छह बार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने जनता के दिलों में बनाई जगह, लाये थे धर्मांतरण कानून

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शिमला{ गहरी खोज } : हिमाचल प्रदेश की राजनीति में अगर किसी नेता को समर्पण, जनसेवा और विकास का प्रतीक माना जाए, तो वह नाम है स्वर्गीय वीरभद्र सिंह। छह बार मुख्यमंत्री रहने वाले वीरभद्र सिंह न केवल कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली नेता रहे, बल्कि प्रदेश की सियासत के ऐसे शिल्पकार थे जिन्होंने पहाड़ की राजनीति को जनभावनाओं और विकास के साथ जोड़ा।
वीरभद्र सिंह पहली बार 1983 में मुख्यमंत्री बने और 1985 तक पद पर रहे। इसके बाद 1985 से 1990, 1993 से 1998, 2003 से 2007, और 2012 से 2017 तक कुल छह बार उन्होंने प्रदेश की कमान संभाली। वर्ष 1998 में भी उन्होंने तकनीकी रूप से चौथी बार शपथ ली थी, लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम के चलते सरकार अल्पकालिक रही।
अपने 21 वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने हिमाचल को आधुनिकता की राह पर अग्रसर किया। सड़कों, शिक्षा संस्थानों, स्वास्थ्य सेवाओं और ग्रामीण विकास योजनाओं के विस्तार ने राज्य को नई ऊंचाइयां दीं। वीरभद्र सिंह का दरवाजा हमेशा जनता के लिए खुला रहता था। वे किसी भी जरूरतमंद को खाली हाथ नहीं लौटाते थे। सीएम रहते हुए भी उनका स्वभाव सहज, सरल और जनता के प्रति समर्पित रहा। 2012 से 2017 के अपने अंतिम कार्यकाल में जब वे 80 वर्ष की उम्र पार कर चुके थे, तब भी उनकी कार्यकुशलता और चुस्ती देखते ही बनती थी। वे रोजाना कई जिलों का दौरा करते, त्वरित फैसले लेते और देर रात तक फाइलें निपटाते थे।
वीरभद्र सिंह धर्म और आस्था को लेकर भी स्पष्ट विचार रखते थे। वे देश के पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किया। उनका मत था कि धर्मांतरण पर रोक लगनी चाहिए और उन्होंने हिमाचल में इस कानून को सख्ती से लागू कराया। वे इस मत में थे कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए, जिससे समाज में धार्मिक समरसता बनी रहे। वीरभद्र सिंह की सियासी परिपक्वता का अंदाजा उनके कई किस्सों से लगाया जा सकता है। 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद हिमाचल विधानसभा का मानसून सत्र चल रहा था। विपक्ष के एक भाजपा विधायक ने तंज कसते हुए कहा “जय श्रीराम।” सदन में कुछ पल के लिए खामोशी छा गई। तभी वीरभद्र सिंह खड़े हुए, मुस्कराए और हाथ जोड़कर बोले “जय हनुमान।” उनके इस जवाब ने सदन में ठहाके गूंजा दिए और विपक्ष भी मुस्कराए बिना नहीं रह सका। यही था वीरभद्र का अंदाज संयमित, चतुर और विनम्र।
हालांकि वे कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता थे, परंतु राजनीतिक मतभेदों के बावजूद उनके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सौहार्दपूर्ण संबंध रहे। राजनीतिक विरोध के बीच भी वे व्यक्तिगत सम्मान और संवाद की परंपरा निभाते रहे। यही वजह थी कि भाजपा के कई नेता भी उनके व्यक्तित्व और नेतृत्व की प्रशंसा करते थे।
वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस की हर दौर में अगुवाई की, चाहे वह इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव या मनमोहन सिंह का समय रहा हो। वे हर दौर में हिमाचल के लिए कांग्रेस का चेहरा और जनता के लिए आशा की किरण रहे।

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