श्वसन संक्रमणों के खिलाफ प्रभावी भारत का पहला स्वदेशी एंटीबायोटिक नैफिथ्रोमाइसिन विकसित

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नई दिल्ली { गहरी खोज }:केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने शनिवार को बताया कि भारत ने अपना पहला स्वदेशी एंटीबायोटिक नैफिथ्रोमाइसिन विकसित किया है, जो प्रतिरोधी श्वसन संक्रमणों के खिलाफ प्रभावी है। इसके साथ यह दवा कैंसर रोगियों और खराब नियंत्रित मधुमेह रोगियों के लिए भी प्रभावी है। उन्होंने कहा कि यह एंटीबायोटिक भारत में पूरी तरह से परिकल्पित, विकसित और चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित पहला अणु है, जो दवा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। एंटीबायोटिक नेफिथ्रोमाइसिन को भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने प्रसिद्ध निजी फार्मा कंपनी वॉकहार्ट के सहयोग से विकसित किया है।
मल्टी-ओमिक्स डेटा इंटीग्रेशन एंड एनालिसिस के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग विषय पर तीन दिवसीय चिकित्सा कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत को अपने वैज्ञानिक और अनुसंधान विकास को गति देने के लिए एक आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना होगा। उन्होंने कहा कि विज्ञान और नवाचार में वैश्विक मान्यता प्राप्त करने वाले अधिकांश देशों ने निजी क्षेत्र की व्यापक भागीदारी के साथ आत्मनिर्भर, नवाचार-संचालित मॉडलों के माध्यम से ऐसा किया है।
मंत्री ने यह भी घोषणा की कि भारत ने जीन थेरेपी में एक बड़ी सफलता हासिल की है, जो हीमोफीलिया उपचार के लिए पहला सफल स्वदेशी नैदानिक ​​परीक्षण है, जिसके लिए परीक्षण भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित था और एक गैर-सरकारी क्षेत्र के अस्पताल, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर में किया गया था।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने आगे बताया कि भारत ने पहले ही 10,000 से ज़्यादा मानव जीनोम अनुक्रमित कर लिए हैं और इसे बढ़ाकर दस लाख तक पहुंचाने का लक्ष्य है। उन्होंने आगे बताया कि जीन थेरेपी परीक्षण में शून्य रक्तस्राव प्रकरणों के साथ 60-70 प्रतिशत सुधार दर दर्ज की गई, जो भारत के चिकित्सा अनुसंधान परिदृश्य में एक मील का पत्थर है। ये निष्कर्ष न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुए हैं, जो उन्नत जैव चिकित्सा नवाचार में भारत के बढ़ते नेतृत्व को रेखांकित करते हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (एएनआरएफ) इस दिशा में एक बड़ा कदम है, जिसका कुल परिव्यय पांच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपये होगा, जिसमें से 36,000 करोड़ रुपये गैर-सरकारी स्रोतों से आएंगे। इस कार्यक्रम में अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन के सीईओ डॉ. शिव कुमार कल्याणरमन, डॉ. एनके गांगुली, डॉ. डीएस राणा और डॉ. अजय स्वरूप भी उपस्थित रहे।

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