आंवला नवमी 30 या 31 अक्टूबर? इस दिन से शुरू हुआ था सतयुग, जानिए इसका धार्मिक महत्व
धर्म { गहरी खोज } : दिवाली के ठीक 10 दिन बाद मनायी जाने वाली अक्षय नवमी का शास्त्रों में बहुत महत्व बताया गया है। पुराणों में इस दिन से ही सतयुग की शुरुआत मानी जाती है। अक्षय का अर्थ होता है- जिसका क्षरण न हो। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन किए गए कार्यों का अक्षय फल प्राप्त होता है। इसे इच्छा नवमी, आंवला नवमी, कूष्मांड नवमी, आरोग्य नवमी और धातृ नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन किये गये व्रत के पुण्य से सुख-शांति, सद्भाव और वंश वृद्धि का फल प्राप्त होता है। आंवला नवमी के दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा-अर्चना करने का विधान है।
आंवला नवमी कब है 2025
- अक्षय नवमी – 31 अक्टूबर 2025, शुक्रवार
- अक्षय नवमी पूर्वाह्न समय – 06:32 AM से 10:03 AM
- नवमी तिथि प्रारम्भ – 30 अक्टूबर 2025 को 10:06 AM बजे
- नवमी तिथि समाप्त – 31 अक्टूबर 2025 को 10:03 AM बजे
आंवला नवमी का महत्व
आंवला नवमी पर तर्पण और स्नान-दान का भी बहुत महत्व है। संभव हो तो इस दिन किसी तीर्थ स्थल पर जाकर स्नान करना चाहिए, लेकिन अगर आप कहीं दूर नहीं जा सकते, तो घर पर ही अपने नहाने के पानी में थोड़ा-सा गंगाजल डालकर स्नान जरूर कीजिये। इससे आपको अक्षय फलों की प्राप्ति होगी। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि अक्षय नवमी के दिन श्री विष्णु द्वारा कूष्माण्ड नामक दैत्य का अत्याचार समाप्त किया गया था, जिसके बाद उस दैत्य के रोम से कूष्माण्ड की बेल निकली थी। इसलिए इसे कूष्माण्ड नवमी भी कहते हैं। कूष्माण्ड को आम भाषा में पेठा या कद्दू कहते हैं, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। ऐसे में इस दिन कुष्माण्ड, यानि पेठे का दान करना चाहिए। दान के साथ ही गन्ध, पुष्प और अक्षत आदि से कुष्माण्ड का पूजन भी करना चाहिये। इससे उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। कूष्माण्ड नवमी के अलावा उड़ीसा में इस दिन जगतधात्री माता की पूजा भी की जाती है। जगतधात्री, मां दुर्गा का ही एक स्वरूप हैं। अक्षय नवमी के दिन से मथुरा प्रदक्षिणा, यानि मथुरा की परिक्रमा भी शुरू हो जाती है।
