प्रदूषण में घर के अंदर कैसे सुरक्षित, जब घर के भीतर भी वही जहरीली हवा है: डॉक्टर
लाइफस्टाइल डेस्क { गहरी खोज }: दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के बीच लोग मानते हैं कि घर में रहने से वे काफी हद तक सुरक्षित हो जाते हैं। प्रदूषण के चलते बच्चों की आउटडोर एक्टिविटीज बंद हो रही हैं। छोटी क्लास के बच्चों के स्कूल ऑनलाइन कर दिए गए हैं। लेकिन हम सभी के मन में ये सवाल आता है कि घर के अंदर रहो या बाहर, स्कूल जाओ या घर से ऑनलाइन क्लास करो हवा तो वही है। जब दिल्ली एनसीआर की पूरी हवा ही जहरीली है तो वो घर के अंदर रहने पर भी गंदी प्रदूषण वाली हवा फेफड़ों के अंदर जाएगी और घर के बाहर रहेंगे तो भी ये दूषित हवा ही शरीर के अंदर जाएगी। आइये डॉक्टर से जानते हैं इसके पीछे का कारण क्या है?
डॉक्टर कुनाल बहरानी (चेयरमैन एवं ग्रुप डायरेक्टर, न्यूरोलॉजी, यथार्थ अस्पताल, सेक्टर 20, फरीदाबाद)के मुताबिक, प्रदूषण सिर्फ बाहर का खतरा नहीं है। यह घर के अंदर भी उतना ही खतरनाक है और हमारे दिमाग पर सीधे हमला करता है। यही सबसे बड़ा भ्रम है। घर के अंदर की हवा साफ है। जबकि कई बार घर के भीतर की हवा बाहर की हवा से भी अधिक प्रदूषित हो सकती हैऔर यह शरीर के साथ-साथ दिमाग के लिए भी गंभीर खतरा बन जाती है। डॉक्टर कुनाल बहरानी बताते हैं कि इनडोर एयर पॉल्यूशन का असर सिर्फ फेफड़ों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह हमारे नर्वस सिस्टम, ध्यान, याददाश्त, मूड और संज्ञानात्मक क्षमता (cognitive function) पर भी गहरा प्रभाव डालता है।
घर के अंदर भी जहरीली हवा, फिर कैसे सुरक्षित?
बाहर की हवा ही घर में प्रवेश करती है। हवा में PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कण इतने छोटे होते हैं कि वे खिड़कियों, दरवाजों, वेंटिलेशन गैप और यहां तक कि एसी की फाइन फिल्टरिंग से भी अंदर आ जाते हैं। इतना ही नहीं घर के अंदर किचन में गैस चूल्हा, अगरबत्ती/मोमबत्ती, धूल, पेंट, फर्नीचर से निकलने वाले रसायन, पालतू जानवरों की डेंडर, ह्यूमिडिटी बढ़ने पर फफूंद (mold) का कारण भी बन सकते हैं। जब ये कण बाहर के प्रदूषण के साथ मिल जाते हैं तो इनडोर एयर क्वालिटी और खराब हो जाती है। कई बार तो बंद कमरों में हवा पास न हो पाने के कारण जहरीले कण कई घंटों तक रुके रहते हैं, जिससे सांस और दिमाग दोनों पर लगातार असर पड़ता है।
घर के अंदर प्रदूषण का असर कम कैसे?
डॉक्टर बहरानी ने बताया आप घर के अंदर प्रदूषण से सिर्फ तब बच सकते हैं जब आप घर के अंदर 2–3 लेयर प्रोटेक्शन वाला एयर प्यूरीफायर इस्तेमाल करते हैं। HEPA + Activated Carbon फ़िल्टर वाला प्यूरीफायर चुनें और उसे दिनभर में करीब 8–10 घंटे चलाएं। इससे घर के अंदर की हवा साफ हो जाएगी। ऐसी कंडीशन में घर के अंदर रहना सुरक्षित माना जाता है। घर की खिड़कियां खोलनी हैं तो इसके लिए सुबह 11 बजे से शाम 3 बजे तक का समय ठीक है। इस वक्त AQI सुबह जल्दी और देर शाम से बेहतर रहता है। सिर्फ वेंटिलेशन के लिए थोड़ी देर ही खिड़की खोलें। घर में खाना बनाते वक्त किचन में चिमनी और एग्जॉस्ट हमेशा चालू रखें। कुकिंग इनडोर PM2.5 को कई गुना बढ़ा देती है। घर में मोमबत्ती, अगरबत्ती या धूप जलाने से बचें। ये बारीक कण और टॉक्सिन छोड़ते हैं। जितना हो सके घर के अंदर इनडोर प्लांट लगाएं। इससे ऑक्सीजन बढ़ती है, प्रदूषण नहीं हटता यह मिथक न मानें। पौधे कमरे की हवा को जिस मात्रा में साफ कर सकते हैं, वह व्यावहारिक रूप से बहुत कम होती है। घर के अंदर पानी, धूल और नमी का संतुलन बनाए रखें। घर में कहीं भी मोल्ड यानि फंगस पैदा न होने दें। ये दिमाग और सांस दोनों के लिए हानिकारक है।
घर में कैसे प्रदूषण से सुरक्षित रहें?
प्रदूषण के वक्त घर के अंदर रहने की सलाह खास लोगों को दी जाती है। जैसे अगर नवजात बच्चे हैं तो उन्हें घर के अंदर आसानी से रखा जा सकता है। घर की हवा को एयर फ्यूरीफायर से साफ करके बच्चे को घर में अंदर ही रखें। बुजुर्ग लोगों को भी इस वक्त घर से बाहर निकलने से बचना चाहिए। इससे उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। अगर घर में कोई मरीज है तो उसे भी इस वक्त बाहर निकलने से रोकना चाहिए।
प्रदूषण का दिमाग पर असर
बढ़ते प्रदूषण का असर हमारी ब्रेन हेल्थ से जुड़ा है। दिमाग पर इसका बुरा असर हो रहा है।
नर्व इन्फ्लेमेशन- प्रदूषण के अल्ट्रा-फ़ाइन कण खून के जरिए दिमाग तक पहुंच जाते हैं और न्यूरॉन में सूजन पैदा करते हैं। इससे सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, माइग्रेन, थकान जैसी समस्याओं का कारण पैदा हो सकता है।
कॉग्निटिव स्लोडाउन- कई अध्ययन बताते हैं कि प्रदूषण IQ, मेमोरी और फोकस को कम कर देता है। बच्चे और बुजुर्ग इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। उनकी सोचने और निर्णय लेने की क्षमता कम होती है।
हार्मोनल डिसरप्शन और मूड समस्याएं- प्रदूषित हवा से शरीर में तनाव हार्मोन बढ़ते हैं, जिससे एंग्ज़ायटी, मूड स्विंग्स, नींद की समस्या हो सकती है।
न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का जोखिम- लंबे समय तक खराब हवा के संपर्क में रहने से अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
