दुर्गा विसर्जन का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा? जानिए विसर्जन करते समय कौन सा मंत्र बोलना है

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धर्म { गहरी खोज } : दुर्गा पूजा उत्सव का समापन दुर्गा विसर्जन के साथ होता है। श्रद्धालु दशहरा के दिन सुबह के समय मां दुर्गा की प्रतिमा का विधि विधान विसर्जन करते हैं। दुर्गा पूजा से पहले सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है। ये पश्चिम बंगाल में मनाई जाने वाली अनोखी परंपरा है। इस शुभ अवसर पर महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। भक्त विसर्जन के बाद नवरात्रि व्रत का पारण भी करते हैं। चलिए आपको बताते हैं इस साल दुर्गा विसर्जन का मुहूर्त क्या रहेगा।

दुर्गा विसर्जन 2025 मुहूर्त

दुर्गा विसर्जन – 2 अक्टूबर 2025, बृहस्पतिवार
दुर्गा विसर्जन मुहूर्त – 06:15 AM से 08:37 ए एम
दशमी तिथि प्रारम्भ – 01 अक्टूबर 2025 को 07:01 पी एम बजे
दशमी तिथि समाप्त – 02 अक्टूबर 2025 को 07:10 पी एम बजे
श्रवण नक्षत्र प्रारम्भ – 02 अक्टूबर 2025 को 09:13 ए एम बजे
श्रवण नक्षत्र समाप्त – 03 अक्टूबर 2025 को 09:34 ए एम बजे

दुर्गा विसर्जन विधि

दुर्गा विसर्जन के दिन देवी की प्रतिमा या मूर्ति के सामने दीपक और धूप जलाकर उनकी विधि विधान पूजा करें।
इसके बाद माता को फूल, अक्षत, सिंदूर, लाल चुनरी और नारियल अर्पित करें।
फिर देवी को हलवा, पूड़ी, खीर, नारियल और फल का भोग अर्पित करें।
उनकी विधि विधान आरती करें।
आरती करने के बाद माता से क्षमा प्रार्थना करें कि अगर उनकी पूजा-अर्चना में कोई कमी रह गई हो तो उसे वे क्षमा करें।
अंत में जल से भरा कलश लेकर मां दुर्गा की विदाई करें और यह संकल्प लें कि वे अगले वर्ष फिर से पधारें।
उसके बाद माता की प्रतिमा को जल में विसर्जित कर दें।
यदि आपके घर के आस-पास नदी या सरोवर नहीं है तो घर पर ही माता की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर वहीं इनकी विदाई कर दें।
कलश विसर्जन कैसे करें?

दुर्गा विसर्जन से पहले क्या करें?

बंगाल और पूर्वी भारत में दुर्गा विसर्जन से पहले महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर मां दुर्गा को विदाई देती हैं। यह परंपरा सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
दुर्गा विसर्जन से पहले भक्तजन सामूहिक रूप से देवी की आरती करते हैं।
माता की प्रतिमा को डोलियों या रथ पर रखकर ढोल-नगाड़ों के साथ विसर्जन स्थल पर ले जाया जाता है।

दुर्गा विसर्जन मंत्र

जब श्रद्धालु मां दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति का विसर्जन करते हैं, तो वे देवी से पुनः आगमन की प्रार्थना करते हैं। यह मंत्र विशेष रूप से विसर्जन के समय पर बोला जाता है: “नमस्तेऽस्तु महादेवि महा मायि सुरेश्वरि। ख्यातं यत् त्वं प्रसन्ना च प्रसन्नं सर्वतो भव॥”
विसर्जन के दौरान इस मंत्र का जाप भी जरूर करना चाहिए- “गच्च गच्च परं स्थाना, स्वस्थानं गच्च देवि च। पुनरागमनायाथ सर्वमंगलमस्तु ते॥”

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