अहोई अष्टमी के दिन जरूर पढ़ें ये पावन कथा, इसके बिना अधूरी है पूजा

धर्म { गहरी खोज } : अहोई अष्टमी का व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं। ये व्रत उषाकाल से लेकर गोधूलि बेला तक यानी शाम तक रखा जाता है। इस दिन तारों के दर्शन करने के बाद व्रत पूर्ण माना जाता है। कुछ महिलाएं इस दिन चांद के दर्शन के बाद अपना व्रत खोलती हैं। कई जगहों पर ये व्रत अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है। यहां हम आपको बताएंगे अहोई अष्टमी की व्रत कथा के बारे में।
अहोई अष्टमी व्रत कथा का समय 2025
अहोई अष्टमी की व्रत कथा का समय 13 अक्टूबर 2025 की शाम 05:35 से 06:49 बजे तक रहेगा। तारों को देखने के लिये सांझ का समय 05:58 बजे का है।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक नगर में साहूकार रहता था। जिसके सात लड़के थे। दीवाली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपापोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। जहां वो मिट्टी खोद रही थी उसी जगह एक सेह की मांद थी। उस स्त्री के हाथ से कुदाल बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तुरंत मर गया। अनजाने में हुई इस गलती से साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था। अत: वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।
कुछ दिनों बाद साहूकार के बेटे का निधन हो गया। फिर उसका दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मरते गए। महिला अत्यंत दुखी हुई। एक दिन उसने पड़ोस की महिलाओं को रोते हुए बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। लेकिन हां एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अनजाने में उसके हाथों एक सेह के बच्चे की हत्या हो गई और तत्पश्चात उसके सातों बेटों की मृत्यु हो गई।
यह सुनकर पड़ोस की वृद्ध महिला ने साहूकार की पत्नी को कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप ऐसे ही नष्ट हो गया है। अब तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और माता ले क्षमा-याचना करो। ऐसा करने से तुम्हारा ये पाप धुल जाएगा।
साहूकार की पत्नी ने ऐसा ही किया। उसने कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। इससे उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। कहते हैं तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई। अहोई माता की जय !