‘NCPOR भारत के ध्रुवीय और महासागरीय अन्वेषण का केंद्र बन गया : राज्यपाल
नयी दिल्ली { गहरी खोज }: गोवा के राज्यपाल पुसापति अशोक गजपति राजू ने वास्कोडिगामा में एनसीपीओआर परिसर में अंटार्कटिका दिवस समारोह में बोलते हुए कहा कि राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र भारत के ध्रुवीय और महासागरीय अन्वेषण का आधार बन गया है।
सोमवार को राज्यपाल पुसापति ने एनसीपीओआर की स्थापना की रजत जयंती के उपलक्ष्य में एक विशेष स्मृति डाक टिकट भी जारी किया। अंटार्कटिका संधि पर 1 दिसम्बर 1959 को हस्तक्षर किए जाने की याद में दुनियाभर में हर साल 1 दिसम्बर को अंटार्कटिका दिवस मनाया जाता है। यह संधि अंटार्कटिका महाद्वीप को पूर्णत: शांति और वैज्ञानिक अनुसंधान हेतु सुरक्षित घोषित करती है।
राज्यपाल ने कहा कि केन्द्र सरकार के डाक विभाग द्वारा स्मृति डाक टिकट जारी करना एनसीपीओआर के उल्लेखनीय योगदान और 5 अप्रैल 2000 को अपनी स्थापना के बाद से ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान में राष्ट्र को समर्पित 25 वर्षों की गौरवशाली सेवा की एक महत्वपूर्ण स्वीकृति है।
उन्होंने कहा, “इस संस्थान ने 25 वर्षों से हमारी पृथ्वी के कुछ सबसे असाधारण क्षेत्रों में भारत की वैज्ञानिक कल्पना का विस्तार किया है। एनसीपीओआर ने गहरे महासागर मिशन का नेतृत्व भी किया है। यह उस विचार को आगे बढ़ाता है जो ज्ञान का एक साधन और राष्ट्रीय रणनीति का एक उपकरण दोनों है। ध्रुवीय क्षेत्र दूर लग सकता है, लेकिन इसका प्रभाव हम सभी पर पड़ता है। अंटार्कटिका में दुनिया के लगभग 70 प्रतिशत ताज़े पानी भंडार है। इस क्षेत्र के पूरी तरह पिघल जाने से दुनिया भर में समुद्र का स्तर बढ़ जाएगा और वैश्विक जलवायु स्थिरता प्रभावित होगी। 2047 तक विकसित देश बनने की आकांक्षा रखने वाले 1.4 अरब लोगों के राष्ट्र को इन परिवर्तनों के महत्व को समझना होगा, उनका पूर्वानुमान लगाना होगा और उनके लिए तैयार रहना होगा। यही एनसीपीओआर जैसे संस्थानों के महत्व को दर्शाता है।”
राज्यपाल ने आगे कहा, “गोवा ऐसे संस्थान का घर होने पर गर्व महसूस करता है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि गोवा सरकार आपके सभी भविष्य के प्रयासों में आपके वैज्ञानिक विजन का समर्थन करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध रहेगी।”
गौरतलब हो, एनसीपीओआर ध्रुवीय क्षेत्रों और दक्षिणी महासागर में भारत के वैज्ञानिक अभियानों और अनुसंधान कार्यक्रमों का नेतृत्व करने में अग्रणी रहा है। संस्थान ने अंटार्कटिका में दक्षिण गंगोत्री, मैत्री और भारती तथा आर्कटिक में हिमाद्री के साथ-साथ हिमालयी क्षेत्र में हिमांश जैसे स्थायी भारतीय अनुसंधान स्टेशनों की स्थापना किया है और उन्हें चालू किया है।
