एकदंत संकष्टी चतुर्थी पर पूजा के दौरान पढ़ें ये पौराणिक व्रत कथा, पूरे होंगे सभी रुके काम!

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धर्म { गहरी खोज } : एकदंत संकष्टी चतुर्थी का व्रत विघ्नहर्ता भगवान गणेश को समर्पित है। वैसे तो यह संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। वहीं जेष्ठ माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को एकदंत चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। यह तिथि बप्पा को प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। महिलाएं यह व्रत अपनी संतान की दीर्घायु के और तरक्की के लिए पूजा करती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, एकदंत संकष्टी चतुर्थी का व्रत और पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करने वालों के जीवन की सभी परेशानियों और विघ्नों से छुटकारा मिलता है।

एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
एकदंत संकष्टी चतुर्थी की पौराणिक व्रत कथा के अनुसार, सतयुग में सौ यज्ञ करने वाले एक पृथु नामक राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में दयादेव नामक एक ब्राह्मण रहता था। वेदों में निष्णात ब्राह्मण के चार पुत्र थे और सभी का विवाह हो गया था। चारों बहुओं में बड़ी बहू अपनी सास से कहने लगी – हे माताजी! मैं बचपन से ही संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करती आई हूं, कृपया करके मुझे यहां भी चतुर्थी तिथि का व्रत रखने की अनुमति प्रदान करें। पुत्रवधू की बात सुनकर सास ने कहा – हे बहू! तुम सभी बहूओं में श्रेष्ठ और बड़ी हो। तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं है और न तुम भिक्षुणी हो। ऐसी स्थिति में तुम किस लिए व्रत करना चाहती हो? हे सौभाग्यवती! अभी तुम्हारा समय उपभोग करने का है और व्रत रखकर तुमको करना ही क्या है। लेकिन बहु मानती नहीं, व्रत करने लगी। कुछ समय बाद ही बड़ा बहु ने एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया।

जैसे ही सास को जानकारी मिली की बहु अभी भी व्रत कर रही है तो वह व्रत छोड़ने के लिए बहू को बाध्य करने लगी। ऐसा करने से गणेश जी नाराज हो गए। कुछ समय बाद बड़े पुत्र के बेटे का विवाह तय हो गया। विवाह के दिन वर का अपहरण हो गया। इस अनहोनी घटना से शादी के मंडप में खलबली मच गई। सभी लोग व्याकुल होकर कहने लगे, लड़का कहां गया? किसने अपहरण कर लिया। बारातियों द्वार ऐसा समाचार पाकर उसकी माता अपने सास से रो-रोकर कहने लगी। हे माताजी! आपने मेरे गणेश चतुर्थी व्रत को छुड़वा दिया है, जिसके परिणाम स्वरुप ही मेरा पुत्र गायब हो गया हैं। अपनी पुत्रवधू के मुख से ऐसी बात सुनकर ब्राह्मण दयादेव और उसकी पत्नी बहुत दुखी हुए। साथ ही पुत्रवधू भी दुखित हुई। पुत्र के लिए दुखित पुत्रवधू प्रति मास संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगी।

एक समय की बात है कि गणेशजी एक वेदज्ञ और दुर्बल ब्राह्मण का रूप धारण करके भिक्षाटन के लिए इस मधुरभाषिणी के घर आए। ब्राह्मण ने कहा कि हे बेटी! मुझे भिक्षा स्वरूप इतना भोजन दो कि मेरी क्षुधा शांत हो जाए। उस ब्राह्मण की बात सुनकर उस पुत्रवधू ने उस ब्राह्मण का विधिवत पूजन किया। भक्ति पूर्वक भोजन कराने के बाद उसने ब्राह्मण को वस्त्रादि दिए। कन्या की सेवा से संतुष्ट होकर ब्राह्मण कहने लगा – हे कल्याणी! हम तुम पर प्रसन्न हैं, तुम अपनी इच्छा के अनुकूल मुझसे वरदान प्राप्त कर लो। मैं ब्राह्मण वेशधारी गणेश हूं और तुम्हारी प्रीति के कारण आया हूं।

ब्राह्मण की बात सुनकर कन्या हाथ जोड़कर निवेदन करने लगी – हे विघ्नेश्वर! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे मेरे पुत्र के दर्शन करा दीजिए। कन्या की बात सुनकर गणेशजी ने उससे कहा कि हे सुन्दर विचार वाली, जो तुम चाहती हो वही होगा। तुम्हारा पुत्र शीघ्र ही आवेगा। कन्या को इस प्रकार का वरदान देकर गणेशजी वहीं अंतर्ध्यान हो गए। कुछ समय के बाद उसका पुत्र घर वापस आ गया। सभी बहुत प्रसन्न हुए, विधि अनुसार विवाह कार्य संपन्न किया। इस प्रकार ज्येष्ठ मास की चौथ सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है।

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