विकलांगों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों पर सख्त कानून पर विचार करे केंद्र: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली{ गहरी खोज }: दिव्यांगजनों की गरिमा की रक्षा के लिए सख्त कानून की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह ऐसा कानून बनाने पर विचार करे, जिसके तहत विकलांग व्यक्तियों और दुर्लभ आनुवंशिक रोगों से पीड़ित लोगों का मज़ाक उड़ाने या अपमानजनक टिप्पणी करने को SC-ST एक्ट की तर्ज पर दंडनीय अपराध बनाया जाए। SC-ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 जातिगत अपमान, भेदभाव, अपमान और हिंसा को अपराध घोषित करता है और इन अपराधों को गैर-जमानती बनाता है। मुख्य न्यायाधीश सुर्या कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, “आप SC-ST एक्ट की तरह सख्त कानून क्यों नहीं लाते? जिसमें जातिगत अपमान पर सज़ा होती है—तो फिर विकलांगों का अपमान क्यों बर्दाश्त किया जाए?” केंद्र का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट की टिप्पणी की सराहना की और कहा कि किसी की गरिमा की कीमत पर हास्य नहीं हो सकता। पीठ ने यह भी कहा कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अश्लील, आपत्तिजनक और अवैध सामग्री को नियंत्रित करने के लिए “तटस्थ, स्वतंत्र और स्वायत्त” निकाय की आवश्यकता है।
सूचना प्रसारण मंत्रालय ने कोर्ट को बताया कि इस विषय पर दिशानिर्देश तैयार किए जा रहे हैं। अदालत ने मंत्रालय से कहा कि इन दिशानिर्देशों को सार्वजनिक चर्चा के लिए जारी किया जाए और मामले को चार हफ्ते बाद सूचीबद्ध किया।
मामला SMA Cure Foundation की याचिका से जुड़ा है, जो दुर्लभ स्पाइनल मस्कुलर अट्रॉफी (SMA) बीमारी से प्रभावित लोगों के लिए काम करती है। याचिका में “इंडियाज़ गॉट लैटेंट” के होस्ट समय रैना और अन्य इन्फ्लुएंसर्स—विपुन गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर, और निशांत जगदीश तंवर—द्वारा विकलांगों का मज़ाक उड़ाने पर आपत्ति दर्ज कराई गई थी। पीठ ने रैना समेत सभी कॉमेडियनों को निर्देश दिया कि वे प्रति माह दो कार्यक्रम या शो आयोजित करें, जिनमें विकलांग व्यक्तियों की सफलता की कहानियों को प्रस्तुत किया जाए, ताकि SMA पीड़ितों और अन्य दिव्यांग व्यक्तियों के इलाज के लिए धन एकत्र किया जा सके। कोर्ट ने इसे “सामाजिक दंड” बताया और अन्य दंडात्मक कार्रवाई से छूट दी।
CJI कांत ने कहा कि ये इन्फ्लुएंसर्स विशेष रूप से सक्षम लोगों को अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आमंत्रित कर सकते हैं, ताकि जागरूकता और फंडिंग दोनों को बढ़ावा मिल सके। क Cure Foundation की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि SMA से पीड़ित कई बच्चों ने बड़ा मुकाम हासिल किया है और उनके माता-पिता क्राउडफंडिंग के जरिए इलाज का खर्च जुटा रहे हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि फाउंडेशन ने समय रैना द्वारा 2.5 लाख रुपये दान करने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि “मसला सम्मान का है।” सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह मुद्दा केवल “अश्लीलता” नहीं बल्कि “विकृत सामग्री” से जुड़ा है, जो व्यक्तियों द्वारा अपने YouTube चैनलों और अन्य प्लेटफॉर्मों पर डाली जाती है। पीठ ने कहा कि स्व-नियमन (self-regulation) पर्याप्त नहीं है और यदि यह व्यवस्था प्रभावी होती तो उल्लंघन इतनी बार न होते। पहले भी कोर्ट ने कहा था कि व्यावसायिक और निषिद्ध भाषण मौलिक अधिकारों के दायरे में नहीं आते। कोर्ट ने पांच सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को अपने पॉडकास्ट या शो में बिना शर्त माफी दिखाने के लिए निर्देश दिए थे।

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