हॉकी के युवा सितारे

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संपादकीय { गहरी खोज }: भारतीय हॉकी टीम ने जूनियर विश्व कप हॉकी में 9 वर्ष बाद कांस्य पदक जीता है। पंजाब के दो युवा सितारे गुरजोत और दिलराज ने कांस्य पदक जीतने के बाद पत्रकार वार्ता में अपने संघर्ष की जो कहानी अपनी जुबानी कही वही आप सम्मुख रख रहा हूं। जालंधर के गुरजोत ने कहा कि उसने कभी सोचा नहीं था कि जूनियर विश्व कप में कभी खेलेगा। गुरजोत अनुसार घर वालों ने हॉकी खेलने से रोका। जब हॉकी की शुरुआत हुई तो सोचा था कि किसी पैरा मिलिट्री फोर्स में नौकरी के लिए खेलेंगे, लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था। मेहनत की और कांस्य पदक जीता है। गांव हुसैनाबाद के रहने वाले गुरजोत ने गांव सरींह में खेलना शुरू किया। मां बलजीत कौर हाउस वाइफ हैं। इसी साल मार्च में पिता का निधन हो गया। पिता का सपना था कि वर्ल्ड कप खेलूं। आज मेडल जीत लिया, लेकिन वे नहीं हैं। जब पिता का निधन हुआ तब मैं बेंगलुरु हॉकी कैंप में था। कांस्य पदक जीता तो सबसे पहले मां से बात हुई, उन्होंने हौसला दिया। मैंने सोचा था कि इतना खेलना है कि सिर्फ आर्मी में नौकरी मिल जाए। 10वीं तक हॉकी खेली, लेकिन आगे कोई स्कोप नहीं दिखा। कोरोना काल में हॉकी छोड़ दी और जालंधर शहर में चप्पलों की फैक्ट्री में 4 हजार महीना पर काम किया। फिर खालसा कॉलेज में सिलेक्शन हुई। उसी साल डिपार्टमेंट का जूनियर टूर्नामेंट भी बंद हो गया। एक दिन मोगा में पेंडू टूर्नामेंट खेला तो सीनियर खिलाड़ी भी वहां मौजूद थे। इसी दौरान एक व्यक्ति ने मुझे खेलते देख पीएपी में राउंड ग्लास अकादमी के ट्रायल देने के लिए प्रेरित किया। भोपाल में पहला नेशनल खेला। फिर 2022 में इंडिया कैंप में शामिल हुआ।
जूनियर विश्व कप हॉकी में संयुक्त रूप से सबसे अधिक 6 गोल करने वाले पंजाब के ही दिलराज के जन्मदिन वाले दिन ही टीम ने कांस्य पदक जीता था। टीम की जीत के बाद भावुक होते हुए दिलराज ने कहा कि ‘जीत के बाद सबसे पहले मैने मां (रूपिंदर कौर) से बात की और वह काफी भावुक हो गई थी। वह मेरा मैच नहीं देखती क्योंकि उनको डर लगता है। वह उतने समय अरदास करती रहती हैं।’ शुरूआती दिनों में गोलकीपर के तौर पर खेलने वाले पंजाब के इस खिलाड़ी ने बताया कि उनके पिता ठीक नहीं रहते थे और मां ने काफी कठिनाइयां झेलकर उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है। दिलराज ने कहा कि मैंने जब पहली गोलकीपिंग किट ली थी तो मेरी मां को अपने गहने बेचने पड़े थे। उनके और मेरे अलावा किसी को यह नहीं पता था । मुझे फिर बहुत दुख हुआ और मैं बहुत संजीदगी से खेलने लगा क्योंकि मैं जब भी मैदान पर उतरता था तो मेरी मां की कुर्बानियां याद आती थी। मेरे पापा ठीक नहीं रहते थे तो सब कुछ मां पर ही निर्भर था और उनकी वजह से ही मैं यहां तक पहुंचा। हालात इतने खराब थे कि कई बार मेरे पास टूर्नामेंट में जाने के लिये भी पैसा नहीं होता था। किसी टूर्नामेंट में ईनाम मिल जाता तो काम चल जाता था। पिछले साल जोहोर कप (तीन गोल) में कांस्य और जूनियर एशिया कप (सात गोल) में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रहे दिलराज ने कहा कि विश्व कप में मिला पदक इसलिये भी बहुत मायने रखता है क्योंकि इससे भविष्य में उन्हें नौकरी मिलने का मौका बनेगा। उन्होंने कहा कि मेरे लिये यह पदक बहुत अहम है क्योंकि इससे मुझे नौकरी मिलने का मौका बन सकता है। इसके साथ ही सीनियर टीम में जाने के दरवाजे भी खुलेंगे। घर के हालात ऐसे ही हैं लिहाजा नौकरी मिल जाने से अच्छा होगा।
जूनियर विश्व कप में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के इन युवा खिलाड़ियों को बहुत-बहुत बधाई। इन युवा खिलाड़ियों ने जो आप बीती सुनाई है, वह उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं जो कुछ असफलताओं और कुछ कठिनाइयों का सामना करने के बाद मैदान को अलविदा कर देते हैं। इन दोनों के जीवन संघर्ष से स्पष्ट है कि खेल के प्रति लग्न, जुनून व कड़ी मेहनत एक दिन अवश्य रंग लाती है। गुरजोत व दिलराज के संघर्ष को देखते हुए तथा ऐसे अन्य खिलाड़ियों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए पंजाब तथा केंद्र दोनों सरकारों को उन्हें अपने-अपने स्तर पर संभालने व संरक्षण देने की आवश्यकता है।
भारत आज अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेलों का आयोजन कर रहा है। ओलम्पिक खेलों के लिए दावेदारी कर रहा है, यह अच्छी बात है। क्योंकि इन आयोजनों से खेलों का बुनियादी ढांचा मजबूत होगा, लेकिन ढांचे के साथ खिलाड़ियों का भी मानसिक व आर्थिक दृष्टि से मजबूत होना आवश्यक है, तभी अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय खिलाड़ी सितारे बनकर चमक सकेंगे। इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रदेशों की सरकारों और केंद्र सरकार की विभिन्न खेलों के उभरते युवा खिलाड़ियों को संभालने व संरक्षण देना प्राथमिकता होनी चाहिए।

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