मादक पदार्थ जब्ती मामले में सजा निलंबित करने की पूर्व आईपीएस अधिकारी भट्ट की याचिका खारिज
नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: उच्चतम न्यायालय ने 1996 के मादक पदार्थ जब्ती मामले में सुनाई गई 20 साल की सजा निलंबित करने की पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की याचिका बृहस्पतिवार को खारिज कर दी। न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा कि वह इस मामले पर सुनवाई की इच्छुक नहीं है। न्यायालय भट्ट की एक अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने इस मामले में सजा निलंबित करने का अनुरोध किया था। गुजरात के बनासकांठा जिले के पालनपुर शहर की एक सत्र अदालत ने भट्ट को 1996 के मामले में 20 साल की सजा सुनाई थी। भट्ट को राजस्थान के एक वकील को यह दावा करके फंसाने का दोषी पाया गया था कि 1996 में पुलिस ने पालनपुर के एक होटल के कमरे से मादक पदार्थ जब्त किए थे, जहां वह वकील ठहरा हुआ था। साल 2015 में सेवा से बर्खास्त किए गए भट्ट 1996 में बनासकांठा जिले में पुलिस अधीक्षक (एसपी) थे।
उनके एसपी रहते हुए जिले की पुलिस ने 1996 में राजस्थान के वकील सुमेरसिंह राजपुरोहित को गिरफ्तार किया था। पुलिस का दावा था कि पालनपुर शहर के एक होटल के कमरे से मादक पदार्थ जब्त किए थे, जहां वह वकील ठहरे हुए थे। हालांकि, बाद में राजस्थान पुलिस ने कहा कि राजपुरोहित को बनासकांठा पुलिस ने झूठे मामले में फंसाया था, ताकि उन्हें राजस्थान के पाली जिले में एक विवादित संपत्ति अंतरित करने के लिए मजबूर किया जा सके। पूर्व पुलिस निरीक्षक आई.बी. व्यास ने 1999 में गुजरात उच्च न्यायालय में इस मामले की पूरी जांच का अनुरोध करते हुए याचिका दायर की थी। राज्य सीआईडी (अपराध जांच विभाग) ने 2018 में स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत मादक पदार्थ मामले में भट्ट को गिरफ्तार किया था और तभी से वह पालनपुर उप-कारागार में बंद हैं।
पिछले साल, पूर्व आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारी संजीव भट्ट ने उच्चतम न्यायालय से 28 साल पुराने मादक पदार्थ मामले की सुनवाई को दूसरी सत्र अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि मौजूदा अदालत में सुनवाई के दौरान पक्षपात किया जा रहा है। उन्होंने अनुरोध किया था कि निचली अदालत की कार्यवाही को रिकॉर्ड किया जाए।
हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने भट्ट की याचिका खारिज कर दी और मादक पदार्थ मामले में उनके खिलाफ सुनवाई कर रहे निचली अदालत के न्यायधीश पर पक्षपाती होने का आरोप लगाने के लिए उन पर तीन लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था।
