राजस्थान के विश्वविद्यालयों में पंडित दीनदयाल के जीवन दर्शन पर शोध पीठ बनेगी : देवनानी

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जयपुर{ गहरी खोज }: राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महापुरुष की दूरदर्शिता, विचारशीलता और भारतीय राजनीति को नई दिशा देने वाले दर्शन पर आधारित अनुसंधान के लिए राजस्थान के विश्वविद्यालयों में शोध पीठ बनेगी। उन्होंने कहा कि भारतीयता पर आधारित शिक्षा से ही संस्कार मिलेंगे और इसी से भारतीय संस्कृति विश्व में सिरमौर बन सकेगी।
देवनानी गुरुवार को यहां धानक्या में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 109 वीं जयंती पर आयोजित व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे। देवनानी ने पंडित उपाध्याय की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। देवनानी ने इस मौके पर पंच परिवर्तन पर कार्य करने वाले प्रबुद्ध जन और पंडित उपाध्याय के जीवन दर्शन पर अनुसंधान करने वाले शोधार्थियों का सम्मान भी किया। देवनानी ने पंडित दीनदयाल की राजस्थान यात्रा पुस्तक का विमोचन किया।
देवनानी ने कहा कि पंडित उपाध्याय की स्वदेशी उत्पादों के उपयोग की दूरदर्शी सोच आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि जीवन मूल्य पर आधारित जीवन रचना में ही जीवन यापन करें। परिवार भारतीय संस्कृति का मूल है। कर्तव्य आधारित राष्ट्र की नीति के अनुरूप ही विकास करना होगा। गरीब का उन्नयन ही विकसित भारत की अवधारणा है।
देवनानी ने कहा कि मानसिक शांति वाला वातावरण भारतीय परिवेश में ही मिल सकता है। हरिद्वार और पुष्कर में अन्य देशों के लोग आकर यहां की मिट्टी से जुड़कर आनंद का अनुभव करते हैं। आदर्श जीवन की अवधारणा जीवन की सफलता का सदमार्ग है। देवनानी ने कहा कि स्वदेशी के भाव से ही राष्ट्र आत्मनिर्भर बन सकेगा और कोई भी विदेशी ताकत हमारी और आंख उठाकर नहीं देख सकेगी। समारोह के मुख्य वक्ता अरुण जैन ने पंडित उपाध्याय के एकात्म मानववाद से एकात्म मानव दर्शन पर व्याख्यान देते हुए कहा कि भारतीयता के मूल सिद्धांतों पर चलना होगा। अपनी जड़ों से जुड़कर रहना होगा। भारतीय रीति नीति और परंपराओं को बनाए रखना होगा। भारतीय परिप्रेक्ष्‍य की सोच के अनुरूप ही नीतियों का क्रियान्वयन किया जाना आवश्यक है। विधायक गोपाल शर्मा ने पंडित उपाध्याय को भारतीय राजनीति व संस्कृति का राजदूत बताया। उन्होंने कहा कि पं. दीनदयाल के बताए मार्ग पर चलना होगा। पंडित उपाध्याय ने भारतीय राजनीति की दिशा बदली और अपने रोम-रोम को भारत के लिए समर्पित किया।

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