एक्सीडेंट के फर्जी क्लेम लेने वालों पर सख्त हुआ MP हाईकोर्ट, सीधे DGP को दिए SIT जांच के आदेश

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जबलपुर: एमपी हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा मामलों में हो रहे फर्जीवाड़े की जांच के लिए एसआईटी (SIT) गठित करने का आदेश दिया है। जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने पुलिस महानिर्देशक को यह निर्देश दिया है। एसआईटी इन धोखाधड़ी की जांच करेगी।

विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा रहे ऐसे मामले

कोर्ट ने कहा कि ऐसे फर्जीवाड़े न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह मामला श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी की एक अपील पर सुनवाई के दौरान सामने आया। अपील में छिंदवाड़ा के राकेश वल्तिया को दिए गए मुआवजे को चुनौती दी गई थी

हर दिन बढ़ रहे ऐसे मामले

कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। इससे न्यायिक प्रणाली पर गलत असर पड़ रहा है। इसलिए, कोर्ट ने डीजीपी (DGP) को एसआईटी गठित करने का आदेश दिया है। यह एसआईटी इन मामलों की गहराई से जांच करेगी।

जांच के लिए दिए खास निर्देश

एकलपीठ ने एसआईटी को जांच के लिए कुछ खास निर्देश दिए हैं। एसआईटी को यह देखना होगा कि क्या दावेदार, पुलिस अधिकारी और डॉक्टर आपस में मिले हुए हैं। कोर्ट ने कहा कि कभी-कभी वकील भी दावेदारों को गलत काम करने के लिए उकसाते हैं। ऐसे वकील मोटर दुर्घटना दावा मामलों या आपराधिक कानून के क्षेत्र में काम कर रहे होते हैं।

कंपनी ने दी थी चुनौती

मामला राकेश वल्तिया से जुड़ा था। वल्तिया को दुर्घटना में चोट लगने के बाद मुआवजा दिया गया था। कंपनी का कहना था कि वल्तिया ने मुआवजे के लिए फर्जी दस्तावेज पेश किए थे। कंपनी ने आरोप लगाया कि वल्तिया ने जिला अस्पताल (विक्टोरिया) का फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र लगाया था। कोर्ट में सुनवाई के दौरान वल्तिया ने खुद माना कि वह कभी भी विक्टोरिया अस्पताल में भर्ती नहीं हुआ। उसने यह भी कहा कि वह कभी किसी जांच के लिए वहां नहीं गया।

फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र कैसे बना

कोर्ट ने पाया कि विक्टोरिया अस्पताल के डॉ. शरद द्विवेदी और सुविधा अस्पताल के डॉ. बालकृष्ण डांग ने फर्जी प्रमाण पत्र और इलाज के दस्तावेज तैयार किए थे। कोर्ट ने लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के प्रमुख सचिव और एमसीआई (MCI) को इन डॉक्टरों के खिलाफ जांच करने और कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।

कलेक्टर को भी दिए जांच के आदेश

वल्तिया ने बताया कि वकील मनोज शिवहरे ने उसे विकलांग प्रमाण-पत्र उपलब्ध करवाए थे। इसके अलावा, दवाइयों के बिल में जीएसटी (GST) भी नहीं लगाया गया था। हाईकोर्ट ने एमपी स्टेट बार काउंसिल को मनोज शिवहरे के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने जिला कलेक्टर को मॉ फार्मेसी की जांच करने का भी आदेश दिया है। कोर्ट यह जानना चाहता है कि फार्मेसी को बिना जीएसटी के दवा बेचने का अधिकार किसने दिया। अपीलकर्ता कंपनी की तरफ से अधिवक्ता राकेश जैन ने पैरवी की।

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