केरल कृषि विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन से बढ़ते खरपतवार खतरों पर वैश्विक संवाद

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तिरुवनंतपुरम{ गहरी खोज }: केरल कृषि विश्वविद्यालय (केएयू) के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर, वेल्लायनी ने जलवायु और कृषि पर चर्चा के लिए वैश्विक केंद्र बनते हुए अंतरराष्ट्रीय सेमिनार “क्लाइमेट–वीड इंटरैक्शन्स : सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के लिए रणनीतियाँ (सीडब्ल्यूआईएस 2025)” की मेजबानी की।
दो दिवसीय इस आयोजन में भारत और विदेश से 233 प्रतिनिधि शामिल हुए, जिन्होंने बदलते जलवायु परिस्थितियों में खरपतवारों से बढ़ती चुनौतियों पर चर्चा की। सेमिनार का उद्घाटन क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध खरपतवार वैज्ञानिक प्रो. बी. एस. चौहान ने किया। उन्होंने बताया कि भारत में खरपतवारों के कारण हर साल 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 92 हजार करोड़ रुपये) की फसल हानि होती है और जलवायु परिवर्तन के कारण यह समस्या और गंभीर होती जा रही है।
केएयू के डीन डॉ. जैकब जॉन ने अध्यक्षीय भाषण देते हुए जलवायु-संवेदी खरपतवार प्रबंधन रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। स्वागत भाषण सीडब्ल्यूआईएस-2025 की संयोजिका डॉ. पी. शालिनी पिल्लई ने दिया। नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक श्री नागेश कुमार अनुमाला ने विशेष संबोधन में शोध को किसानों के लिए व्यावहारिक समाधान में बदलने के महत्व पर प्रकाश डाला।
उद्घाटन सत्र में सेमिनार की कार्यवाही पुस्तिका, केएयू वीड्स मोबाइल ऐप और वेल्लायनी का एग्रोक्लाइमेटिक एनालिसिस रिपोर्ट (1983–2024) का विमोचन भी किया गया, जो शोधकर्ताओं और किसानों के लिए मूल्यवान संसाधन हैं। दो दिनों तक चले कार्यक्रम में तकनीकी सत्र, मौखिक प्रस्तुतियाँ और पोस्टर प्रदर्शनी हुईं। इनमें एआई आधारित खरपतवार पहचान, यूएवी (ड्रोन) से हर्बिसाइड छिड़काव, आईओटी आधारित पोषक तत्व प्रबंधन, आक्रामक खरपतवारों का मानचित्रण और जलवायु-सहिष्णु एकीकृत खरपतवार प्रबंधन मॉडल जैसी अत्याधुनिक नवाचारों को प्रदर्शित किया गया। दूसरे दिन एक विशेष सत्र जलवायु-स्मार्ट, भविष्य-तैयार खरपतवार नियंत्रण रणनीतियों के विकास पर केंद्रित रहा।
शुक्रवार को समाप्त हुए सेमिनार ने खरपतवार और जलवायु परिवर्तन से कृषि उत्पादकता की रक्षा में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की निर्णायक भूमिका को फिर से रेखांकित किया तथा सतत कृषि अनुसंधान में केएयू की अग्रणी स्थिति को मजबूत किया।

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