अपमान करने वालों को तारीफ करने की सजा

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संपादकीय { गहरी खोज }:घर हो, समाज हो या देश हो आदमी का सम्मान बनाए रखने, व्यवस्था बनाए रखने के लिए नियम व कानून बनाए जाते हैं। इस व्यवस्था व नियम का उल्लंघन करने पर सजा भी तय होती है। घर की सजा अलग होती है,समाज की सजा अलग होती है और देश की सजा अलग होती है। घर का नियम होता है लेकिन समाज व देश का कानून होता है। उसके हिसाब से कानून तोड़ने वालों को सजा दी जाती है ताकि वह फिर वैसी गलती न करे। कानून तोड़ने पर सजा देने का यह परंपरागत तरीका है।

परंपरागत तरीके से सजा का मकसद व्यक्ति में सुधार लाना होता है, उसे बताना होता है कि ऐसा करना अपराध है और अपराध की सजा मिलती है। परंपरागत तौर पर सजा आम लोगों को दी जाती है।जब समाज के एक खास वर्ग को किसी के अपमान की सजा दी जाती है तो वह ऐसी होती है कि उसे लगे कि यह तो उनके अपमान जैसा है। यह अपमान जुर्माने व जेल की सजा से ज्यादा बड़ी सजा होती है। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने देश के जाने माने कामेडियनों को ऐसी ही सजा सुनाई है।

सुप्रीम कोर्ट ने देश के जानेमाने कामेडियन समय रैना,विपुल गोयल,बलराज ,परविंदर सिंह घई और निशांत तंवर को निर्देश दिया है कि वह दिव्यांगो की सफलता की कहानियों पर आधारित कार्यक्रम अपने डिजिटल प्लेटफार्म पर दिखाए। यह कार्यक्रम महीने में कम से कम दो बार होने चाहिए। ताकि दुर्ळभ बीमारी से पीडि़त लोगों के इलाज के लिए फंड जुटाया जा सके।कोर्ट ने देश के जाने माने कामेडियनों को यह निर्देश इसलिए दिया है कि इन लोगों ने अपने शो में दिव्यांगों पर असंवेदनशील टिप्पणी की थी।

इस पर क्योर एमएमए फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दिव्यांगों की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले जोक्स पर रोक लगाने की मांग की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगों का अपमाने करने पर सजा सुनाई है कि तुम लोग अब दिव्यांगो की सफलता की कहानी लोगों को अपने कार्यक्रम में सुनाओगे।यह देश के उन कामेडियनों के लिए सबक है कि तुम अपने कार्यक्रम में किसी का भी मजाक नहीं उड़ा सकते. देश के यह कामेडियन अपने कार्यक्रम लोगों का मजाक उड़ाते रहे हैं,अब उनको दिव्यागों के लिए शो करने को कहा गया है।

यह उन कामेडियनों के लिए अच्छा सबक है कि तुमने जिनका अपमान किया अब तुमको उनका सम्मान करना है, उनकी सफलता की कहानी लोगों को सुनानी है।ऐसे लोगों को माफ नहीं किया जा सकता, इसलिए सजा ऐसी सजा देनी जरूरी थी जिससे इनको भी बुरा लगता।
दिव्यागों के अपमान को कामेडियनों को सजा देकर तो रोका नहीं जा सकता, इसके लिए जरूरी है कि कानून बनाया जाए।सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिव्यागों का मजाक उड़ाने वालों के खिलाफ एससी,एसटी जैसी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए।एससी,एसटी का अपमान करने पर जिस तरह कानूनी कार्रवाई होती है, उसी तरह दिव्यांगों की गरिमा का बचाने के लिए भी ऐसा ही कानून बनाया जाना चाहिए। इससे लोगों में डर रहेगा कि दिव्यागों का अपमान करने पर कड़ी सजा मिल सकती है। केंद्र की ओर सालिसिटर जनरल ने कहा हैकि दिव्यांगो पर टिप्पणी रोकने के लिए कुछ दिशा निर्देश बनाए जा रहे है।

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