महिलाओं के लिए कांच की छत अब भी बरकरार है : सुपर्ण एस वर्मा
मुंबई{ गहरी खोज }: बहुचर्चित शाह बनो प्रकरण की पृष्ठभूमि में बनी फिल्म ‘हक’ के निर्देशक सुपर्ण एस वर्मा ने कहा है कि सबसे बड़ा पिछड़ा वर्ग महिलाएं हैं और उनके लिए कांच की छत अब भी बरकरार है। फिल्म निर्माता ने कहा, ‘‘हालांकि समाज अक्सर हाशिए पर पड़े विभिन्न समूहों के समक्ष आने वाली चुनैतियों पर चर्चा करता है, लेकिन सबसे बड़ा ‘पिछड़ा वर्ग’ महिलाएं ही हैं क्योंकि लैंगिक भेदभाव वर्ग, धर्म और भूगोल से परे है।’’ ‘द ट्रायल’ और ‘राणा नायडू’ जैसी लोकप्रिय ओटीटी सीरीज़ में अपने काम से लोकप्रिय हुए वर्मा ने 1985 के शाह बानो बेगम मामले से प्रेरित फिल्म ‘हक’ का निर्देशन किया है। यामी गौतम एवं इमरान हाशमी अभिनीत यह फिल्म शुक्रवार को देश भर के सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई और इसे समीक्षकों से शानदार समीक्षा मिली।
निर्देशक ने कहा कि ‘हक’ मूल रूप से एक ऐसी व्यवस्था में एक महिला के सम्मान, आत्म-सम्मान और बुनियादी मानवाधिकारों के संघर्ष के बारे में है जो संरचनात्मक रूप से उसके खिलाफ पक्षपाती है। वर्मा ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘वह एक ऐसी व्यवस्था से लड़ रही है जो पहले से ही तय है और साथ ही एक महिला के रूप में समाज में अपने अस्तित्व और स्थान का दावा करने की कोशिश कर रही है। हम हाशिए पर पड़े कई समूहों की बात करते हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई यह है कि दुनिया का सबसे बड़ा ‘पिछड़ा वर्ग’ अब भी महिलाओं का है।’’ ‘हक’ मोहम्मद अहमद खान बनाम शाहबानो बेगम मामले से जुड़ी घटनाओं का नाटकीय रूपांतरण है, जैसा कि जिग्ना वोरा की पुस्तक ‘बानो: भारत की बेटी’ में दर्शाया गया है।
यह कानूनी लड़ाई 1978 में शुरू हुई जब शाह बानो को उनके वकील पति ने तलाक दे दिया और 1985 में यह मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा तथा पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि मुस्लिम महिलाएं भी कानून के तहत भरण-पोषण पाने की हकदार हैं। फिल्म में यामी गौतम शाज़िया बानो की भूमिका में हैं और हाशमी उनके वकील पति अब्बास खान की भूमिका में हैं। वर्मा ने कहा कि हालांकि यह कहानी 1970 और 80 के दशक की है, फिर भी इसका विषय प्रासंगिक बना हुआ है।
