झुलसाने वाली गर्मी और बढ़ता बिजली बोझ भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को कमजोर कर सकता है: रिपोर्ट
नई दिल्ली{ गहरी खोज }: रिकॉर्ड तोड़ हीटवेव देश में बिजली की मांग को सीधा बढ़ावा दे रही है और इसके चलते भारत की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। गुरुवार को जारी एक नए अध्ययन ने यह चेतावनी दी है और कहा है कि भारत को “हीट-पावर ट्रैप” से बाहर निकालने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण और स्मार्ट ग्रिड अवसंरचना में तत्काल निवेश की आवश्यकता है।
‘ब्रेकिंग द साइकिल’ शीर्षक वाली रिपोर्ट—जो क्लाइमेट ट्रेंड्स और क्लाइमेट कम्पैटिबल फ्यूचर्स ने संयुक्त रूप से जारी की—दर्शाती है कि पिछले दस वर्षों में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वाले हीटवेव दिनों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है। 2015 से 2024 के बीच 14 राज्यों में गर्मियों की गर्मी की तीव्रता में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
रिपोर्ट में कहा गया कि 2024 में भारत का वार्षिक औसत तापमान 1991-2020 के आधार रेखा की तुलना में 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। तापमान बढ़ने के साथ बिजली की मांग भी समान गति से बढ़ी—सिर्फ हीटवेव परिस्थितियों के कारण अप्रैल-जून 2024 के दौरान भारत की पीक पावर मांग में लगभग 9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जिसके चलते 327 मिलियन टन CO₂ उत्सर्जन हुआ। पिछले दशक में गर्मियों के महीनों में जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली की खपत से 2.5 गीगाटन CO₂ उत्सर्जन हुआ। क्लाइमेट कम्पैटिबल फ्यूचर्स के सीईओ डॉ. मनीष राम ने कहा,
“बढ़ते तापमान ने बिजली की मांग में लगातार वृद्धि की है, खासकर कूलिंग जरूरतों के लिए, जिसके चलते जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता और बढ़ रही है। गर्मियों में मांग बढ़ने पर जीवाश्म ईंधन से बिजली उत्पादन ने उत्सर्जन और वायु प्रदूषण को और बिगाड़ दिया है। इस चक्र को तोड़ना आवश्यक है, अन्यथा कमजोर समुदायों पर इसका प्रभाव असमान रूप से बढ़ेगा।”
हालांकि नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 2015 के 84 गीगावॉट से बढ़कर 2024 में 209 गीगावॉट हो गई है, फिर भी भारत की मुख्य बिजली आपूर्ति कोयले पर ही आधारित है। इसी अवधि में जीवाश्म ईंधन क्षमता 195 गीगावॉट से बढ़कर 243 गीगावॉट हो गई।
पिछले दशक में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में 121 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। रिपोर्ट में बताया गया कि जिन क्षेत्रों में पहले से ही कठोर गर्मियां पड़ती हैं, वहीं पावर ग्रिड पर सबसे अधिक दबाव दर्ज किया जा रहा है। मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ सहित मध्य और पूर्वी राज्यों में 2014-2024 के दौरान औसतन 50 हीटवेव दिन annually रहे।उत्तरी राज्यों—दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा—में गर्मियों के तापमान में सबसे तेज़ बढ़ोतरी दर्ज हुई। पहले अपेक्षाकृत ठंडे माने जाने वाले क्षेत्रों में भी गर्मी तेज़ी से बढ़ रही है। उत्तराखंड में हीटवेव दिनों की संख्या 2023 में शून्य से बढ़कर 2024 में 25 हो गई, और उसके ग्रीष्म तापमान में 11.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। लद्दाख में 9.1 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।अध्ययन ने कहा कि “हीट-पावर फीडबैक लूप” का सबसे गंभीर प्रभाव ग्रामीण और निम्न-आय आबादी पर पड़ता है, जो गर्मी के तनाव और बिजली आपूर्ति में बाधाओं दोनों का सामना करती है। अपर्याप्त कूलिंग सुविधाएं, बिजली की अनियमित उपलब्धता और कमजोर अवसंरचना इन सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को और गहरा कर रही हैं।
डॉ. राम ने कहा कि जिन राज्यों में गर्मी-जनित बिजली मांग बढ़ रही है, उन्हें “तुरंत नवीकरणीय ऊर्जा और भंडारण क्षमता का विस्तार करना चाहिए”, क्योंकि पर्याप्त स्टोरेज और लचीले ग्रिड सिस्टम के बिना सौर और पवन ऊर्जा का एकीकरण अपनी सीमाएं दिखा रहा है।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि हीटवेव और बिजली संकट को अब “दो अलग-अलग संकट” नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा, “इससे बाहर निकलने का एकमात्र टिकाऊ उपाय है हमारी ग्रिड प्रणाली को अपग्रेड करना, स्टोरेज में निवेश बढ़ाना और लचीली, जलवायु-सक्षम बिजली व्यवस्था बनाना। बिना इन निवेशों के, हर गर्मी हमें जीवाश्म ईंधन पर और निर्भर बना देगी और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ेगा। इस चक्र को तोड़ना समानता के लिए अनिवार्य है।”
रिपोर्ट में भारत के हीट एक्शन प्लान (HAPs) में गंभीर कमियों को उजागर किया गया—फिलहाल केवल चार राज्य, तीन शहर और एक जिला ही सौर ऊर्जा या बैटरी स्टोरेज जैसे नवीकरणीय आधारित बैकअप सिस्टम को अपनी हीट तैयारी योजनाओं में शामिल करते हैं।
इसमें ऊर्जा योजना को जलवायु अनुकूलन से जोड़ने, नवीकरणीय बैकअप सिस्टम, मांग पूर्वानुमान और शहरी कूलिंग रणनीतियों को एकीकृत करने की सिफारिश की गई।
रिपोर्ट में उद्धृत एम्बर और CREA (सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर) के हालिया अध्ययनों में कहा गया कि यदि भारत 2032 की क्षमता लक्ष्यों को पूरा करता है तो नए कोयला संयंत्रों के विस्तार से बचा जा सकता है, और यदि भारत 2035 तक प्रति वर्ष 50 गीगावॉट नवीकरणीय क्षमता जोड़ता है, तो कोयला आधारित बिजली उत्पादन में गिरावट आ सकती है।
