चर्चा में अलफलाह यूनिवर्सिटी
संपादकीय { गहरी खोज }: दिल्ली बम धमाके और फरीदाबाद से 3000 किलो के करीब विस्फोटक सामग्री मिलने व कश्मीरी चिकित्सक डा. मुजम्मिल अहमद गनई की गिरफ्तारी के बाद शक के दायरे में अब अलफलाह यूनिवर्सिटी आ गई है। डा. मुजम्मिल यही पढ़ाते थे। पुलिस सूत्रों अनुसार आतंक की सारी योजना अलफलाह यूनिवर्सिटी की बिल्डिंग नं. 17 के कमरा नं. 13 में ही रची जा रही थी। डा. मुजम्मिल का था यह कमरा और साथ वाला डा. उमर का था। लेकिन उमर, मुजम्मिल के कमरे में ही सोता था। जांच एजेंसियों के अनुसार यह दोनों अच्छे दोस्त थे और दोनों पिछले 3 महीने से जैश-ए-मोहम्मद और असर गजावत-उल-हिन्द के पाकिस्तानी हैंडलर के संपर्क में थे। अलफलाह यूनिवर्सिटी से पूछताछ के लिए 12 लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया है। डा. शाहीन और मुजम्मिल में अच्छी दोस्ती थी। डा. शाहीन की कार का इस्तेमाल डा. मुजम्मिल ही अधिकतर करता था।
उपरोक्त सब तथ्यों के कारण चर्चा में आई अल फलाह यूनिवर्सिटी ने अपनी तरफ से आधिकारिक बयान जारी कर कहा है कि हमारा इस ब्लास्ट से कोई लेना-देना नहीं है। जिन लोगों को भी इस ब्लास्ट में अपनी जान गंवानी पड़ी, उनके प्रति हम दुख व्यक्त करते हैं, लेकिन जिस तरह से इस ब्लास्ट के बाद हमारी यूनिवर्सिटी का नाम लिया जा रहा है, उससे इसकी गरिमा को ठेस पहुंच रही है। हमारे संज्ञान में यह भी आया है कि कई सोशल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर हमारी यूनिवर्सिटी के संबंध में मनगढंत और झूठे बयान जारी किए जा रहे हैं, जिनमें बिल्कुल भी सत्यता नहीं है। इसका मुख्य मकसद सिर्फ हमारी यूनिवर्सिटी की गरिमा पर कुठाराघात करना है। यूनिवर्सिटी की तरफ से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि हमारे संज्ञान में आया है कि हमारे दो डॉक्टरों की गिरफ्तारी हुई है, लेकिन हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमारे यूनिवर्सिटी परिसर का इस्तेमाल किसी भी शरारती गतिविधियों में प्रयुक्त होने वाले केमिकल के निर्माण के लिए नहीं किया गया था। जिस तरह की जानकारी इस संबंध में फैलाई जा रही है, वह पूरी तरह से भ्रामक और बेबुनियादी है। विश्वविद्यालय परिसर में स्थित जितनी भी प्रयोगशालाएं हैं, उनका इस्तेमाल सिर्फ एमबीबीएस और अन्य पाठ्यक्रमों के विद्यार्थियों के अध्ययन के ध्येय से ही किया जाता है। इसके अलावा, हमारे विश्वविद्यालय में स्थित जितनी भी प्रयोगशालाएं हैं, उनका संचालन निर्धारित दिशानिर्देश के अनुरूप ही किया जाता है।
यूनिवर्सिटी ने कहा कि हम सभी संगठन और अन्य लोगों से कहना चाहेंगे कि अगर हमारे विश्वविद्यालय के संबंध में किसी भी प्रकार की जानकारी किसी भी मंच के माध्यम से मिले, तो उसे साझा करने से पहले ये सत्यापित करें कि उसमें सत्यता है या नहीं। बिना सत्यापित किए हमारी यूनिवर्सिटी के संबंध में किसी भी जानकारी को साझा करने से बचें। साथ ही, आधिकारिक बयान में कहा गया है कि हम इस मुश्किल घड़ी में राष्ट्र के साथ खड़े हैं। इस घटना के संबंध में जो भी जांच हो रही है, उसमें हमारी तरफ से पूरी भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। वहीं, हम यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमारे विश्वविद्यालय के सभी छात्र पूरी तरह से सिर्फ पढ़ाई में संलिप्त है।
यूनिवर्सिटी की तरफ से आधिकारिक बयान में जानकारी देते हुए यह भी बताया गया है कि अल फलाह ग्रुप 1997 से कई संस्थानों के संचालन में अहम भूमिका निभा रहा है। अल फलाह यूनिवर्सिटी 2014 में अस्तित्व में आई थी, जिसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की तरफ से मान्यता भी प्राप्त है। वहीं, अल फलाह यूनिवर्सिटी में साल 2019 से मेडिकल की पढ़ाई कराई जा रही है। अल फलाह यूनिवर्सिटी ने अपने आधिकारिक बयान में यह भी स्पष्ट किया कि हमारे यहां से मेडिकल की पढ़ाई करके निकलने वाले सभी छात्र आज की तारीख में देश-विदेश के मेडिकल संस्थानों में उच्च और गरिमापूर्ण पदों पर काबिज हैं। अलफलाह यूनिवर्सिटी की स्थापना हरियाणा विधानसभा द्वारा हरियाणा प्राइवेट यूनिवर्सिटी एक्ट के तहत की गई थी। इसकी शुरुआत 1997 में एक इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में हुई थी। 