वादे पे करके एतबार परेशान है बंदा सीधा सादा
सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }:छत्तीसगढ़ के बाद कर्नाटक में जो हो रहा है, उसे देखते हुए तो कहा जा सकता है कि इतिहास अपने को दोहरा रहा है। जो घटना एक बार घट जाती है,आमतौर पर जल्दी तो दूसरी बार घटित नहीं होती है लेकिन राजनीति में कोई नेता बार बार वही गलती करता है तो वैसी ही घटना दो बार क्या कई बार हो सकती है। जो नेता एक घटना से सबक लेता है, वह वैसी ही गलती दूसरी बार नहीं करता है। कांग्रेस में तो आलाकमान आलाकमान होता है, उससे कौन कह सकता है कि एक बार आप ऐसी गलती कर चुके हो, दूसरी बार ऐसी गलती मत करो। कांग्रेस में तो माना ही यही जाता है कि आलाकमान कभी गलती नही करता है, वह जो कुछ करता है, सही करता है, एक बार करे या दोबार करे या तीन बार करे,वह हर बार सही करता है।
कांग्रेस चुनाव न जीते तो कोई समस्या नहीं होती है, जैसा चल रहा है, वैसा चलता रहता है।कांग्रेस जहां चुनाव जीत जाती है, उस राज्य में समस्या पैदा हो जाती है। कांग्रेस चुनाव हारे तो कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है, कांग्रेस चुनाव जीते जाए तो एक नहीं कई लोग जीत का सेहरा अपने सर खुद ही बांधकर सीएम बनने का दावा पेश कर देते हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस चुनाव जीती तो यही हुआ, मप्र,राजस्थान में जीती तो यही हुआ, कर्नाटक में कांग्रेस जीती तो यही हुआ। दोनों जगह दो दो लोग सीएम बनना चाहते थे, कोई किसी के लिए सीएम का पद छोड़ने को तैयार नहीं था तो जो छत्तीसगढ़ में किया गया वही कर्नाटक में भी किया गया। आलाकमान ने फैसला किया कि दोनों दावेदार ढाई ढाई साल सीएम रहेंगे।
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल टीएस सिंहदेव से ज्यादा होशियार निकले, उन्होंने कहा कि आलाकमान का फैसला सिरमाथे पर पहले मैं सीएम बनूंगा। सीधे सादे टीएस सिंहदेव ने यकीन कर लिया कि जब आलाकमान ने कह दिया है तो वह ढाई साल बाद सीएम बनेंगे ही। उन्होंने ढाई साल इंतजार किया।ढाई साल पूरे हुए तो वही हुआ आज कर्नाटक में हो रहा है। भूपेश बघेल ने ढाई साल में ज्यादातर विधायकों को अपना बना लिया। उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा देने की जगह दिल्ली में विधायकों को भेजकर आलाकमान को संदेश दे दिया कि विधायक तो उनके साथ हैं और सीएम तो वही होता है जिसके साथ विधायक होते है। सिंहदेव कोई विधायक दिल्ली में पेश नहीं किए इसलिए वह सीएम नहीं बन सकेॆ। इस आधार पर कहा जाता है कि आलाकमान ने सिंहदेव से जो वादा किया था,वह पूरा नहीं हुआ।
छत्तीसगढ़ में आलाकमान के वादे पर एतबार कर सिंहदेव इंतजार करते रहे कि कब उनको सीएम बनाया जाएगा, कर्नाटक में डीके शिवकुमार सिध्दारमैया के ढाई साल पूरे होने पर इंतजार कर रहे हैं कि आलाकमान कब अपना वादा पूरा करेगा।सिंहदेव व शिवकुमार में फर्क यह है कि टीएससिंहदेव के पास विधायक नहीं थे और डीके शिवकुमार के पास विधायक है, वह दिल्ली जाकर चाह रहे हैं कि आलाकमान अपना वादा पूरा करे। फैसला तो आलाकमान को करना पड़ेगा।जिसके साथ ज्यादा विधायक होंगे, सीएम तो उसी को बनाना होगा। लोकतंत्र में तो यही होता है।बहुमत जिसके साथ सीएम की कुर्सी उसी की। शिवकुमार चाहते हैं कि वादे के मुताबिक सिध्दारमैया खुद ही इस्तीफा दें, सिध्दारमैया चाहते है कि आलाकमान उनको इस्तीफा देने के लिए कहे।आलाकमान ने अब तक कोई फैसला नहीं किया लेकिन कोई फैसला तो करना पड़ेगा। साथ ही फायदे व नुकसान को भी सोचना होगा।
