फिलिस्तीन के मुद्दे पर नेतृत्व दिखाए भारतः खरगे

Congress President Mallikarjun Kharge addresses the gathering during the Telangana Congress Booth Level Convention, in Hyderabad, on January 25, 2024 | PTI
नई दिल्ली{ गहरी खोज }: कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी के फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष पर एक अंग्रेजी अखबार में लिखे गए लेख को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि भारत को फिलिस्तीन के मुद्दे पर नेतृत्व दिखाना चाहिए। उन्होंने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की चुप्पी को मानवता और नैतिकता का त्याग बताया।
खरगे ने एक्स पोस्ट में कहा कि सोनिया गांधी ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि भारत को फिलिस्तीन के मुद्दे पर नेतृत्व दिखाना चाहिए। उन्होंने उनके लेख के अंश साझा करते हुए कहा कि मोदी सरकार की प्रतिक्रिया मानवीय संकट पर गहरी चुप्पी और मानवता व नैतिकता दोनों का त्याग रही है। यह रवैया प्रधानमंत्री मोदी और इजरायली प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत मित्रता से प्रेरित प्रतीत होता है, न कि भारत के संवैधानिक मूल्यों और सामरिक हितों से। खरगे ने कहा कि व्यक्तिगत कूटनीति भारत की विदेश नीति का मार्गदर्शन नहीं कर सकती। भारत को फिलिस्तीन के मुद्दे को केवल विदेश नीति का हिस्सा नहीं बल्कि नैतिक और सभ्यतागत परीक्षा के रूप में देखना चाहिए।
वहीं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक्स पर लिखा कि भारत का ऐतिहासिक अनुभव और मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता उसे बिना हिचकिचाहट न्याय के पक्ष में बोलने और कार्य करने के लिए सशक्त बनाती है। उन्होंने कहा कि इस संघर्ष में किसी एक पक्ष को चुनने की अपेक्षा नहीं है, बल्कि नेतृत्व से अपेक्षा है कि वह सिद्धांत आधारित हो और उन मूल्यों के अनुरूप खड़ा हो, जिन पर भारत का स्वतंत्रता आंदोलन टिका था। उलेखनीय है कि सोनिया गांधी ने एक अंग्रेजी अखबर में प्रकाशित अपने लेख में कहा कि भारत की चुप्पी और फिलिस्तीन के प्रति उदासीनता चिंताजनक है। साल 1988 में भारत ने फिलिस्तीन को औपचारिक मान्यता दी थी और लंबे समय तक नैतिक आधार पर फिलिस्तीनी जनता के अधिकारों का समर्थन किया। भारत का इतिहास रंगभेद, अल्जीरिया की स्वतंत्रता, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे मुद्दों पर साहसिक नैतिक नेतृत्व का गवाह रहा है। संविधान में भी अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को राज्य नीति का हिस्सा माना गया है। भारत ने पहले पीएलओ को मान्यता देने, दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन करने और संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के पक्ष में खड़े होकर संतुलित और सिद्धांतनिष्ठ नीति अपनाई। फिलिस्तीन को मानवीय और विकास सहायता भी दी गयी, लेकिन अक्टूबर 2023 के बाद जब इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष तेज हुआ और 55 हजार से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए, तब भारत की भूमिका लगभग समाप्त हो गई। गाजा की तबाही, भुखमरी और बुनियादी ढांचे के विनाश पर भारत की चुप्पी असामान्य और अस्वीकार्य है।
सोनिया गांधी ने लेख में कहा कि भारत सरकार का रवैया इजरायली प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत मित्रता से प्रेरित है, न कि भारत के संवैधानिक मूल्यों या सामरिक हितों से। यह व्यक्तिगत कूटनीति टिकाऊ नहीं है और विदेश नीति का मार्गदर्शक सिद्धांत नहीं हो सकती। फिलिस्तीन का मुद्दा भारत की विदेश नीति से आगे बढ़कर उसकी नैतिक और सभ्यतागत विरासत की परीक्षा है। फिलिस्तीनी जनता का संघर्ष औपनिवेशिक काल में भारत की पीड़ा का प्रतिबिंब है। उन्होंने जोर दिया कि भारत को अपने ऐतिहासिक अनुभव और नैतिक जिम्मेदारी के आधार पर न्याय, मानवाधिकार और शांति के पक्ष में बिना देरी और हिचकिचाहट के सशक्त आवाज उठानी चाहिए।