वंदे मातरम् पर सरकार–विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप

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नई दिल्ली { गहरी खोज }: लोकसभा में सोमवार को वंदे मातरम् गीत के 150 वर्ष पूरे होने विशेष चर्चा में जोरदार राजनीतिक टकराव देखने को मिला। विभिन्न दलों के नेताओं ने राष्ट्रीय गीत के इतिहास, उसकी भूमिका और वर्तमान राजनीति में उसके उपयोग पर तीखी प्रतिक्रियाएं दीं। सपा, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, तेलुगुदेशम् पार्टी, जनता दल (यू), शिवसेना (यूबीटी), लोजपा और भाजपा के नेताओं ने अपने-अपने दृष्टिकोण एक दूसरे को कठघरे में खड़ा किया।
समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह उन स्वतंत्रता सेनानियों को भी अपना बताने की कोशिश कर रही है जिनका पार्टी से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् सिर्फ बोलने का नहीं बल्कि पालन करने का विषय है, और जो लोग आज़ादी की लड़ाई में शामिल नहीं हुए वे इसके महत्व को कभी नहीं समझ सकते। उनका कहना था कि यह गीत अंग्रेजों के खिलाफ जनता को एकजुट करता था और अंग्रेज इसकी लोकप्रियता से इतने घबराए कि कई जगह इसे गाने पर देशद्रोह का कानून लगाया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि आज सत्ता पक्ष हर महान व्यक्तित्व को ‘ओन’ करना चाहता है, चाहे वे उनके विचारधारा के न रहे हों।
तृणमूल कांग्रेस की सांसद डॉ. काकोली घोष दस्तीदार ने कहा कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा को आकार दिया। उनके अनुसार वंदे मातरम् एक युद्धघोष था जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा के वैचारिक पूर्वज उपनिवेशवादियों के सामने दया–याचिकाएं लिखने में व्यस्त थे और आज उनकी राजनीतिक विरासत बंगाल की सांस्कृतिक हस्तियों को छोटा दिखाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा बंकिम चंद्र को “बंकिम दा” कहकर संबोधित करने को “दिखावटी नाटक” बताया।
द्रमुक सांसद ए. राजा ने कहा कि वंदे मातरम् का विरोध इसके कुछ अंशों में मूर्ति–पूजा और धार्मिक भावना से जुड़े मुद्दों के कारण हुआ था। राजा ने प्रधानमंत्री के भाषण पर सवाल उठाते हुए पूछा कि आज देश में उन्हें किस तरह का बंटवारा दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक कारणों से यह भी कहा जाता है कि यह गीत केवल अंग्रेजों के खिलाफ ही नहीं था बल्कि मुसलमानों के खिलाफ भी समझा गया। उन्होंने नेहरू द्वारा सुभाष चंद्र बोस को लिखे पत्र का हवाला दिया जिसमें कुछ शिकायतों को तर्कसंगत बताया गया था।
तेलुगुदेशम् पार्टी के सांसद डॉ. बायरेड्डी शबरी ने कहा कि वंदे मातरम् धर्म, जाति या लिंग से ऊपर उठकर मातृभूमि को नमन करने का प्रतीक है। जदयू सांसद देवेश चन्द्र ठाकुर ने इसे राष्ट्र की आत्मा और करोड़ों लोगों की आकांक्षाओं का प्रतीक बताया। लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद राजेश वर्मा ने जवाहरलाल नेहरू पर आरोप लगाया कि उन्होंने राष्ट्रीय गीत के चार छंद हटाकर आज़ादी के लिए प्रेरणा देने वाले गीत को ‘टुकड़ों में बांट’ दिया।
भाजपा के सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा कि वंदे मातरम् राष्ट्रभक्तों के लिए ऊर्जा और राष्ट्रविरोधियों के लिए एलर्जी है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने वोट बैंक की राजनीति के चलते इस राष्ट्रगीत का हमेशा तिरस्कार किया है। ठाकुर ने दावा किया कि नेहरू ने जिन्ना को खुश करने के लिए इसके हिस्से हटाए और विभाजन भी इसी मानसिकता का नतीजा था। उन्होंने विभिन्न क्रांतिकारियों द्वारा वंदे मातरम् के प्रति सम्मान और बलिदान का विस्तृत उल्लेख करते हुए कहा कि यह गीत आज भी एकजुटता और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है। शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अरविंद सावंत और अन्य विपक्षी सदस्यों ने भी इस मुद्दे पर सरकार पर सांस्कृतिक प्रतीकों को राजनीतिक हथियार बनाने का आरोप लगाया।

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