चुनाव आयोग का हलफनामा

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संपादकीय { गहरी खोज }: देश में नियमित अंतराल पर मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एस.आई.आर) को लेकर कोई भी निर्देश आयोग के विशेष अधिकार क्षेत्र में ‘अतिक्रमण’ होगा। शीर्ष अदालत में दायर एक जवाबी हलफनामें में आयोग ने कहा कि किसी अन्य प्राधिकरण के हस्तक्षेप के बिना संशोधन की नीति पर उसका ‘पूर्ण विवेकाधिकार’ है।

आयोग ने कहा कि बिहार को छोड़कर, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सभी मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को संबोधित अपने पांच जुलाई, 2025 के पत्र के माध्यम से, आयोग ने एक जनवरी, 2026 को अर्हता तिथि मानते हुए मतदाता सूचियों के एसआइआर के लिए तत्काल पूर्व- संशोधन गतिविधियां शुरू करने का निर्देश दिया है। हलफनामे में कहा गया है कि आयोग को मतदाता सूची की तैयारी और संशोधन की निगरानी के लिए संवैधानिक एवं वैधानिक शक्तियां प्राप्त हैं। देश भर में नियमित अंतराल पर ‘एसआइआर’ आयोजित करने का कोई भी निर्देश आयोग के विशेष अधिकार क्षेत्र पर अतिक्रमण होगा।
हलफनामा अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर दायर किया गया है, जिन्होंने आयोग को पूरे भारत में, विशेष रूप से चुनावों से पहले, नियमित अंतराल पर मतदाता सूचियों का एसआइआर कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल भारतीय नागरिक ही देश की राजनीति और नीति के संबंध में निर्णय लें।

आठ सितंबर को न्यायालय ने निर्देश दिया था कि बिहार में मतदाता सूचियों की एसआइआर प्रक्रिया में मतदाताओं के पहचान प्रमाण के रूप में आधार कार्ड को ‘अनिवार्य रूप से’ शामिल किया जाना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने आयोग को नौ सितंबर तक इस आदेश को लागू करने का निर्देश दिया था। अपने जवाबी हलफनामे में आयोग ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत संसद और प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिए सभी चुनावों के सिलसिले में मतदाता सूची तैयार करने और उनके संचालन की निगरानी, निर्देशन और नियंत्रण आयोग पर निर्भर है। उक्त संवैधानिक प्रावधान मतदाता सूची तैयार करने और चुनाव कराने से संबंधित सभी मामलों में आयोग के पूर्ण अधिकार का आधार है। गौरतलब है कि बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण को लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद हो गया है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य लोगों को उनके मताधिकार से वंचित करना है। वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि एसआइआर का उद्देश्य उन लोगों के नाम हटाकर मतदाता सूची को संशोधित करना है जो या तो मर चुके हैं, या उनके पास फर्जी पहचान पत्र हैं या जो अवैध प्रवासी हैं।

चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूचियों की जांच पड़ताल कराना उसका सवैधानिक कर्तव्य है। देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था और मतदाता के हाथ में ही सत्ता में किसको बिठाना और बाहर करने की शक्ति है। यह शक्ति अगर किसी गैर-भारतीय या घुसपैठिए के हाथ आ जाए तो इससे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर संकट आ सकता है। इसलिए चुनाव आयोग का संवैधानिक कर्तव्य बनता है कि समय बीतने के साथ मतदाता सूचियों का निरीक्षण कर चुनाव भी करवाए। चुनाव आयोग के उपरोक्त कर्तव्य व अधिकार पर हस्तक्षेप या नियंत्रण करने का प्रयास देश हित में नहीं होगा। यह हस्तक्षेप चाहे सरकार का हो या न्यायालय का।

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