चुनाव आयोग ने समय बढ़ाया और मेहनताना भी बढ़ाया

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सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }:
चुनाव आयोग की छवि ऐसी बनाई गई है कि वह किसी की नहीं सुनता है, वह जो करना होता है, वही करता है। वह जो कह देता है, उसे करना होता है, उसमे कोई फेरबदल नहीं होता है। यानी कुल मिलाकर यह बताने व जताने की कोशिश विपक्षी दलों की तरफ से की जाती है कि चुनाव आयोग संवेदनशील नहीं है। हकीकत में ऐसा नहीं है, हकीकत में वह संविधान से उसे जो अधिकार मिले हैं, वह उन्हीं के अनुसार कार्य करता है जबकि विपक्षी नेता चाहते हैं कि चुनाव आयोग वह सब बात मान ले जो विपक्ष कहता है। जब से १२ राज्यों में एसआईआर की घोषणा हुई है,तब से विपक्ष कई तरह के बहानों से उसे रोकने की कोशिश में लगा हुआ है। रुकवाने के लिए वह सुप्रीम कोर्ट भी गया लेकिन नहीं रुकवा पाया है तो दूसरे तरीके रुकवाने चुनाव आयोग पर तरह तरह के आरोप लगा रहा है।

एक आरोप तो यह है कि चुनाव आयोग ने बीएलओ को एसआईआर का जो काम सौंपा है, उसके लिए बीएलओ को कम समय दिया गया है।यह आरोप इसलिए भ्रामक लगता है कि उतने ही समय में बिहार मे बीएलओ ने एसआईआर करके दिखाया है और इस दौरान काम के तनाव के चलते किसी बीएलओ की मौत भी नहीं हुई। बीेएलओ वही,काम वही और समय भी वही लेकिन न तो किसी बीएलओ ने तनाव के चलते आत्महत्या की, न कोई बीएलओ बीमार हुआ. न ही किसी बीएलओ को दिल का दौरा पड़ा। लेकिन जब से १२ राज्यों में बीएलओ को एसआईआर के काम में लगाया गया है तब से आए दिन खबरे चलाई जा रहीं है कि समय कम व काम के तनाव के कारण बीएलओ बीमार पड़ रहे हैं, हार्ट अटैक आ रहा है, बीएलओ की मौत हो रही है, बीएलओ आत्महत्या कर रहे हैं। इसकी शुरूआत पं.बंगाल से हुई। इसके बाद दूसरे राज्यों से भी ऐसी खबरे आने लगी। बताया जाने लगा कि अब तक ४० बीएलओ की मौत हो चुकी है।

बीएलओ की मौत के लिए चुनाव आयोग को दोषी बताने का प्रयास भी किया जा रहा है कि उसने कम समय में ज्यादा काम कराने का आदेश दिया है, इसलिए ऐसा हो रहा है। बताने वाले यह नहीं बताते है कि देश में रोज बड़ी संख्या में लोग बीपी,शुगर व हार्टअटैक के मरीज है, वह भी अपना काम करते हैं। काम के दौरान उनकी भी मौत होती है, तब तो कोई सरकार का किसी संस्था को दोषी नहीं ठहराता है कि फलाने की मौत हो गई तो उसके लिए सरकार दोषी है, संस्था दोषी है। सरकार का काम भी,संस्था का काम भी लोगों को तय समय में करके देता पड़ता है। यह तो नियम है कि सरकारी कर्मचारी को सरकारी काम तय समय में करके देना पड़ता है। आप सरकारी कर्मचारी है तो यह आपकी जिम्मेदारी है।ऐसे में काम के दौरान किसी वजह से किसी कर्मचारी की मौत हो जाए तो उसके लिए चुनाव आयोग कैसे दोषी हो गया।१२ राज्यों में लाखों बीएलओ एसआईआर का काम कर रहे है, ज्यादातर लोग अपना काम कुशलता से कर रहे हैं और तय समय मेें काम करने पर उनको सम्मानित भी किया जा रहा है, उनके साथ कोई बुरा व्यवहार कर रहा है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है।

कई राज्यों से मांग की गई कि तय समय में काम नहीं हो पाएगा तो चुनाव आयोग ने संवेदनशीलता के साथ उस बात को समझा और एक सप्ताह का समय बढ़ा दिया है। अब चुनाव आयोग ने एक सप्ताह समय बढ़ा दिया है तो इसका स्वागत करना चाहिए तो कहा जा रहा है कि यह भी कम है, कम से कम तीन माह का समय देना चाहिए। यानी हमने तीन महीने बढ़ाने को कहा है तीन महीने बढ़ाया जाए नहीं तो हम संसद के भीतर व बाहर इसकी आलोचना करेंगे। चुनाव आयोग का काम है तो यह चुनाव आयोग को ही तय करने देना चाहिए कि वह किस तरह अपना काम करना चाहता है।उसे मजबूर नहीं किया जा सकता कि हम जैसा कह रहे हैं, आपको वैसा ही करना होगा। चुनाव आयोग को बखूबी पता है कि काम कितने समय में हो सकता है, उसने बिहार मे कराया है। बाकी राज्यों में दिक्कत है तो उसके लिए उसने समय बढ़ाया है और बीएलओ व सुपरवाइजर का मेहनताना भी तो बढ़ाया है।

एसआईआर का विरोध बिहार में किया गया इसके बाद भी बिहार मेे एसआईआर कराया गया है, यानी सभी राज्यों में एसआईआर को रोका तो नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि एसआईआर को रोका नहीं जा सकता। उसकी प्रक्रिया में गड़बड़ी हो तो उसमें सुधार के लिए कहा जा सकता है। विपक्ष ने समय बढ़ाने का मांग की तो चुनाव आयोग ने बढ़ा दिया है लेकिन विपक्ष को संसद में हंगामा करने के लिए बहाने चाहिए इसलिए वह एसआईआर को लेकर संसद में कई बहानों से हंगामा तो करेगा ही। उसके हंगामा करने से एसआईआर तो रुकने वाला नहीं है लेकिन इस बहाने विपक्ष संसद के भीतर अपनी शक्ति का दुरुपयोग हमेशा की तरह संसद न चलने देकर करेगा ही। इससे संसद में कामकाज प्रभावित होता है,सरकार का कोई काम नहीं रुकता है। नुकसान विपक्ष को होता है, सरकार को नहीं होता है।छवि विपक्ष की बिगड़ती है वह संसद नही चलते देती है। इससे उसका राजनीतिक रूप से नुकसान होता है।

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