कानून का शासन समाज का आधार: धनखड़

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NEW DELHI, MAY 19 (UNI):- Vice President Jagdeep Dhankhar launching the book ‘The Constitution We Adopted (with Artworks)’ edited by Vijay Hansaria, Senior Advocate, Supreme Court of India at Bharat Mandapam, in New Delhi on Monday. UNI PHOTO-106U

नयी दिल्ली { गहरी खोज }: उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कानून के शासन को सामाजिक व्यवस्था का आधार करार देते हुए कहा है कि न्यायपालिका को मजबूत करने की आवश्यकता है।
श्री धनखड़ ने सोमवार को यहां एक पुस्तक ‘दी कॉन्स्टिट्यूशन वीं एडोप्टिड ( विद आर्ट वर्क) ‘ के विमोचन कार्यक्रम
को संबोधित करते हुए कहा कि न्यायपालिका की रक्षा करनी होगी।यह सुनिश्चित करना होगा कि न्यायाधीश भयमुक्त होकर निर्णय ले सकें। वे कार्यपालिका की शक्तियों से निपटना, उद्योग की शक्तियों से जूझना, आर्थिक और संस्थागत ताकतों से टकराना जैसे कठिन काम करते हैं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को मजबूत सुरक्षा देनी चाहिए। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि न्यायाधीश जांच से बचें रहे।इसके लिए एक पारदर्शी, उत्तरदायी और त्वरित ‘इन-हाउस’ जांच प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।
श्री धनखड़़ ने कहा कि वर्ष 1991 के ‘के. वीरस्वामी निर्णय’ पर अब पुनर्विचार करने का समय आ गया है। इस अभेद्य सुरक्षा कवच की उत्पत्ति उच्चतम न्यायालय के के. वीरस्वामी निर्णय (1991) से हुई है। इसने जवाबदेही और पारदर्शिता की हर कोशिश को निष्प्रभावी किया है। अब समय आ गया है कि इसमें बदलाव होना चाहिए।
श्री धनखड़ ने कहा कि एक मजबूत न्यायिक व्यवस्था लोकतंत्र के अस्तित्व और उसकी समृद्धि के लिए अनिवार्य है। यदि कोई एक घटना इस व्यवस्था को कलंकित करती है, तो जल्द से जल्द सच सामने लाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में जांच कार्यपालिका का और न्यायिक निर्णय न्यायपालिका का कार्य है। एक न्यायाधीश को हटाने के लिए समिति केवल संसद के सदस्य प्रस्ताव लाकर लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति ही गठित कर सकते है।
श्री धनखड़ ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा प्रकरण के संदर्भ में कहा कि दो उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को जांच में लगाया गया है जिसका कोई संवैधानिक आधार या वैधानिक वैधता नहीं है। यदि उस जांच में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए गए तो यह और भी गंभीर विषय है। न्होंने कहा कि‌ दिल्ली के लुटियंस इलाके में एक न्यायाधीश के आवास पर जली हुई नकदी और नोट मिले, लेकिन अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। देश में कानून का शासन है। न्यायपालिका को जांच से बाहर और निरीक्षण से दूर रखना कमजोर करने का सबसे आसान तरीका है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हर संस्था को जवाबदेह और कानूनी प्रक्रिया के अधीन होना चाहिए।
श्री धनखड़ ने कहा कि न्यायिक परिदृश्य बेहतर हो रहा है। अब समय आ गया है कि 90 के दशक के निर्णयों की पुनर्समीक्षा की जाय। देश की जनता इस पर सच जानना चाहती है ।
उन्होंने कहा कि यह घटना 14 और 15 मार्च की रात की है, लेकिन देश को इसके बारे में एक सप्ताह बाद पता चला।अन्य घटनाएं हो सकती हैं जिनकी जानकारी ही नहीं मिलती।ऐसी घटना सामान्य नागरिक और कानून में विश्वास रखने वालों के मन को चोट पहुंचाती है। उन्होंने कहा, “अगर हम लोकतंत्र को मजबूत करना चाहते हैं, तो हमें इस मामले में सच्चाई को सामने लाना ही होगा।”
उन्होंने कहा कि इस मामले में दो महीने बीत चुके हैं। जनता जवाब चाहती है। यह एक परीक्षण मामला है, जिससे तय होगा कि हमारी न्यायिक प्रणाली कितनी पारदर्शी और जवाबदेह है। जब दोषियों को कानून के कटघरे में लाया जाएगा, तभी ‘सिस्टम’ का शुद्धिकरण और छवि सुधार संभव होगा।

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