दिल्ली व अन्य शहरों में बढ़ते प्रदूषण पर दायर नई याचिका सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार
नई दिल्ली{ गहरी खोज }: देश में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण स्तर को लेकर वेलनेस विशेषज्ञ ल्यूक क्रिस्टोफर कुटिन्हो द्वारा दायर एक नई जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने कुटिन्हो को अनुमति दी कि वे अपनी याचिका वापस लें और इसके बजाय पर्यावरणविद् एम. सी. मेहता की लंबित प्रदूषण संबंधी याचिका में हस्तक्षेप याचिका दाखिल करें। पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता लंबित एम. सी. मेहता मामले में हस्तक्षेप याचिका दाखिल करने के लिए याचिका वापस लेने की अनुमति चाह रहे हैं।” मुख्य मामला बुधवार को सुनवाई के लिए निर्धारित है।
24 अक्टूबर को दायर इस PIL में केंद्र सरकार, CPCB, CAQM, कई केंद्रीय मंत्रालयों, नीति आयोग और दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार व महाराष्ट्र की सरकारों को पक्षकार बनाया गया था। याचिका में वर्तमान वायु गुणवत्ता संकट को “सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल” बताते हुए कहा गया था कि प्रदूषण नागरिकों के जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन कर रहा है। याचिकाकर्ता ने प्रदूषण को राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने और एक समयबद्ध राष्ट्रीय कार्ययोजना लागू करने की मांग की थी।
याचिका में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) की प्रगति पर भी सवाल उठाए गए। इसमें कहा गया कि 2026 तक PM स्तर में 40 प्रतिशत कमी के लक्ष्य के बावजूद जुलाई 2025 तक 130 में से केवल 25 शहर ही लक्ष्य हासिल कर पाए, जबकि 25 शहरों में PM₁₀ स्तर और बढ़ गया है। याचिका में यह दावा भी किया गया कि दिल्ली के 22 लाख स्कूली बच्चों के फेफड़ों को विषैले प्रदूषण के कारण स्थायी नुकसान हुआ है।
याचिका में NCAP के लक्ष्यों को कानूनी रूप से लागू करने, निगरानी तंत्र को मजबूत करने, स्वतंत्र विशेषज्ञों के नेतृत्व में राष्ट्रीय टास्क फोर्स गठित करने और पराली जलाने पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई थी। इसके अलावा, उच्च उत्सर्जन वाले वाहनों को तेजी से चरणबद्ध तरीके से हटाने, ई-मोबिलिटी और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने तथा औद्योगिक उत्सर्जन मानकों को सख्ती से लागू करने की मांग भी शामिल थी।
