कार्तिक मास के तीसरे दिन पढ़ें ये कथा, भगवान विष्णु की बरसेगी विशेष कृपा

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धर्म { गहरी खोज } :कार्तिक महीना चल रहा है। इस महीने में कथा पढ़ने और सुनने का विशेष महत्व माना जाता है। जैसे दीपदान से अंधकार दूर होता है वैसे ही कथा का श्रवण करने से अज्ञान का अंधकार मिट जाता है और इससे घर में शांति और सकारात्मकता बनी रहती है। कथा के समय कीर्तन और भजन करने से देवता और पितृ दोनों प्रसन्न होते हैं। चलिए जानते हैं कार्तिक महीने के तीसरे दिन कौन सी कथा पढ़ी जाती है।

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 3
सत्यभामा ने कहा: हे प्रभु! आप तो सभी काल में व्यापक हैं और सभी काल आपके आगे एक समान हैं फिर यह कार्तिक मास ही सभी मासों में श्रेष्ठ क्यों है? इसका कारण बताइए। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे भामिनी! तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। मैं तुम्हें इसका उत्तर देता हूं, ध्यानपूर्वक सुनो।

इसी प्रकार एक बार महाराज बेन के पुत्र राजा पृथु ने प्रश्न के उत्तर में देवर्षि नारद से प्रश्न किया था और जिसका उत्तर देते हुए नारद जी ने उसे कार्तिक मास की महिमा बताते हुए कहा: हे राजन! एक समय शंख नाम का एक बहुत ही बलवान और अत्याचारी राक्षस था। उसके अत्याचारों ने तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच दी थी। उस शंखासुर ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इन्द्रादि देवताओं एवं लोकपालों के अधिकारों को छीन लिया।

उससे भयभीत होकर समस्त देवता अपने परिवार के साथ सुमेरु पर्वत की गुफाओं में बहुत दिनो तक छिपे रहे। उधर जब शंखासुर को इस बात का पता चला कि देवता आनन्दपूर्वक सुमेरु पर्वत की गुफाओं में निवास कर रहे हैं, तो उसने सोचा कि ऐसी कोई दिव्य शक्ति अवश्य है जिसके प्रभाव से अधिकारहीन यह देवता अभी भी बलवान हैं। काफी सोच विचार के बाद उसे समय आ गया कि वेदमन्त्रों के बल के कारण ही देवता बलवान हो रहे हैं। यदि इनसे वेद छीन लिये जाएं तो वे बलहीन हो जाएंगे। ऐसा विचार कर शंखासुर ब्रह्माजी के सत्यलोक से शीघ्र ही वेदों को हर लाया।

जिस समय वह वेदों को चुरा रहा था, उसी समय बीजों के साथ यज्ञमन्त्र उसके डर से जल में छिप गए। इसके बाद शंखासुर वेदमंत्रों और बीज मंत्रों को ढूंढते हुए सागर में प्रवेश किया परन्तु न तो उसको वेद मंत्र मिले और ना ही बीज मंत्र। जब शंखासुर सागर से निराश होकर वापिस लौटा तो उस समय ब्रह्माजी पूजा की सामग्री लेकर सभी देवताओं के साथ भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और भगवान को निद्रा से जगाने के लिए गाने-बजाने लगे और धूप-गन्ध आदि से बारम्बार उनका पूजन करने लगे।

धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित किये जाने पर भगवान की निद्रा टूटी और वह देवताओं सहित ब्रह्माजी को अपना पूजन करते हुए देखकर बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे: मैं आप लोगों के इस कीर्तन से बहुत प्रसन्न हूं। आप अपना अभीष्ट वरदान मांगिए, मैं अवश्य प्रदान करुंगा। जो मनुष्य आश्विन शुक्ल एकादशी से लेकर देवोत्थान एकादशी तक ब्रह्ममुहूर्त में उठकर मेरी पूजा करेंगे उन्हें सुख की प्राप्ति होगी। आप लोग जो पाद्य, अर्ध्य, आचमन और जल आदि सामग्री मेरे लिए लाए हैं वे अनन्त गुणों वाली होकर आपका कल्याण करेगी।

शंखासुर द्वारा हरे गये सम्पूर्ण वेद जल में स्थित हैं और मैं उस राक्षस का वध कर के उन वेदों को अभी ला देता हूं। आज से मंत्र-बीज और वेदों सहित मैं प्रतिवर्ष कार्तिक मास में जल में विश्राम किया करुंगा। इसके बाद भगवान विष्णु कहने लगे कि अब मैं मत्स्य का रुप धारण करके जल में जाता हूं। तुम सब देवता भी मुनीश्वरों सहित मेरे साथ जल में आओ। इस कार्तिक मास में जो श्रेष्ठ मनुष्य प्रात:काल स्नान करते हैं वे सब यज्ञ के अवभृथ-स्नान द्वारा भली-भांति नहा लेते हैं।

हे देवेन्द्र! कार्तिक मास में व्रत करने वालों को सब प्रकार से धन, पुत्र-पुत्री आदि देते रहना और उनकी सभी आपत्तियों से रक्षा करना। हे धनपति कुबेर! मेरी आज्ञा के अनुसार तुम उनके धन-धान्य की वृद्धि करना क्योंकि इस प्रकार का आचरण करने वाला मनुष्य मेरा रूप धारण कर के जीवनमुक्त हो जाता है। जो मनुष्य जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त विधिपूर्वक इस उत्तम व्रत को करता है, वह आप लोगों का भी पूजनीय है।

कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुम लोगों ने मुझे जगाया है इसलिए यह तिथि मेरे लिए अत्यन्त प्रीतिदायिनी और माननीय है। हे देवताओ! यह दोनों व्रत नियमपूर्वक करने से मनुष्य मेरा सान्निध्य प्राप्त कर लेते हैं। इन व्रतों को करने से जो फल मिलता है वह अन्य किसी व्रत से नहीं मिलता। अत: प्रत्येक मनुष्य को सुखी और निरोग रहने के लिए कार्तिक माहात्म्य और एकादशी की कथा सुनते हुए उपर्युक्त नियमों का पालन करना चाहिए।

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