराज हो चुके हैं और अब उनकी अहमियत नहीं है, या वे उतने अधिक ऊर्जावान या सक्रिय नहीं हैं। कथित तौर पर ऐसे नेताओं की कार्यप्रणाली से प्रदेश संगठन और पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता नाराज बताए जाते हैं। माना जा रहा है कि इसी संदर्भ में श्री गांधी का लंगड़े घोड़ा संबंधी बयान आया है। उन्होंने अपने भाषण में कहा है कि यदि लंगड़ा घोड़ा “डिस्टर्ब” करे, तो उसके साथ क्या व्यवहार किया जाता है, यह कहने की जरूरत नहीं है।
पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस दो दशक से अधिक समय से प्रदेश की सत्ता से बाहर है। इसके बावजूद संगठन को मजबूत बनाने या जमीनी नेताओं या कार्यकर्ताओं की बात पर गौर करने का कार्य नहीं किया गया। संगठन सृजन अभियान के जरिए राज्य में यह प्रयास पहली बार हो रहा है। सूत्रों ने कहा कि श्री गांधी ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि अब “जिला अध्यक्ष” ही राज्य में संगठन चलाएंगे और जिला अध्यक्षों की भी जिम्मेदारी तय की जाएगी। और जिला अध्यक्षों की नियुक्ति कांग्रेस के केंद्रीय संगठन की ओर से नियुक्त पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय संगठन द्वारा ही की जाएगी। जिला अध्यक्षों के कार्यों का मूल्यांकन भी किया जाएगा। यदि वे भी कांग्रेस की रीति नीति के अनुरूप नहीं पाए गए, तो उन्हें दरकिनार करने में पार्टी कोई समय जाया नहीं करेगी।
इस बीच श्री गांधी ने यह भी साफ किया कि यदि कोई नेता ये मानकर चले कि वह जिला अध्यक्ष को अनदेखा कर चल सकेगा, तो आज के बाद से यह उसकी गलतफहमी होगी। यहां तक कि चुनावों में टिकट वितरण के कार्य में भी जिला अध्यक्षों की राय महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।
सूत्रों ने कहा कि अभियान के तहत जिला अध्यक्षों की नियुक्ति आज से तीन माह के अंदर होने की संभावना है। इसके बाद इसी तरह से ब्लाक कांग्रेस अध्यक्षों के बारे में भी किया जाएगा। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी भी कह चुके हैं कि पार्टी में संगठन सृजन अभियान दो चरणों में प्रारंभ किया गया है। इसे आगे भी विस्तार देते हुए जारी रखा जाएगा।
सूत्रों का कहना है कि गुजरात और मध्यप्रदेश में पार्टी दो दशकों से अधिक समय से सत्ता से बाहर है (मध्यप्रदेश में कांग्रेस की 15 माह की कमलनाथ सरकार को छोड़कर), इसलिए इन दोनों राज्यों में संगठन को वापस मजबूत बनाने की कवायद केंद्रीय स्तर पर प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया है। गुजरात में कुछ समय पहले इस अभियान की शुरुआत के बाद अब मध्यप्रदेश में इसकी शुरूआत की गयी है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और प्रदेश नेतृत्व को उम्मीद है कि आने वाले विधानसभा चुनाव वर्ष 2028 में पार्टी काफी मजबूती के साथ मैदान में उतरेगी। यही नहीं उसके पहले नगरीय निकाय और अन्य चुनावों में भी बेहतर प्रदर्शन का प्रयास किया जाएगा।
सूत्रों ने कहा कि अभियान का उद्देश्य सिर्फ चुनाव तक ही सीमित नहीं है। कांग्रेस संगठन को देश में भी मजबूती प्रदान करना है। इस वजह से इस तरह की कवायद धीरे धीरे अन्य राज्यों में भी प्रारंभ करने की योजना है। कांग्रेस के जिम्मेदार नेता इस कवायद को संगठन में “पीढ़ी परिवर्तन” के रूप में भी देख रहे हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि अब युवा, ऊर्जावान और योग्य नेता और कार्यकर्ता आगे आएंगे।
संगठन सृजन अभियान के दौरान राज्य में “क्षत्रपों” के क्षेत्रों में इसके क्रियान्वयन के दौरान आने वाली चुनौतियों के बारे में सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय संगठन ने काफी मजबूत और अनुभवी नेताओं को पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। इसी तरह के पर्यवेक्षक एक एक जिले में भेजे जाएंगे। उदाहरण के स्वरूप अन्य राज्यों के प्रदेश संगठन प्रमुख रह चुके और केंद्रीय संगठन में महत्वपूर्ण दायित्व निभा चुके नेताओं को जिले के पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी दी गयी है। ऐसे पर्यवेक्षक क्षत्रपों के क्षेत्रों में भी कार्यकुशलता से अपने कार्य को अंजाम देंगे।
राजनैतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि श्री गांधी की मंगलवार की यात्रा पार्टी संगठन के लिहाज से काफी सफल रही है। वे जहां जमीनी और संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं और नेताओं को यह संदेश देने में सफल रहे कि अब उनकी बात सीधे केंद्रीय संगठन भी सुनेगा और उन्हें महत्व भी दिया जाएगा, तो वरिष्ठ और संगठन को नुकसान पहुंचाने वाले तथाकथित नेताओं को भी सख्त संदेश दिया है कि वे अपनी हरकतों से बाज आएं, अन्यथा उन्हें भी अब कीमत चुकाना होगी। अब उनके कृत्यों पर संगठन पूरी तरह से गौर करके कार्रवाई करेगा। हालाकि पर्यवेक्षकों का आशंका है कि वरिष्ठ नेताओं को हाशिए पर लाने की नीति के चलते वे सब एकजुट होकर संगठन को नुकसान पहुंचाने के कार्य में लिप्त हो सकते हैं। ऐसे नेताओं के रग रग में राजनीति बसी हुयी है, तो फिर वे इससे दूर कैसे रह सकेंगे।
इस संबंध में प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख मुकेश नायक ने दूरभाष पर यूनीवार्ता से चर्चा में कहा कि श्री गांधी की यात्रा पूरी तरह सफल रही है। संगठन सृजन अभियान के क्रियान्वयन से पार्टी और संगठन में वातावरण बदलेगा। बुनियादी परिवर्तन आएगा। नए लोगों को लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा। पार्टी की गुटबाजी समाप्त होगी, जो कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या है। संगठन अब बेहतर तरीके से निर्णय लेने की स्थिति में रहेगा।
श्री गांधी की “घोड़े” संबंधी टिप्पणी के बारे में श्री नायक ने कहा कि बारात के घोड़े वे नेता या कार्यकर्ता हैं, जिनकी पार्टी के प्रति निष्ठा है। जिन नेताओं में निष्ठा के साथ योग्यता है, वे रेस के घोड़े हैं। और लंगड़े घोड़े वे हैं, जो “अक्षम” होते हुए भी “सक्षम” लोगों को आगे बढ़ने से रोकते हैं। उन्होंने कहा कि अब पार्टी फिर से अपनी जमीन और प्रतिष्ठा पाने में सफल रहेगी।
दूसरी ओर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने यूनीवार्ता से चर्चा में कहा कि श्री राहुल गांधी के नेतृत्व में “यूपीए” लोकसभा, विधानसभा और अन्य तरह के एक सैकड़ा चुनाव हार चुकी है, इसलिए ऐसे नेता के नेतृत्व में संगठन सृजन अभियान चलाना हास्यास्पद लगता है। श्री अग्रवाल ने कटाक्ष करते हुए कहा कि श्री गांधी की छवि ऐसे नेता के रूप में बन गयी हैं कि वे जहां जहां पर जाते हैं, संगठन को नुकसान होने लगता है या फिर वह टूटने लगता है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेताओं को अपने हित के आगे और कुछ नहीं दिखाई देता है, इसलिए उनसे जनहित या राष्ट्रहित की उम्मीद करना बेमानी है।
श्री गांधी प्रदेश कांग्रेस के “संगठन सृजन अभियान” की शुरूआत करने मंगलवार को आए थे। श्री गांधी ने अपने संबोधन में कहा कि उन्होंने दो तरह के घोड़ों के बारे में सुना था। रेस का घोड़ा और शादी का घोड़ा। लेकिन मध्यप्रदेश में तीसरी प्रजाति भी है और वह है “लंगड़ा घोड़ा”। हमें लंगड़ा घोड़ा छांटना है और उन्हें घर में बिठाना है। रेस के घोड़े को रेस में भेजा जाएगा और बारात के घोड़े को बारात में। उन्होंने संकेतों की भाषा में कहा कि लंगड़ा घोड़ा जब “डिस्टर्ब” करता है, तो उसके साथ क्या किया जाता है, वह यह बोलना नहीं चाहते हैं। उन्होंने संगठन को लेकर और भी नसीहतें दीं।
मध्यप्रदेश में वर्ष 1993 से 2003 तक दस वर्ष तक कांग्रेस की सरकार रही और उस समय वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। नवंबर दिसंबर 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा और उस समय भाजपा ने कांग्रेस काे बुरी तरह पराजित कर सत्ता से बाहर कर दिया था। उसके बाद से कांग्रेस को 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के हाथों पराजित होना पड़ा। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल अपने बूते पर बहुमत हासिल नहीं कर सके, लेकिन ज्यादा सीट होने के कारण कांग्रेस ने अन्य विधायकों के सहयोग से सरकार बनायी और श्री कमलनाथ मुख्यमंत्री बने। लेकिन यह सरकार मात्र 15 माह ही चल सकी और तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक विधायकों के साथ मार्च 2020 में भाजपा के साथ हो गए। इसके चलते अल्पमत में आने के कारण कांग्रेस की कमलनाथ सरकार का पतन हो गया और कोराेना के उस दौर में भाजपा राज्य की सत्ता में फिर से काबिज हो गयी। इसके बाद वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा और वह विपक्ष की भूमिका निभाने काे मजबूर है।

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