चुनावी घोषणा पत्र

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संपादकीय { गहरी खोज }: बिहार में हो रहे विधानसभा चुनावों का प्रचार जोर-शोर से चल रहा है। कल तक बिहार की राजनीति जातियों पर आधारित मानी जाती थी लेकिन आज जातियों की राजनीति के साथ-साथ चुनावी घोषणापत्रों ने चुनावों में विशेष जगह ले ली है। पक्ष और विपक्ष दोनों द्वारा जारी घोषणा पत्रों में मतदाता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए जो कुछ कहा जा रहा है वह शायद करना संभव नहीं है लेकिन सत्ता पाने के लिए क्या कुछ किया व कहा जा सकता है, यह बिहार चुनाव प्रचार के दौरान समझा जा सकता है।

महागठबंधन ने ‘तेजस्वी प्रण’ नाम से जो संयुक्त घोषणापत्र जारी किया है उसमें वादा किया गया है कि उनकी सरकार बनने के 20 दिन के भीतर एक विधेयक लाकर हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। संसद द्वारा पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर बिहार में रोक लगाने, पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) बहाल करने, केंद्र सरकार द्वारा तैयार नई शिक्षा नीति के दुष्प्रभावों की समीक्षा करने, आरक्षण की सीमा 50 फीसद से अधिक बढ़ाने के लिए विधानसभा द्वारा पारित कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की केंद्र सरकार से अनुशंसा करने तथा कई अन्य वादे किए हैं। घोषणापत्र में पच्चीस घोषणाएं की गई हैं, जो कि इस चुनाव में महागठबंधन का बड़ा हथियार बनेंगी।

गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने तो चुनावों की घोषणा से पहले ही 1.2 करोड़ महिलाओं के खाते में दस-दस हजार रुपए जमा करा दिए थे और व्यवसाय करने के लिए 2 लाख रुपए अलग से देने की घोषणा भी की थी। अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने अपना घोषणापत्र जारी किया है। इस घोषणा पत्र में एक करोड़ युवाओं को रोजगार देने, एक करोड़ ‘लखपति दीदी’ बनाने, 4 शहरों में मैट्रो ट्रेन सेवाएं शुरू करने और राज्य में 7 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे विकसित करने जैसे कई वादे किए गए हैं। घोषणापत्र में 7 एक्सप्रेस-वे, 10 औद्योगिक पार्क, ‘के.जी.से पी.जी.’ तक निःशुल्क गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों को प्रतिमाह 2,000 रुपए की सहायता राशि जैसी कई योजनाओं की घोषणा की गई है। घोषणापत्र के अनुसार, राजग के सत्ता में आने पर विश्व स्तरीय ‘मैडिसिटी’, प्रत्येक जिले में एक मैडीकल कालेज, 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज, मुफ्त राशन और 50 लाख नए पक्के मकान उपलब्ध कराए जाएंगे, साथ ही, सीतामढ़ी जिले में स्थित देवी सीता का जन्मस्थान माने जाने वाले ‘पुरौना धाम जानकी मंदिर’ को ‘सीतापुरम’ नाम देने की घोषणा भी की गई है।

चुनावों के दौरान मतदाता को आकर्षित करने तथा सत्ता में आने के लिए जिस प्रकार की घोषणाएं की जा रही हैं यह राजनीति के लिए ठीक नहीं है। सत्ता में आने के लिए प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था को दांव पर लगाने का अर्थ अपने पांव आप कुल्हाड़ी मारना ही है। लोक लुभावने वादे मतदाता के लिए धीमे जहर की तरह हैं। मुफ्त में जब इंसान को कोई भी चीज या सुविधा मिलने लग जाती है, तो धीरे-धीरे आदमी उस पर निर्भर होने लगता है और यह निर्भरता ही उसके पतन का कारण बन जाती है।

यह मुफ्त की लत मतदाता को क्षणिक सुख बेशक देती है, पर उसके विकास में सबसे बड़ी बाधा बन जाती है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर बढ़ता दबाव भी प्रदेश के विकास में बाधा बनकर उभरता है।

गरीब का पेट भरने या शिक्षित व स्वास्थ्य से संबंधित सुविधाओं के बाद अन्य सुविधाओं को उचित नहीं ठहराया जा सकता। राजनीतिक दलों को और चुनाव आयोग को चुनावी घोषणापत्रों को व्यवहारिक बनाने के लिए गंभीरतापूर्वक चिंता करने की आवश्यकता है। अगर इसी तरह अव्यवहारिक घोषणाएं होती रहीं तो यह व्यवस्था को हिला देंगी, यह चिंता की बात है।

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