सदाबहार नायक धर्मेन्द्र

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संपादकीय { गहरी खोज }: 65 वर्ष के करियर में 300 फिल्मों में काम करने वाले सदाबहार नायक धर्मेंद्र के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, धर्मेंद्र जी का निधन भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत है। वह प्रतिष्ठित फिल्मी हस्ती और अद्भुत अभिनेता थे, जिन्होंने अपनी हर भूमिका में आकर्षण और गहराई भर दी। जिस तरह से उन्होंने विविध भूमिकाएं निभाई, उसने अनगिनत लोगों के दिलों को छुआ। धर्मेंद्र जी अपनी सादगी, विनम्रता और गर्मजोशी के लिए भी उसी तरह से प्रशंसित थे। इस दुखद घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार, मित्रों और असंख्य प्रशंसकों के साथ हैं। ॐ शांति।

हिन्दी फिल्मों में 60 वर्षों से अधिक समय बिताने के बावजूद भी वे पंजाब से जुड़े रहे अपने गांव व शहर जहां उनका बचपन व जवानी का शुरुआती समय गुजरा, उसको उन्होंने हमेशा अपने दिल में बसाए रखा और पंजाब से जो कोई भी उनसे मिलने गया, उसने उनके दिलो दिमाग में बसी पंजाब की मिट्टी की उस महक को महसूस किया जो धर्मेंद्र के रंगों में बसी हुई थी। हिन्दी फिल्मों का सदाबहार नायक धर्मेंद्र आज शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं रहा लेकिन हिन्दी फिल्मों में निभाई भूमिकाओं के साथ-साथ धर्मेंद्र के जीवन के संघर्ष और सफलता के किस्से हमेशा उन्हें जिन्दा रखेंगे।

धर्मेंद्र की अनगिनत फिल्मों में से कुछ ऐसी हैं कि जिन्होंने लोगों के दिलों दिमाग में सदा के लिए अपनी जगह बनाई हैं जैसे ‘यादों की बारात’, ‘शोले” मेरा गांव मेरा देश’,’ धर्मवीर’, ‘लोफर’,’ रजिया सुल्तान’,’ शालीमार’ इत्यादि। व्यक्तिगत रूप से फिल्म फूल और पत्थर का नायक धर्मेंद्र आज भी मेरा नायक है। उस फिल्म में एक गुस्सैल, अड़ियल और सरल स्वभाव के साथ-साथ एक संघर्षशील इंसान की भूमिका निभाते हुए इंसानियत को जिस तरह दर्शाया वह भाव आज भी दिल को छू लेता है। उस समय 14 वर्ष के करीब रहा हूंगा, आज 74 का हूं। जालंधर के नाज सिनेमा में फूल और पत्थर’ फिल्म लगी थी। नाज सिनेमा कुछ वर्ष पहले अपना अस्तित्व खो चुका है। धर्मेंद्र के निधन के साथ दोनों स्मृति शेष ही रह गए हैं। जीवन को लेकर धर्मेंद्र का कहना था कि मुझे अपनी जिंदगी में वह सब मिला, जिसका मैं हकदार था। मैं पंजाब के एक गांव का लड़का था। मुझे एक्टिंग का ए भी नहीं मालूम था। ऐसा लगता है कि यह अभी कुछ दिन पहले की बात है, जब मैं लुधियाना के एक गांव से सपने संजोकर मुंबई आया था। मेरी जेब में कुछ नहीं था, लेकिन आंखों में सपने थे। फिर वह दिन, जब मैंने पहली बार खुद को बड़े परदे पर देखा, सबसे खूबसूरत पल तब आया, जब मेरे बच्चों ने अपने रास्ते चुने और मैंने उन्हें कलाकार बनते देखा। मेरी पूरी जिंदगी इन्हीं पलों में बसती है। मेरी जिंदगी ही एक फिल्म के समान है। मैं खुद को हमेशा खुश रखने की कोशिश करता हूं। मन और तन, दोनों को शांत और सक्रिय रखना मेरी जिंदगी की आदत बन चुकी है। यही मेरी असली दवा है, जो मुझे हर दिन जिंदा और तरोताजा बनाए रखती है। मैं रोज ‘अलाप’ की प्रैक्टिस करता हूं, ताकि मेरी आवाज की पकड़ बनी रहे, वह भी एक तरह की साधना है।

इतने वर्षों बाद भी मुझे देश के लोगों से बहुत प्यार मिलता है! मैंने जरूर पिछले जन्म में कुछ सही किया होगा। प्रशंसकों का प्यार मेरे लिए सबसे कीमती तोहफा है।

मैं चाहता हूं कि मैं जब जाऊं, तो मुझे मुस्कराकर याद किया जाए। सच तो यह है कि मुझे लगता है कि मुझे इस धरती पर प्यार फैलाने के लिए भेजा गया है। जिंदगी में आप जितना देते हैं, उतना ही अच्छा पाते हैं। मैं एक किसान का बेटा हूं। खेत की मिट्टी सिर्फ हाथों पर नहीं, दिल पर भी असर करती है। उसी मिट्टी से मुझे जड़ें मिली हैं, सादगी मिली है। आज भी जब मैं फार्महाउस पर होता हूं, तो गायों से बातें करता हूं, उनके नजदीक बैठता हूं, पेड़ों की छांव में कुछ पल गुजारता हूं। वहां मुझे चैन मिलता है।

मैं यह नहीं कहूंगा कि राजनीति में आना कोई गलती थी, लेकिन एक अभिनेता को राजनीति में नहीं आना चाहिए, क्योंकि इससे दर्शकों और प्रशंसकों के बीच आपकी आम स्वीकार्यता बंट जाती है। एक अभिनेता को हमेशा अभिनेता ही रहना चाहिए। मेरे लिए इतने सालों में मेरे प्रशंसकों से मिला प्यार और समर्थन ही सबसे बड़ी उपलब्धि है। मुझे राजनीति में घुटन महसूस होती थी। जिस दिन मैंने हां कहा, मैं वॉशरूम गया और शीशे में अपना सिर पटककर अपने किए पर पछतावा किया। राजनीति ऐसी चीज है, जो मैं कभी नहीं करना चाहता था। उम्र और मौत एक ऐसी सच्चाई है, जिसका हम सबको सामना करना पड़ता है। राजा हो या रंक, सबको जाना ही पड़ता है। कोई ख्वाहिश बाकी नहीं, मैंने पूरी जिंदगी जी है।

अब मेरी अगली पीढ़ी जी रही है। यही सब से बड़ी तसल्ली है हम सिर्फ पिता पुत्र या पिता पुत्री नहीं है। हम एक दूसरे के हमसफर हैं। जीवन के फलसफे को लेकर जो कुछ नायक धर्मेंद्र ने कहा है वह उनकी मानसिक परिपक्वता व भावनाओं को तो दर्शाता ही है, साथ में जीवन के सत्य का भी एहसास कराता है कि हर इंसान को एक दिन तो जाना ही है। हम सब हमसफर ही हैं जीवन भी एक फिल्म की तरह ही है। धर्मेंद्र की तरह हर इंसान एक किरदार ही निभा रहा है। धर्मेंद्र का जीवन हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपना-अपना किरदार ईमानदारी और शिद्दत के साथ निभाएं। यही सदाबहार नायक को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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