भारत ने उच्च-कार्बन क्षेत्रों के लिए पहला उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य अधिसूचित किया

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: केंद्र सरकार ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य नियम, 2025 अधिसूचित कर दिए हैं, जिसके तहत भारत ने पहली बार कार्बन-गहन उद्योगों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य तय किए हैं। 8 अक्टूबर को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि ये नियम 16 अप्रैल को प्रकाशित मसौदे पर प्राप्त सभी सुझावों और आपत्तियों पर विचार करने के बाद अधिसूचित किए गए हैं। इसके तहत एल्यूमिनियम, सीमेंट, पल्प और पेपर तथा क्लोर-अल्कली क्षेत्रों की 282 औद्योगिक इकाइयों को अपने 2023-24 के आधार वर्ष की तुलना में प्रति उत्पादन इकाई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (उत्सर्जन तीव्रता) में कमी करनी होगी। अधिसूचना के अनुसार, प्रत्येक इकाई को अपने प्रति टन उत्पाद पर उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य गैसों की मात्रा को 2023-24 के आधार स्तर की तुलना में कम करना होगा। अनुपालन अवधि 2025-26 से 2026-27 तक चलेगी।
यह कदम ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 को प्रभावी बनाता है, जिसने सरकार को घरेलू कार्बन बाजार स्थापित करने का अधिकार दिया था। यह भारत की परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड (PAT) ऊर्जा दक्षता योजना पर भी आधारित है, जिसमें पहले उद्योगों के लिए ऊर्जा बचत लक्ष्य तय किए गए थे, लेकिन सीधे कार्बन उत्सर्जन सीमा नहीं निर्धारित की गई थी। नियमों के अनुसार, जो इकाइयाँ अपने लक्ष्य से कम उत्सर्जन करेंगी, उन्हें ट्रेडेबल कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट प्राप्त होंगे, जबकि जो अपने लक्ष्य से अधिक उत्सर्जन करेंगी, उन्हें भारतीय कार्बन बाजार से क्रेडिट खरीदना या जुर्माना देना होगा।
यह जुर्माना, जिसे “पर्यावरणीय मुआवजा” कहा गया है, संबंधित वर्ष के औसत कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग मूल्य के दोगुने के बराबर होगा। औसत मूल्य का निर्धारण ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) द्वारा किया जाएगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) जुर्माने की वसूली की निगरानी करेगा, जिसे 90 दिनों के भीतर जमा करना अनिवार्य होगा।
अधिसूचना में कंपनी और संयंत्र-वार लक्ष्य भी सूचीबद्ध हैं। उदाहरण के लिए, वेदांता, हिंडाल्को, नाल्को और बाल्को की एल्यूमिनियम स्मेल्टर इकाइयाँ तथा अल्ट्राटेक, डालमिया, जेके सीमेंट, श्री सीमेंट और एसीसी के बड़े सीमेंट संयंत्र पहले अनुपालन चक्र में शामिल हैं। उत्सर्जन तीव्रता में कमी के लक्ष्य क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग हैं — सीमेंट क्षेत्र में लगभग 3.4%, एल्यूमिनियम में 5.8%, क्लोर-अल्कली में 7.5%, और पल्प व पेपर क्षेत्र में 7.1% दो वर्षों की अवधि में।
भारत का यह कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग ढांचा, पेरिस समझौते के तहत निर्धारित राष्ट्रीय स्तर के योगदान (NDC) लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अहम माना जा रहा है, जिनमें 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक GDP की उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी और 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य शामिल है। ये नियम भारतीय निर्यातकों को यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) जैसी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं के अनुरूप ढालने में भी मदद करेंगे, जिसके तहत सीमेंट, स्टील और एल्यूमिनियम जैसे कार्बन-गहन आयातों पर कर लगाया जाता है।