विश्व एक परिवार है: मोदी हैं इस सूफी अवधारणा के समकालीन व्याख्याता: पीरज़ादा अरशद फ़रीदी

नयी दिल्ली{ गहरी खोज }:फ़तेहपुर सीकरी स्थित दरगाह हज़रत शेख सलीम चिश्ती के सज्जादा नशीन पीरज़ादा अरशद फ़रीदी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कृतित्व एवं व्यक्तित्व को बिल्कुल अलग नज़रिये से देखा है।
अरशद फ़रीदी ने श्री मोदी के जन्म दिन पर अपने एक लेख में कहा है कि सूफ़ीवाद का दर्शन न केवल मनुष्यों के बीच आध्यात्मिक दूरियों को कम करता है, बल्कि राष्ट्रों के बीच की दूरियों को भी मिटाता है। उन्होंने लेख में कहा कि जिस खुलेपन के साथ श्री मोदी ने हाल ही में इस दर्शन की भारत की प्राचीन मान्यता ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (विश्व एक परिवार है) के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता का उल्लेख किया, वह अद्वितीय है। उन्होंने कहा कि श्री मोदी का महत्व इस मायने में और भी बढ़ जाता है कि वह हमारे देश के पहले लोकतांत्रिक शासक हैं, जिन्होंने संघर्षग्रस्त विश्व को शांति और सद्भाव के महत्व का एहसास कराया है।
उन्होंने कहा कि सूफ़ी दर्शन कल भी शांति और सुरक्षा के बारे में था और आज की अशांत और बेचैन दुनिया को भी आत्म-शुद्धि, आध्यात्मिकता और ज्ञान के रचयिता के सामीप्य से ही मानवता के कल्याण के लिए आवश्यक शांति प्राप्त होगी, जो मनुष्य को प्रेम, भाईचारे और दूसरों के प्रति परस्पर सम्मान की ओर ले जाती है। सूफ़ी शिक्षाओं में सहिष्णुता, धैर्य और सभी प्राणियों के प्रति प्रेम शामिल है, जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण साधन बनता है।
उन्होंने कहा कि हाल ही में, दिल्ली में खुसरो महोत्सव में, श्री मोदी ने भारत को विश्व पटल पर अग्रणी बनाने के उनके प्रयासों में हज़रत अमीर खुसरो की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने अपने विचारों, वचनों और कर्मों से भारत को विश्व के राष्ट्रों में सबसे महान राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया। सूफी संत बुल्ले शाह, बाबा फ़रीदुद्दीन शकरगंज, निज़ामुद्दीन औलिया और खुसरो द्वारा प्रचलित सामंजस्यपूर्ण संगीत संस्कृति पर ज़ोर देते हुए, उन्होंने सूफी भक्ति की सर्वश्रेष्ठ परंपरा को नमन किया और कहा कि यदि संस्कृत आज भी विश्व की एक महान भाषा है, तो उसे यह दर्जा दिलाने में अमीर खुसरो की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। इसी प्रकार, हम रूमी और मिर्ज़ा ग़ालिब की सेवाओं के लिए सदैव कृतज्ञ और प्रशंसनीय रहेंगे।
सूफी संगीत को भारत की साझी समृद्ध विरासत की एक प्रमुख विशेषता बताते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि सूफी संतों द्वारा फैलाया गया शांति और सौहार्द का संदेश हमें इस युद्धग्रस्त युग में समझने और विचार करने के लिए बहुत कुछ देता है। भारत की गंगा-जमुनी सभ्यता ने सूफीवाद को फलने-फूलने के भरपूर अवसर प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस देश ने न केवल अपनी सांस्कृतिक और बौद्धिक संपदा का और विस्तार किया है, बल्कि सूफी आंदोलन को स्थानीय रंग और सद्भाव भी दिया है।
दरगाह के सज्जाद पीरज़ादा अरशद फ़रीदी ने कहा कि सूफ़ियों ने भी यहां की परंपराओं को खुले दिल से अपनाया, स्थानीय ज्ञान और कला से लाभ उठाया और यहां की अवधारणाओं और मूल्यों का सम्मान करते हुए, अपने देश में कुछ बदलावों के साथ उन्हें जारी रखा और उनका पालन किया। सूफ़ीवाद ने भारतीय सभ्यता पर जो गहरा प्रभाव डाला है, वह किसी से छिपा नहीं है। इसने यहां की विविधता को और बढ़ाया है। लोग सहिष्णुता, सहनशीलता, मानवता और अहिंसा को भूलने लगे थे। इसमें जो व्यवधान आया है, उसे भी सूफ़ीवाद की शिक्षाओं पर अमल करके दूर किया जा सकता है। भारतीय मूल्यों को नवजीवन देने, इसकी बौद्धिकता में उल्लेखनीय वृद्धि करने और राष्ट्र को अध्यात्म की नयी अवधारणाओं से परिचित कराने में सूफ़ियों की भूमिका को कभी भुलाया नहीं जा सकता।