बच्चों की मौत का मामला

संपादकीय { गहरी खोज }: मध्य प्रदेश-राजस्थान में कफ सिरप के कारण बच्चों की मौतों पर सख्त रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से दवा फैक्टरियों की जांच में कोई ढिलाई न बरतने को कहा है। साथ ही, देश के हर जिले में औषधि नियंत्रक अधिकारी दवा निर्माण इकाइयों का निरीक्षण करेंगे। यदि ऐसी फैक्टरियां संशोधित शेड्यूल एम अधिनियम के तहत तय मानकों पर खरी नहीं उतरीं, तो उनके लाइसेंस तुरंत रद्द कर दिए जाएंगे। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव की अध्यक्षता में हुई बैठक में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 200 से अधिक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी मौजूद थे। स्वास्थ्य सचिव ने साफ कहा कि बच्चों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। दवा फैक्टरियों की सख्ती से जांच होनी चाहिए। उन्होंने राज्यों से तत्काल संज्ञान लेने और रिपोर्ट केंद्र को भेजने के लिए भी कहा है। राज्यों को निर्देश दिए गए हैं कि सभी स्वास्थ्य संस्थानों से समय पर रिपोर्टिंग सुनिश्चित की जाए।
बैठक में बच्चों में खांसी की दवाओं के अनावश्यक इस्तेमाल के खतरों को लेकर गंभीर चिंता जताई गई। स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि ज्यादातर मामलों में बच्चों की खांसी और सर्दी-जुकाम अपने आप ठीक हो जाते हैं और इनके लिए दवाओं की जरूरत नहीं होती। उन्होंने डॉक्टरों से अपील की कि बच्चों को कॉम्बिनेशन दवाएं और कफ सिरप देने के बजाय अभिभावकों को घरेलू नुस्खे अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें।
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में संदिग्ध रूप से गुर्दों के काम करना बंद कर देने के कारण 14 बच्चों की मौत होने के बाद पुलिस ने लापरवाही के आरोप में एक चिकित्सक को गिरफ्तार किया है और ‘जहरीले’ ‘कफ सिरप’ की निर्माता कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
मध्य प्रदेश सरकार ने ‘कोल्ड्रिफ कफ सिरप’ की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। अधिकारियों ने बताया कि दवा के नमूनों में अत्यधिक जहरीला पदार्थ पाया गया है। जिन बच्चों की मौत हुई है उनमें से दो छिंदवाड़ा शहर से, एक चौरई तहसील से और 11 परासिया उप-संभाग से थे। पुलिस अधीक्षक अजय पांडे के अनुसार श्रीसन फार्मास्युटिकल्स, कांचीपुरम (तमिलनाडु) द्वारा निर्मित कोल्ड्रिफ को परासिया में 11 बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। कंपनी और प्रवीण सोनी के खिलाफ परासिया पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया है। उन्होंने बताया कि सोनी सरकारी चिकित्सक होने के बावजूद एक निजी क्लिनिक चलाते थे और उन्होंने सिरप लेने का परामर्श दिया था।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौत के बाद बच्चों छिंदवाड़ा में बुखार से नौ बच्चों की मौत के बाद बच्चों को दी गई दवाइयों के सैंपल जांच के लिए भेजे गए थे। इनमें से हिमाचल के बद्दी में बनी नेक्सा डीएस कफ सिरप के सैंपल जांच में पास हो गए हैं। जांच में सामने आया कि नेक्सा सिरप पीने से बच्चों की मौत नहीं हुई है। विभाग ने नेक्सा डीएस सीरप के साथ-साथ मध्य प्रदेश को भेजे गए सभी प्रकार के सिरप के उत्पादन पर बीते दिन रोक लगा दी थी। अब सैंपल पास होने के बाद नेक्सा डीएस कफ सिरप के उत्पादन पर लगाई रोक हटा दी है।
प्रत्येक राज्य में अपना एक ड्रग कंट्रोलर होता है जो दवा के प्रत्येक बैच की जांच करता है। तभी दवा बाजार में बिकने हेतु जाती है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि जांच महीने पड़ी रहती है और दवा बाजार में पहुंच जाती है। जांच में देरी के कारण ही ऐसे दर्दनाक हादसे होते हैं। प्रदेशों और केन्द्र की सरकार को जांच में देरी के कारणों को ढूंढकर तत्काल रूप से दूर करना चाहिए जिन परिवारों के मासूम बच्चों की कफ सिरिप लेने से मौत हुई है उन परिवारों के दर्द को शब्दों में बयान करना मुश्किल है। पीड़ित परिवारों की आर्थिक मदद के साथ जो कुछ संभव हो उनको राहत देने के लिए किया जाना चाहिए क्योंकि मासूमों की मौत का कारण तो बीमार व्यवस्था है और इसकी जिम्मवार प्रदेशों की और केन्द्र सरकारें ही हैं।