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संपादकीय { गहरी खोज }: दिल्ली की रोहिणी कोर्ट में 2009 के एसिड अटैक के मामले में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस बागची बेंच ने बहस के दौरान कहा कि केंद्र सरकार संसद या अध्यादेश के जरिए कानून संशोधन करे, ताकि जिंदा बची पीड़िताएं दिव्यांग की परिभाषा में जुड़कर कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकें। एसिड अटैक सर्वाइवर शाहीना मलिक की जनहित याचिका पर केंद्र और दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग को भी नोटिस जारी किए गए। याचिका में मांग की गई है कि पीड़िताओं को दिव्यांग के रूप में वर्गीकृत किया जाए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि सरकार इस मुद्दे को पूरी गंभीरता के साथ देखेगी। याचिकाकर्ता मलिक ने कोर्ट को बताया कि उन पर 2009 में हमला हुआ था। ट्रायल अब अंतिम सुनवाई के चरण में है। 2013 तक केस में कुछ नहीं हुआ। 16 साल से अधिक की देरी पर हैरानी जताते हुए सीजेआई ने कहा कि अपराध 2009 का है और ट्रायल पूरा नहीं हुआ ! अगर राष्ट्रीय राजधानी इन चुनौतियों का जवाब नहीं दे सकती, तो कौन देगा? यह व्यवस्था के लिए शर्म की बात है! यह राष्ट्रीय शर्म है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक विभिन्न अदालतों में एसिड अटैक से जुड़े 844 केस लंबित हैं। 2025 में जारी रिपोर्ट में ये आंकड़े वर्ष 2023 तक के हैं। एनसीआरबी के मुताबिक देश में 2021 के बाद से एसिड अटैक के मामले लगातार बढ़े हैं। फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में एसिड अटैक के सालाना 250 से 300 केस दर्ज होते हैं। असल संख्या 1,000 से अधिक हो सकती है। कई मामले डर, सामाजिक दबाव और कानूनी झंझटों के कारण रिपोर्ट नहीं किए जाते।
गौरतलब है कि देश की विभिन्न अदालतों में करीब 5 करोड़ लंबित मामले पड़े हैं। इन सबको निपटाने में कितने वर्ष लगेंगे इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। इंसाफ के इंतजार में लोगों की सारी आयु ही निकल जाती है। इसीलिए जनसाधारण न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से ही घबराता है। उसकी कोशिश होती है कि न्यायालय से बाहर ही मामले को निपटाने में बेहतरी है। न्याय प्रक्रिया की धीमी गति का लाभ उठाते हुए बाहुबली और अपराधी अपने-अपने क्षेत्र में इतना दबदबा बनाने में सफल हो जाते हैं कि उनके मुंह से निकला शब्द ही कानून बन जाता है।
उपरोक्त स्थिति को ध्यान में रखते हुए तथा उच्चतम न्यायालय की पीठ द्वारा दिए सुझाव को मद्देनजर रखते हुए केंद्र सरकार को न्यायप्रक्रिया में तेजी लाने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। देर से मिला इंसाफ इंसाफ न मिलने जैसा ही होता है।

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