संधिकाल में होती है मां दुर्गा के इस दिव्य रूप की आराधना, जानिए संधि पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व

धर्म { गहरी खोज } : नवरात्रि हर भारतीय हिंदू परिवार के लिए बेहद मायने रखती हैं। नौ दिनों तक सच्चे मन से लोग मातारानी की आराधना में लीन रहते हैं। सबकी यही इच्छा होती है कि देवी मां उनकी अर्जी को सुन लें। इन नौ दिनों में देश के विभिन्न हिस्सों में कई तरह के पूजा-विधान और परंपराएं निभाई जाती हैं। इनमें से एक हैं संधि पूजा। अष्टमी और नवमी के संधिकाल में होने वाली संधि पूजा को नवरात्रि का सबसे शुभ क्षण बताया गया है। संधि काल को लेकर ऐसी मान्यता है कि यह वह समय है, जब मां जगदंबा अपना दिव्य और विकराल रूप धारण करके दुष्टों का संहार करती हैं।
किसे कहते हैं संधिकाल?
ऐसा कहा जाता है कि इसी संधिकाल में माता दुर्गा ने चांमुडा का रूप धरकर महिषासुर के दो सेनापतियों चंड और मुंड का संहार किया था। उसके बाद अगले दिन महिषासुर का वध किया था। यही वजह है कि इस समय में की जाने वाली देवी दुर्गा की पूजा को संधि पूजा कहा जाता है। यह केवल एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान नहीं, बल्कि शक्ति के अद्भुत पराक्रम की स्मृति भी है।
सन्धि पूजा, मंगलवार
30 सितंबर को महाअष्टमी तिथि के दिन भोग और आरती के साथ-साथ सबसे महत्वपूर्ण संधि पूजा होती है।
सन्धि पूजा शुभ मुहूर्त
संधि पूजा में अष्टमी तिथि समाप्त होने के आखिरी 24 मिनट और नवमी तिथि प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट का समय संधि काल कहलाता है। जो कुल 48 मिनट का एक शुभ मुहूर्त होता है।
सन्धि पूजा मुहूर्त – 05:42 पी एम से 06:30 पी एम
अवधि – 00 घंटे 48 मिनट्स
अष्टमी तिथि प्रारंभ – सितंबर 29, 2025 को 04:31 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – सितंबर 30, 2025 को 06:06 पी एम बजे
क्या है संधि पूजा?
संधि पूजा करने से अष्टमी और नवमी दोनों ही देवियों की एक साथ पूजा हो जाती है।
संधि काल का समय दुर्गा पूजा और हवन के लिए सबसे शुभ माना जाता है।
संधि काल में 108 दीपक जलाकर माता की आराधना की जाती है।
संधि पूजा के समय केला, ककड़ी, कद्दू आदि फल सब्जी की बलि दी जाती है।
भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित कामना को पूर्ण करने वाली और भक्तों को अभय, रूप व सौंदर्य प्रदान करने वाली है।
शक्ति और समर्पण का प्रतीक है संधि पूजा, जिससे देवी शीघ्र प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
जानिए संधि पूजा का क्या महत्व है
संधि पूजा एक बहुत ही पवित्र और अहम अनुष्ठान होता है। अष्टमी तिथि की समाप्ति और नवमी तिथि के आरंभ के साथ ही संधि पूजा की शुरुआत होती है। यह संधिकाल बहुत शक्तिशाली और मां की विशेष कृपा-क्षण का समय माना जाता है। हिंदू शास्त्रों और पुराणों में कहा गया है कि संधि काल में की गई पूजा, जप और मां की आराधना शीघ्र ही फल देने वाली होती है।
अनेकानेक दीपकों की रोशनी से जगमगाती और कमल के फूलों की सुगंध से सुवासित होती संधि पूजा, जगत जननी मां जगदंबा की उपासना का दिव्य रूप मानी जाती है। धर्म की रक्षा के लिए मां के दिव्य रूप की आराधना माता के भक्तों को यह विश्वास दिलाती है कि अधर्म पर हमेशा धर्म की ही जीत होती है।