इंडिगो पर कार्रवाई

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संपादकीय { गहरी खोज }: देश की सबसे बड़ी घरेलू विमानन कंपनी इंडिगो की अव्यवस्था के कारण हजारों यात्रियों को पिछले एक सप्ताह से अधिक समय से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इसका मूल कारण जो समझ में आ रहा है वह यह है कि कंपनी ने अपनी क्षमता से अधिक उड़ानों की मंजूरी सरकार से ले ली। कंपनी ने जो आश्वासन सरकार को अपनी उड़ानों को लेकर दिया, उसको पूरा नहीं कर पाई। पहले पांच दिन तो यात्री अपने सामान के लिए तथा टिकटों के लिए दिए पैसों की वापसी के लिए परेशान होते रहे। केंद्र सरकार के सख्त रवैये के कारण कंपनी ने यात्रियों को टिकटों का रिफंड और यात्रियों का सामान लौटाया। यह कार्य कंपनी को अपनी नैतिक जिम्मेवारी समझते हुए पहले ही कर देना चाहिए था।

विमानन मंत्री के. राममोहन नायडू द्वारा दिए आदेश अनुसार अब सर्दियों के मौसम में इंडिगो कंपनी की उड़ानों में 10 प्रतिशत कटौती कर दी गई है। खासकर उन रूट्स पर जहां उड़ानों की मांग और संख्या ज्यादा है। दिन में डीजीसीए ने इंडिगो से 5 प्रतिशत कटौती को कहा था। उसने इंडिगो से नया शेड्यूल मांगा है। कंपनी हर दिन 2200 उड़ानें ऑपरेट करती है। 10 प्रतिशत कटौती के बाद करीब 220 उड़ानें ही कम होंगी। कटौती वाले शेड्यूल दूसरी एयरलाइंस को मिलेंगे। वहीं, 10 बड़े हवाई अड्डों पर आईएएस अफसर तैनात किए गए हैं। वहीं, एनडीए सांसदों की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो टूक कहा कि इंडिगो जैसा संकट दोबारा नहीं आने देंगे। सरकार कड़े कदम उठाएगी, चाहे कंपनियां इसे पसंद करें या नहीं। फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स के अध्यक्ष कैप्टन सी.एस. रंधावा अनुसार इंडिगो के पास 360 एयरबस ए320 विमान हैं। इनमें 80-विमान इंजन रिपेयर के कारण ग्राउंडेड थे। 320 विमान भी मान लें तो हर विमान पर कम से कम 7 कैप्टन और 7 फर्स्ट ऑफिसर चाहिए। यानी कुल 4480 पायलट चाहिए थे, जबकि एयरलाइन इस संख्या तक नहीं पहुंच पाई है। इसके अलावा, कुछ तकनीकी दिक्कतें भी हैं। इंडिगो ने 65 कैप्टन की कमी बताई, लेकिन 2 से 8 दिसंबर के बीच हालात उलटे थे। पायलट एयरपोर्ट पर आते रहे, पर फ्लाइट डिस्पैच ही नहीं हुआ। विमान ही नहीं थे। तीसरी बात, पायलट्स पर काम का दबाव। लाइन कैप्टन आम तौर पर 70 घंटे प्रति माह उड़ान भरते हैं, यानी लगभग 770 घंटे प्रतिवर्ष । अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से एक पायलट साल में 1000 घंटे तक उड़ान भर सकता है और सामान्यतः 800-850 घंटे उड़ान होती है। इंडिगो में दबाव काफी ज्यादा है। खासकर जब शेड्यूल तंग और क्रू कम हो। थकान जोखिम आकलन पर रंधावा ने कहा, पायलट फॉर्म भरते हैं, रिपोर्ट करते हैं, लेकिन इस पर कोई वास्तविक रेगुलेटरी निगरानी नहीं है। अब संकट ने इस विषय को फिर से उठाया है, लेकिन सिस्टम में अभी भी ठोस सुधार नहीं। रंधावा कहते हैं कि डीजीसीए को 6 प्रतिशत शेड्यूल कटौती तो नही करनी चाहिए थी, जो इंडिगो की पिछले विंटर सेशन की तुलना में ज्यादा थी और इसके बाद हालात सामान्य करने के लिए 10-15 प्रतिशत अतिरिक्त कटौती करके दूसरी एयरलाइंस को आवंटन करना चाहिए था। अभी भी दूसरी एयरलाइंस की क्षमता का डीजीसीए उपयोग, कर सकता है, जो उनका अधिकार है।

इंडिगो कंपनी की अव्यवस्था के कारण हजारों यात्रियों को पिछले दिनों अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कंपनी के सीईओ ने अब माफी मांगी है लेकिन माफी से काम नहीं चलने वाला। सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में यात्रियों को ऐसी समस्या का सामना न करना पड़े और देश की छवि भी खराब न हो।

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