मानवाधिकार संरक्षण केवल कानूनी दायित्व नहीं, नैतिक और आध्यात्मिक अनिवार्यता भी : कोविंद

0
T20251016193826

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को कहा कि हमारे वेद, उपनिषद, पुराण और शास्त्रों में मानवता की एकता और प्रत्येक जीवन की पवित्रता की जो शिक्षाएं निहित हैं, वे आधुनिक मानवाधिकारों की अवधारणाओं से कहीं पहले से भारतीय सभ्यता का मार्गदर्शन करती रही हैं। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की रक्षा केवल एक कानूनी दायित्व नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक और नैतिक अनिवार्यता है, जो भारतीय जीवनशैली का अभिन्न अंग है।
कोविंद ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 32वें स्थापना दिवस तथा जेल में बंद बंदियों के अधिकारों पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि धर्म का पालन, करुणा के साथ आचरण और न्याय की स्थापना की प्रेरणा आज भी हमें मानवीय मूल्यों पर आधारित समाज की दिशा में आगे बढ़ने का रास्ता दिखाती है। उन्होंने कहा कि भारत की प्रगति को केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं आंका जा सकता, बल्कि इस बात से मापा जाना चाहिए कि वह अपने सबसे कमजोर नागरिकों की गरिमा और कल्याण को किस प्रकार सुनिश्चित करता है। तेजी से हो रहे तकनीकी और पर्यावरणीय बदलाव मानवाधिकारों के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न कर रहे हैं, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापन झेल रहे लोगों के लिए।
उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास को मानवीय गरिमा के साथ संतुलित करना आवश्यक है और जलवायु परिवर्तन अब केवल पर्यावरण की चिंता नहीं, बल्कि यह मानवाधिकारों से जुड़ा एक गंभीर विषय बन चुका है। भारत ने एक मजबूत संवैधानिक और संस्थागत ढांचा तैयार किया है, लेकिन सच्ची प्रगति करुणा और समावेशन पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि यह संस्था उन लाखों नागरिकों की आवाज बनकर उभरी है जो अपने अधिकारों की रक्षा की आशा रखते हैं। आयोग समाज के सबसे वंचित वर्गों को यह विश्वास दिलाता है कि उनकी शिकायतें सुनी जाएंगी, उनकी गरिमा का सम्मान होगा और उनके अधिकारों की रक्षा की जाएगी।
कोविंद ने कहा कि हिरासत में बंद व्यक्तियों के साथ किसी भी प्रकार की हिंसा या अमानवीय व्यवहार हमारे संवैधानिक और नैतिक मूल्यों के विरुद्ध है। उन्होंने जेल प्रशासन से आग्रह किया कि सुधार गृहों को सुधार, पुनर्वास और आशा के केंद्र के रूप में देखा जाए तथा वहां लैंगिक-संवेदनशीलता और बच्चों के अनुकूल व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएं।
कार्यक्रम में आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम ने जानकारी दी कि आयोग ने 1993 से अब तक लगभग 24 लाख मामलों का निपटारा किया है और 8,924 मामलों में 263 करोड़ रुपये की आर्थिक राहत प्रदान की है। वर्ष 2024 में आयोग ने 73,849 शिकायतें दर्ज कीं, 108 मामलों में स्वतः संज्ञान लिया और 38,063 मामलों का निस्तारण किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *