प्रधानमंत्री मोदी का किसानों को सुझाव

संपादकीय { गहरी खोज }: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो प्रमुख कृषि योजनाओं 24 हजार करोड़ की धन-धान्य योजना और 11,440 करोड़ रुपए की दलहन आत्मनिर्भरता मिशन के शुरू होने पर किसानों से प्राकृतिक खेती अपनाने का आग्रह किया। एक आधिकारिक बयान के अनुसार उन्होंने एक चरणबद्ध नजरिया अपनाने का सुझाव दिया। इसके तहत भूमि के एक हिस्से पर प्राकृतिक खेती का परीक्षण करना और बाकी पर पारंपरिक तरीकों को जारी रखना शामिल है। विभिन्न राज्यों के कई किसानों ने प्रधानमंत्री के साथ अपने अनुभव साझा किए। मध्य प्रदेश के जबलपुर के एक युवा उद्यमी ने अपनी एरोपोनिक आधारित आलू बीज खेती का प्रदर्शन किया, जिसमें आलू बिना मिट्टी के ऊर्ध्वाधर संरचनाओं में उगाए जाते हैं। बयान के मुताबिक, इसे देखकर मोदी ने मजाकिया अंदाज में इसे ‘जैन आलू’ कहा, क्योंकि ऐसी उपज जैन धर्म को मानने वालों के आहार नियमों के अनुरूप हो सकती है, जो जमीन के नीचे उगने वाली सब्जियों से परहेज करते हैं। हरियाणा के हिसार जिले के एक किसान ने बताया कि उन्होंने चार साल पहले काबुली चना उगाना शुरू किया था और अब तक प्रति एकड़ लगभग 10 क्विंटल उपज प्राप्त कर चुके हैं। मोदी ने फसल को बदलकर खेती करने के बारे में पूछा, खासकर यह कि क्या इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद मिलती है और क्या दलहनी फसलों को कृषि प्रणाली में शामिल करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
किसान की आर्थिक स्थिति जब तक मजबूत नहीं होती, तब तक देश भी आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हो सकेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों को अधिक मूल्य वाली फसलों को उगाने के जो सुझाव दिए हैं वह व्यवहारिक तथा किसान हित के साथ-साथ देश हित में भी हैं। भारत आज भी अधिक मूल्य के कृषि उत्पाद बाहर से मंगवाने को मजबूर है, क्योंकि किसान गेहूं, चावल और आलू जैसी रिवायती फसलों के चक्र से बाहर नहीं निकल पा रहा है।
किसान संगठनों का कहना है कि महंगी फसलों की उपज कम है, और जो सरकारी दाम भी कम है। किसानों की कठिनाइयों को समझकर सरकार को किसानों को गेहूं, चावल वाले चक्कर से बाहर निकलने के लिए सहायता व संवाद दोनों जारी रखने होंगे तभी प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए सुझाव पर किसान लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा।