मध्य प्रदेश सिविल जज–2022 परिणाम पर कांग्रेस ने उठाए सवाल, आदिवासी युवाओं के साथ बताया अन्याय
भोपाल{ गहरी खोज }: मप्र में सिविल जज परीक्षा 2022 को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। सिविल जज के कुल 191 पदों में से 121 पद आदिवासी का चयन न होने पर कांग्रेस नेताओं ने आपत्ति जताई है। आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और झाबुआ विधायक डॉ विक्रांत भूरिया ने मप्र आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामू टेकाम के साथ बुधवार काे भोपाल प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकार वार्ती की। उन्हाेंने इस भर्ती परीक्षा को आरक्षित वर्ग के लिए दोबारा कराकर आदिवासी उम्मीदवारों को शामिल करने की मांग की।
आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष विक्रांत भूरिया ने पत्रकार वार्ता काे संबाेधित करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश सिविल जज–2022 के परिणाम ने पूरे आदिवासी समाज को गहरे आघात में डाल दिया है। कुल 191 पदों में से 121 पद अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के लिए आरक्षित थे, लेकिन इन 121 आरक्षित पदों पर एक भी आदिवासी उम्मीदवार का चयन नहीं होना केवल एक प्रशासनिक “विफलता” नहीं, बल्कि सिस्टम में गहरे बैठे पक्षपात और संरचनात्मक भेदभाव का सबसे बड़ा प्रमाण है। यह सवाल केवल इतना भर नहीं है कि परिणाम क्या आया, असली सवाल यह है कि क्या सचमुच 121 सीटों पर एक भी योग्य आदिवासी युवा नहीं मिला या फिर चयन प्रक्रिया और पूरी प्रणाली ने उन्हें शुरुआत की सीढ़ी पर ही रोक दिया। पिछले चार वर्षों से लगातार एक ही पैटर्न सामने आ रहा है कि सिविल जज भर्ती प्रक्रिया में ST उम्मीदवारों को मुख्य परीक्षा की सीढ़ी तक पहुँचने ही नहीं दिया जाता, प्रारंभिक चरणों में ही ऐसे मानक, कट–ऑफ और प्रक्रियाएँ लागू की जाती हैं जिनके चलते आदिवासी युवाओं को व्यवस्थित रूप से बाहर कर दिया जाता है।
डॉ. विक्रांत भूरिया ने इसे संविधान की आत्मा पर सीधा प्रहार बताते हुए कहा कि आरक्षण कोई भीख नहीं, बल्कि समान अवसर का संवैधानिक अधिकार है। 121 आरक्षित सीटों पर एक भी आदिवासी का चयन न होना, हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों—न्याय, समानता और सामाजिक न्याय—का खुला अपमान है। यह स्थिति न केवल इस भर्ती प्रक्रिया की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि संवैधानिक व न्यायिक संस्थाओं तक पहुँचने का रास्ता आदिवासी समाज के लिए किस तरह संकुचित और दुर्गम बना दिया गया है।
डॉ. विक्रांत भूरिया ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह लड़ाई सिर्फ़ 121 सीटों की नहीं, बल्कि न्यायपालिका, प्रशासकीय प्रक्रिया और सरकारी नीतियों में बैठे संगठित भेदभाव के खिलाफ एक व्यापक संघर्ष है। यह संघर्ष इस बात के लिए है कि आदिवासी समाज को संवैधानिक संस्थाओं तक पहुँचने का, न्याय पाने का और निर्णय–प्रक्रिया में भागीदारी का समान अधिकार मिले, जो उन्हें संविधान ने दिया है।
आदिवासी कांग्रेस और कांग्रेस पार्टी की ओर से डॉ. भूरिया ने मांग की कि मध्यप्रदेश सिविल जज–2022 की पूरी चयन प्रक्रिया की न्यायिक जांच कराई जाए। Screening, Cut–off, मूल्यांकन और इंटरव्यू के पूरे पैटर्न को सार्वजनिक किया जाए और विशेष रूप से यह सामने लाया जाए कि ST आरक्षित सीटों पर ZERO चयन की स्थिति कैसे बनी। उन्होंने यह भी मांग की कि उच्च न्यायालय/सुप्रीम कोर्ट या किसी स्वतंत्र आयोग की निगरानी में इस पूरे प्रकरण की विस्तृत जाँच हो तथा भविष्य में न्यायपालिका और अन्य संवैधानिक पदों पर आदिवासी वर्ग के प्रतिनिधित्व की सुनिश्चितता हेतु ठोस और सकारात्मक सुधारात्मक कदम उठाए जाएँ।
