चुनाव में पता चलेगा संगठन कितना मजबूत हुआ

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सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }:
कोई भी राजनीतिक दल हो,उसका संगठन कितना मजबूत है, इस बात का पता तो तब चलता है जब राजनीतिक दल चुनाव जीतता है, सरकार बनाता है। वैसे चुनाव के पहले माना जाता है कि संगठन मजबूत होगा तो चुनाव जीतना आसान होता है। इसलिए संगठन मे चुनाव के पहले जो कुछ भी किया जाता है वह संगठन को मजबूत करने के नाम पर किया जाता है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पिछला विधानसभा,सहित पंचायत, निगम चुनाव आदि हार गई तो माना गया कि संगठन कमजोर था, इसलिए पार्टी चुनाव हार गई। किसी ने हार की जिम्मेदारी नहीं ली, बड़े नेताओं ने नहीं ली तो प्रदेश अध्यक्ष ने भी नहीं ली।

सबने मान लिया इसके लिए कोई एक दोषी कैसे हो सकता है,इसके लिए सब जिम्मेदार हैं। हारना सामूहिक जिम्मेदारी है।कांग्रेस में अच्छी परंपरा है यह कि हार के लिए नेतृत्व कहीं से जिम्मेदार नहीं है। दिलली का नेतृत्व हार के लिए खुद को दोषी नहीं मानता है तो प्रदेश का नेतृत्व हार के लिए कैसे खुद को दोषी मान सकता है। जाहिर तौर पर तो हार के लिए वही कहा गया जो दिल्ली नेतृत्व हर चुनाव में हार के लिए कहता है। लेकिन भीतरी तौर पर माना गया कि संगठन की कमजोरी के कारण हार हुई है, इसलिए संगठन को मजबूत करने के लिए हाल ही में ४१ जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा की गई

कोई कहता है कि लोकसभा व विधानसभा चुनाव मे प्रदर्शन के आधार पर जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की गई है,जहां जहां कांग्रेस हारी वहां के जिलाध्यक्षों को बदल कर नया जिलाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। ऐसे जिलो मेंं रायपुर, बिलासपुर, धमतरी, गरियाबंद, कांकेर, कवर्धा, राजनांदगांव, रायगढ़, दंतेवाड़ा, महासमुंद, जांजगीर-चांपा सहित २५ जिले शामिल हैं। वही १६ जिलों में पुराने लोगों को मौका दिया गया है। जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में उदयपुर फार्मूले पर सख्ती से अमल करने की बात कही गई थी लेकिन कम युवाओं को मौका दिया गया है। यानी सौ फीसीदी अमल नहीं किया गया है। जिलाध्यक्षो की नियुक्ति के वक्त कहा गया था इससे वरिष्ठ नेताओं को दूर रखा जाएगा। उनके दवाब में कहीं जिला अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं की जाएगी।

नाम घोषित हो जाने के बाद कहा जा रहा है कि सूची में शामिल ज्यादातर जिला अध्यक्ष वरिष्ट नेताओं की पसंद के अऩुसार नियुक्त किए गए हैं। संगठन में पहले भी भूपेश गुट का दबदबा था, इस बार भी १५ जिलाध्यक्ष भूपेश की पसंद के बनाए गए हैं। वहीं दीपक बैज की पसंद के ८ जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं। महंत की पसंद के ६ जिला अध्यक्ष बनाए है तो सिंहदेव की पसंद के ५ जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं। सीधी सी बात है कि प्रदेश में संगठन में जिसकी पहले ज्यादा चलती थी, उसकी आगे भी ज्यादा चलेगी।
संगठन सृजन अभियान चलाकर युवाओं से खूब चर्चा की गई, नए लोगों से चर्चा की गई लेकिन नियुक्त वही वरिष्ट नेताओं के पसंद को किया गया। इससे साफ हो जाता है कि जिला अध्यक्षो की नई नियुक्ति भले ही संगठन को मजबूत करने के नाम पर की गई है लेकिन इससे संगठन मजबूत हो न हो लेकिन अपने इलाके कांग्रेस के नेता जरूर मजबूत बने रहेंगे। यह क्षेत्रीय राजनीति में बड़े नेताओं की कब्जा बनाए रखने की कोशिश है और वह इसमें पहले भी सफल रहते थे और आज भी सफल रहे हैं। बड़े नेताओं को ज्यादा चिंता पार्टी के हार जीत की नहीं रहती है, अपने क्षेत्र की राजनीति में अपना दबदबा बनाए रखने की ज्यादा होती है। इसलिए वह चाहते हैं कि उसके क्षेत्र में जिलाध्यक्ष उनका आदमी हो।

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