2013 में अल-फलाह इंजीनियरिंग कॉलेज को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (एनएएसी) से ‘ए’ कैटेगरी की मान्यता प्राप्त हुई। 2014 में हरियाणा सरकार ने इसे यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया। अल-फलाह मेडिकल कॉलेज भी इसी यूनिवर्सिटी से संबद्ध है। कई विशेषज्ञों के अनुसार, अपने शुरुआती सालों में अल-फलाह यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक छात्रों के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया के एक शानदार विकल्प के रूप में सामने आया। इसमें एमबीबीएस का कोर्स साल 2019 से शुरू हुआ था। इस यूनिवर्सिटी में 40 प्रतिशत डॉक्टर्स कश्मीर से हैं। दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया से केवल 30 किलोमीटर दूर स्थित इस यूनिवर्सिटी का प्रबंधन (मैनेजमेंट) अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा किया जाता है, जिसकी स्थापना 1995 में हुई थी। ट्रस्ट के अध्यक्ष जवाद अहमद सिद्दीकी हैं। उपाध्यक्ष मुफ्ती अब्दुल्ला कासिमी एम ए और सचिव मोहम्मद वाजिद डीएमई हैं।
गौरतलब है कि अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा 6 करोड़ रुपए की छात्रवृत्ति यूनिवर्सिटी को मिली जिसमें कश्मीर के विद्यार्थियों को 1.10 करोड़ प्राप्त हुए थे। अलफलाह यूनिवर्सिटी ने अपने अधिकारिक बयान में दिल्ली ब्लास्ट से अपने को बेशक अलग किया है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि ट्रस्ट का अध्यक्ष जवाद अहमद सिद्दकी और उसका भाई धमाके के बाद से फरार है।
जवाद और उसके भाई की तलाश में एनआईए समेत अन्य जांच एजेंसियां लगातार छापामार कार्रवाई कर रही है। इंदौर के महू निवासी जावद अहमद सिद्दीकी फरीदाबाद स्थित अल फलाह यूनिवर्सिटी जिस ट्रस्ट के जरिए बनाई गई है, उसका अध्यक्ष है। खुफिया एजेंसी से जुड़े सूत्र बताते है कि जब खुफिया एजेंसियों ने फरीदाबाद मॉड्यूल का भंडाफोड़ करते हुए तीन डॉक्टरों समेत कई क्लिंवटल विस्फोटक जब्त किया तब से जावद और उसका भाई फरार है। अलफलाह यूनिवर्सिटी का चेयरमैन जावद अहमद सिद्दिकी और उसका भाई अफाम सिद्दिकी अब बम धमाकों के बाद फरार है। वहीं अब खुफिया एजेंसियों ने आतंकी माड्यूल में दोनों भाईयों की भूमिका की जांच शुरू कर दी है। जवाद अपने परिवार के साथ इंदौर के महू में रहता है और उसके परिवार पर पहले भी कई आरोप लग चुके हैं। निवेश कंपनी के नाम पर सिद्दिकी परिवार के लोगों ने महू में कई लोगों के साथ ठगी की थी। फिर रातों रात महू से परिवार गायब हो गया था। महू पुलिस अब जवाद के महू निवासी रिश्तेदारों व पुराने संपकों की जानकारी जुटा रही है। इंदौर के महू निवासी जवाद सिद्दिकी ने सबसे पहले इंजीनियरिंग कालेज खोला था। बाद में उसने यूनिवर्सिटी की नींव रखी थी। जवाद ही यूनिवर्सिटी का कुलाधिपति है और ट्रस्ट का अध्यक्ष भी वहीं है। वहीं जावद का भाई अफाम पहले भी दो मामलों में जेल जा चुका है। जवाद का परिवार लोगों को दोगुना मुनाफा देने का लालच देकर निजी बैंक चलाने लगा था। महू में वर्ष 2001 में अल फलाह इन्वेस्टमेंट कंपनी खोली थी। जब तय दावे के अनुसार पैसा नहीं लौटाया तो महू के पीडितों ने निवेश का पैसा लौटाने के दबाव बनाया। इसके बाद जवाद का परिवार महू से चला गया और कालेज की नींव रखी। तब जवाद के भाई हमूद पर महू में केस भी दर्ज हुआ था। एडिशनल एसपी रूपेश द्विवेदी अनुसार जवाद का परिवार महू के कायस्थ मोहल्ले में रहता था। उसके पिता मोहम्मद हामिद महू के शहरकाजी भी रह चुके है।
जवाद अहमद सिद्दिकी व उसके भाई की अतीत की गतिविधियों को देखते हुए हरियाणा व केंद्र सरकार ने किस तरह अलफलाह यूनिवर्सिटी को मान्यता देने के साथ-साथ करोड़ों रुपए की धन राशि भी दे दी। मात्र ‘वोट बैंक’ की राजनीति के अलावा दूसरा कारण कानून का लचीलापन और राजनीतिक संरक्षण ही कहा जा सकता है। अल्पमत के नाम पर बने संगठनों विद्यालयों या यूनिवर्सिटी में गैर मुस्लिम छात्रों के साथ होने वाले भेदभाव के बाद भी जब स्थानीय प्रशासन व सरकारें कोई ठोस कार्रवाई नहीं करती, तब उसका परिणाम दिल्ली बम धमाके के रूप में ही देशवासियों को भुगतना पड़ता है।
अलफलाह यूनिवर्सिटी व उसके अध्यक्ष जवाद की गतिविधियों की छानबीन के बाद दोषियों विरुद्ध ठोस कार्रवाई हो, यही समय की मांग है।
