नारी निकेतन ने लिखी संवेदनशील कहानी 4-5 वर्षों से लापता दिव्यांग युवती ममता की हुई घर वापसी

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पिता-पुत्री का भावुक मिलन, बिहार शरीफ लौट सकी ममता उर्फ अंशु
अम्बिकापुर { गहरी खोज }: नारी निकेतन अम्बिकापुर ने मानवता और सेवा की मिसाल पेश करते हुए पिछले 4-5 वर्षों से लापता मानसिक रूप से विक्षिप्त एवं शारीरिक रूप से विकलांग युवती ममता उर्फ अंशु पासवान को उसके परिवार से मिलाया। यह मिलन विशेष रूप से भावुक रहा क्योंकि मानवाधिकार दिवस के अवसर पर ममता को अपने जीवन का सबसे बड़ा अधिकार घर और परिवार का स्नेह वापस मिला।
अक्टूबर 2025 में बैकुंठपुर रेलवे स्टेशन के पास भटकती हुई अवस्था में मिली ममता की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी और शारीरिक विकलांगता के कारण वह चलने-फिरने में भी असमर्थ थी। 15 अक्टूबर 2025 से वह नारी निकेतन में रह रही थी, जहां वह अपना नाम, घर और पहचान तक बताने में असमर्थ थी।
नारी निकेतन ने उसे न केवल सुरक्षित आश्रय दिया, बल्कि जिला चिकित्सालय अम्बिकापुर के मनोरोग विभाग से निरंतर उपचार और संस्था के परामर्शदाताओं द्वारा नियमित काउंसलिंग की सुविधा प्रदान की। धीरे-धीरे मानसिक स्थिति सुधरने पर ममता को अपने पिता का मोबाइल नंबर याद आया, जिससे उसकी पहचान का महत्वपूर्ण सुराग मिला।
संस्था द्वारा संपर्क किए जाने पर पता चला कि ममता नालंदा (बिहार) की निवासी है। इसके बाद सखी वन स्टॉप सेंटर नालंदा ने फोटो के माध्यम से पहचान की पुष्टि की और उसके परिवार का पता निर्धारित किया। दोनों संस्थाओं के लगातार समन्वय एवं प्रयासों से युवती का पुनर्वास संभव हो सका।
मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर 2025 को नारी निकेतन में औपचारिक रूप से ममता को उसके पिता कैलाश पासवान और परिजनों को सौंप दिया गया। वर्षों बाद अपनी बेटी को देखकर पिता भावुक हो उठे और संस्था द्वारा की गई देखभाल, सुरक्षा, पोषण, उपचार और सहयोग के लिए गहरी कृतज्ञता व्यक्त की। बिहार शरीफ के छोटे कृषक पासवान ने कहा कि उनकी बेटी का सुरक्षित मिलना उनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है।
नारी निकेतन के संवेदनशील प्रयासों, नियमित उपचार, परामर्श, पोषण और संरक्षण ने ही ममता को अपनी पहचान याद करने में सक्षम बनाया और अंततः उसकी घर वापसी सुनिश्चित की। यह सफलता न केवल एक परिवार के पुनर्मिलन की खुशी है, बल्कि मानवता और मानवाधिकारों की सच्ची जीत का प्रतीक भी है।

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