उपनिवेशवादी मानसिकता छोड़कर राष्ट्रीय सोच अपनाने का मार्गदर्शक दस्तावेज है संविधान : राष्ट्रपति

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नई दिल्ली{ गहरी खोज },: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बुधवार को संविधान दिवस समारोह में कहा कि संविधान उपनिवेशवादी मानसिकता छोड़कर राष्ट्रीय सोच अपनाने का मार्गदर्शक दस्तावेज है। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने नागरिकों के व्यक्तिगत और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा को सर्वोपरि माना। इसी के चलते आज महिलाएं, युवा, एससी, एसटी, किसान, मध्य वर्ग और नव-मध्य वर्ग लोकतंत्र को मजबूत बना रहे हैं। उन्होंने 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर लाने को देश की बड़ी उपलब्धि बताया।
राष्ट्रपति ने संविधान सदन के केंद्रीय कक्ष में आज आयोजित समारोह की अध्यक्षता की। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, केंद्रीय मंत्री और दोनों सदनों के सदस्य शामिल हुए। इस दौरान संविधान का नौ भाषाओं मलयालम, मराठी, नेपाली, पंजाबी, बोडो, कश्मीरी, तेलुगु, ओडिया और असमिया में डिजिटल संस्करण जारी किया गया। इसके अलावा संस्कृति मंत्रालय द्वारा तैयार स्मारक पुस्तिका भारत के संविधान से कला और कैलीग्राफी (हिन्दी संस्करण) का विमोचन किया गया। कार्यक्रम को लोकसभा अध्यक्ष और उपराष्ट्रपति ने संबोधित किया। इसके बाद राष्ट्रपति का अभिभाषण हुआ ।
राष्ट्रपति ने कहा कि तीन तलाक से जुड़ी सामाजिक बुराई को रोक कर संसद ने बहनों और बेटियों के सशक्तीकरण की दिशा में इतिहास रचा है। उन्होंने बताया कि जीएसटी स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा कर सुधार है, जिसने आर्थिक एकीकरण को मजबूत किया। अनुच्छेद 370 की समाप्ति ने राष्ट्रीय राजनीतिक एकीकरण में आ रही बाधा को दूर किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि 2015 में बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के साल में, हर वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया गया था। इस दिन पूरा देश हमारे संविधान और इसे बनाने वालों के प्रति अपना सम्मान दिखाता है। संविधान दिवस मनाने की परंपरा शुरू करने और इसे जारी रखने की पहल शब्दों से परे तारीफ के काबिल है।
उन्होंने कहा कि हमारा संविधान हमारे राष्ट्रीय गौरव का दस्तावेज़ है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान और औपनिवेशिक सोच को छोड़कर राष्ट्रवादी सोच के साथ देश को आगे बढ़ाने का मार्गदर्शक है। इसी भावना के साथ और सामाजिक तथा तकनीकी विकास को ध्यान में रखते हुए आपराधिक न्याय तंत्र से जुड़े ज़रूरी कानून लागू किए गए हैं। सज़ा के बजाय न्याय की भावना पर आधारित भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू किए गए हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले कुछ सालों में महिला मतदाताओं के मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी ने हमारी लोकतांत्रिक सोच को खास सामाजिक पहचान दी है। महिलाएं, युवा, गरीब, किसान, अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग, पिछड़े तबके के लोग, मध्यम वर्ग और नया मध्यम वर्ग-पंचायत से लेकर संसद तक हमारे लोकतांत्रिक तंत्र को मज़बूत कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे संसदीय तंत्र की सफलता के पक्के सबूत के तौर पर आज भारत तेज़ी से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बनने की ओर बढ़ रहा है। भारत ने आर्थिक न्याय के पैमाने पर दुनिया की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक हासिल की है, जिसमें लगभग 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर लाना है। राष्ट्रपति ने कहा कि संसद के सदस्य हमारे संविधान और लोकतंत्र की शानदार परंपरा के वाहक, निर्माता और गवाह हैं। उन्होंने भरोसा जताया कि यह मार्गदर्शन में भारत को एक विकसित देश बनाने का संकल्प ज़रूर पूरा होगा।
उन्होंने कहा कि संसदीय तंत्र अपनाने के पक्ष में संविधान सभा में दिए गए मजबूत तर्क आज भी काम के हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आज दुनिया भर की कई लोकतंत्र के लिए एक मिसाल है। हमारे संविधान की आत्मा को दिखाने वाले आदर्श हैं: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय; आज़ादी, बराबरी और भाईचारा। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि इन सभी मामलों में, संसद के सदस्यों ने संविधान बनाने वालों के विज़न को असलियत में बदला है। उल्लेखनीय है कि संविधान दिवस हर वर्ष 26 नवंबर को मनाया जाता है। इसी दिन 1949 में संविधान सभा ने इसी केंद्रीय कक्ष में भारत के संविधान को अंगीकृत किया था।
उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति सीपी राधाकृष्णन ने अपने संबोधन में भारतीय संविधान की दूरदृष्टि, मूल्यों और स्थायी विरासत पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 2015 से 26 नवंबर संविधान दिवस के रूप में मनाया जा रहा है, जो अब हर नागरिक का उत्सव बन चुका है। डॉ. भीमराव आंबेडकर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और अन्य महान नेताओं द्वारा तैयार संविधान राष्ट्र की आत्मा को प्रतिबिंबित करता है।
उन्होंने कहा कि भारत का लोकतंत्र प्राचीन परंपराओं में निहित है और हालिया चुनावों में भारी मतदान इसी विश्वास को दर्शाता है। उन्होंने नारी शक्ति वंदन अधिनियम और जनजातीय समुदायों के योगदान को भी रेखांकित किया। उन्होंने संविधान के मूल्यों को सर्वोच्च मानते हुए विकसित भारत 2047 के संकल्प को दोहराया।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संविधान दिवस समारोह में राष्ट्र से संविधानिक मूल्यों को व्यवहार में उतारने का आह्वान किया और इसे विकसित भारत की दिशा में पहला अनिवार्य कदम बताया। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि प्रस्तावना का ‘हम भारत के लोग’ केवल शब्द नहीं, बल्कि भारत की एकता, सामूहिक शक्ति और जन-कल्याण की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति है। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि संविधान द्वारा सुनिश्चित न्याय, समान अवसर और मानवीय गरिमा ही भारत के लोकतांत्रिक चरित्र की सबसे मजबूत नींव है।

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