उच्च न्यायिक सेवा में पदोन्नत न्यायाधीशों को कोटा देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

0
images-18

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उच्च न्यायिक सेवा (HJS) में पदोन्नत न्यायाधीशों को कोटा देने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया और कहा कि देश में ऐसा कोई “सामान्य असंतुलन” नहीं है, जिसके आधार पर इस तरह के आरक्षण को उचित ठहराया जा सके। अदालत ने कहा कि केवल “अनुभूत असंतोष” या “क्लेश” को आधार बनाकर कैडर के भीतर कृत्रिम वर्गीकरण नहीं बनाया जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि चयन श्रेणी और सुपर टाइम स्केल का निर्धारण कैडर के भीतर ही मेरिट-कम-सीनियरिटी के आधार पर होता है और यह निचली अदालतों में सेवा की लंबाई या वहां के प्रदर्शन से प्रभावित नहीं हो सकता। अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि उपलब्ध सांख्यिकीय आंकड़े भी इस बात का कोई ठोस आधार नहीं देते कि नियमित प्रमोटियों (RPs) के असंतोष को न्यायसंगत माना जाए।
पीठ के अनुसार निचली न्यायपालिका में कार्यरत अधिकारियों के पास जिला न्यायाधीश बनने के पर्याप्त अवसर मौजूद हैं और उन्हें सीधे जिला न्यायाधीश के रूप में भर्ती होने का मौका भी मिलता है। अदालत ने कहा कि निचली अदालतों में किया गया कार्य या वहां का अनुभव उच्च न्यायिक सेवा के भीतर वर्गीकरण का तार्किक आधार नहीं बन सकता, और न ही व्यक्तिगत करियर आकांक्षाओं को न्यायपालिका की स्वतंत्रता और मजबूती से जोड़कर नियमों को बदला जा सकता है।
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने जिला न्यायाधीशों के पदों को भरने के लिए नई व्यवस्थाएँ भी लागू कीं। अदालत ने कहा कि उच्च न्यायिक सेवा में अधिकारियों की वरिष्ठता वार्षिक चार-बिंदु रोस्टर के आधार पर तय होगी, जिसमें उस वर्ष नियुक्त होने वाले अधिकारियों को क्रमशः दो नियमित प्रमोटी, एक सीमित विभागीय प्रतिस्पर्धी परीक्षा (LDCE) और एक डायरेक्ट भर्ती के अनुसार शामिल किया जाएगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी वर्ष की भर्ती प्रक्रिया देरी से पूरी होती है और उस बीच अन्य स्रोतों से नियुक्ति नहीं हुई है, तो देरी से नियुक्त अधिकारी भी उसी वर्ष के रोस्टर के अनुसार वरिष्ठता प्राप्त करेंगे।
निचली न्यायपालिका में वरिष्ठता और करियर प्रगति से जुड़े मुद्दों को लेकर 1989 में ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन (AIJA) की ओर से याचिका दायर की गई थी। इसी याचिका के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने 7 अक्टूबर को करियर ठहराव से संबंधित प्रश्नों को संविधान पीठ के समक्ष भेजा था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *