मोदी: करिश्मा अब भी बरकार है

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नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: करिश्माई व्यक्तित्व, ईमानदार छवि और कड़ी मेहनत के बल बूते लगातार पिछले 11 साल से विशाल और विविधातापूर्ण देश के प्रधानमंत्री पद को संभाल रहे श्री मोदी आज भी दुनिया के लोकत्रांतिक देशों के नेताओं की घरेलू लोकप्रियता के सूचकांक में बीच बड़े अंतर के साथ सबसे ऊपर हैं।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में श्री मोदी दूसरे राजनेता हैं जिन्होंने लगातार चुनावी सफलता के साथ तीसरी बार प्रधानमंत्री पद संभाला है और आज भी जनता के बीच सबसे स्वीकार्य नेता बने हुए हैं। वैश्विक सर्वे फर्म स्टास्टिस्टा की अगस्त 2025 तक की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार श्री मोदी की घरेलू स्वीकार्यता 72 प्रतिशत के साथ सबसे ऊपर थी। उनको अस्वीकार बताने वालों का हिस्सा 21 प्रतिशत था जबकि सात प्रतिशत अपनी पसंद को लेकर अनिश्चिता में थे। इस सर्वे में दूसरे नंबर पर रहे दक्षिण कोरिया के ली जायी-मियुंग की घरेलू स्वीकार्यता 58 प्रतिशत और अस्वीकार्यता 30 प्रतिशत बतायी गयी है।
इसी तरह अमेरिका की एजेंसी पेव रिसर्च सेंटर की मार्च-मई की अवधि की रिपोर्ट में श्री मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 79 प्रतितशत पर था। घरेलू मीडिया घराने इंडिया टुडे की एक अगस्त की एक रिपोर्ट में श्री मोदी 58 प्रतिशत की स्वीकार्यता रेटिंग के साथ अन्य नेताओं से कोसों आगे थे।
श्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का राज्यों में राजनीतिक वर्चस्व बढ़ा है और पार्टी में उनकी एकमात्र ऐसे नेता की छवि बनी है जिनके बारे में देश के कई क्षेत्रों में अक्सर यह सुनने को मिलता है कि वहां चुनाव कोई भी लड़े वोट श्री मोदी को मिलते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि श्री मोदी के व्यक्तित्व और उनकी लोकप्रियता के कारण पिछले 11 साल में उनके नेतृत्व में भाजपा के वोट का दायरा बढ़ा है और सभी वर्गों ने उसको वोट दिया है। विश्लेषणों के अनुसार भाजपा का मुस्लिम वोट 1996 में दो फीसदी था जो 2014 और 2019 में आठ फीसदी पहुंचा। अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी का भाजपा का वोट 1996 के 19 प्रतिशत की तुलना में बढकर अब 44 प्रतिशत पहुंच गया है जबकि अनुसूचित जाति का 14 प्रतिशत से 34 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति का 21 से बढ़कर 44 प्रतिशत पर पहुंच गया।
राजनीतिक बिसात के इन नये समीकरणों के उभरने के साथ भाजपा के चरित्र में भी बदलावा आया है और भाजपा वैचारिकरूप से नरम पड़ी लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि उसकी राजनीति सफलता का आधार हिंदुत्व ही है और यह श्री मोदी की राजनीतिक रणनीति के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है।
चुनावों में विश्लेषकों ने उन्हें बार बार ध्रुवीकरण करने वाला नेता बताया, हालांकि प्रारंभ से ही भाजपा की राजनीति का आधार हिंदुत्व को ही माना जाता रहा है। हिंदुत्व को पार्टी और उसके सहयोगी विशिष्ट रूप से परिभाषित करते हैं और उसके सेक्यूलरीज्म का आधार बताते हैं ।
भाजपा ने 2019 का आम चुनाव तो सिर्फ मोदी की लोकप्रियता और उनके करिश्माई व्यक्तित्व के कारण ही जीता था और उस चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई जिससे उत्साहित होकर 2024 के आम चुनाव में 400 पार का अत्यंत उत्साहित नारा आया। हालांकि इस बार गठबंधन के सहयोगी दलों के सहारे श्री मोदी को प्रधानमंत्री बनना पड़ा लेकिन एक साल से केंद्र की सत्ता से लेकर विभिन्न राज्यों में हो रहे चुनावों में उनका करिश्माई व्यक्तित्व पहले की तरह ही प्रभावी बना हुआ है।
श्री मोदी के प्रशंसक उनकी जीत और सफल नेतृत्व के लिए सोशियल इंजीनियरिंग की राजनीति के दौर को भी फायदेमंद मानते हैं और कहते हैं कि श्री मोदी ने खुद को सूझबूझ के साथ इस इंजीनियरिंग में प्रभावी तरीके से समाहित किया है। विश्लेषकों के अनुसार उनका पिछड़े वर्ग और गरीब परिवार से उठ कर भाजपा जैसे दल का नेतृत्व करना भी इस राजनीति में उनके चमकने का सूत्र बना और अपने व्यक्तित्व के करिश्मे तथा काम करने की प्रभावी शैली और शब्दों की बाजीगरी से वह देखते ही देखते समाज के वंचित और पिछड़े तबके के चमकते सितारे भी बन गये।
तमाम विश्लेषणों में कहा गया है कि समाज के विभिन्न वर्गों को लामबंद करते हुए उन्होंने पार्टी को आगे बढाने के काम में लगा दिया। सोशल इंजीनियरिंग के रास्ते वोट के लिए समाज को 2014 की अपनी लोकप्रियता से बांधने का जो करिशम उन्होंने शुरु किया उसे बनाए रखा और 2019 के चुनाव में उसे और मजबूती प्रदान की जिसके कारण भाजपा जबरदस्त जीत के साथ सत्ता में आई।
भाजपा की चमक और श्री मोदी की पिछले 11 साल में बढ़ी धमक पर उनका मानना है कि प्रधानमंत्री ने देश में लम्बे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस के कमजोर होने का पूरा फायदा उठाया है। उन्होंने राजनीतिक सफलता हासिल करने के बाद भी कांग्रेस को घेरते रहने की रणनीति पर निरंतर काम किया और कांग्रेस के साथ ही उसके नेता राहुल गांधी को घेरे रखने की राजनीति को गति दी। श्री मोदी की भाजपा ने विपक्ष के साथ संग्राम में इसमें सबसे तीखा और जनता को अपील करने वाला तीर परिवारवाद को बनाया गया जिसकी जद में कांग्रेस ही नहीं तेजी से उभरे क्षेत्रीय दल भी आये हैं।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि श्री मोदी के नेतृत्व में यह संदेश देने का काम शिद्दत के साथ हुआ है कि कांग्रेस में परिवारवाद की मजबूती के कारण कमजोर नेता को आगे बढ़ाकर देश पर थोपने का प्रयास किया जा रहा है। संदेश यह दिया गया कि कांग्रेस अब आंदोलन वाली कांग्रेस नहीं रही बल्कि पारिवारिक जागिर बन गई है और उसका इस्तेमाल परिवारवाद के पोषण और राजनीति को जागीर बनाये रखने के लिए किया जा रहा है। कांग्रेस में परिवारवाद प्रभावी है और उसका नेता कोई भी बने लेकिन बर्चस्व परिवार का और उसके सदस्यों का ही रहेगा और कांग्रेस के शासन में प्रधानमंत्री कोई भी बने लेकिन परिवार के सदस्य के प्रभाव के सामने गिड़गिड़ता नजर आएगा।
श्री मोदी की इस राजनीति सोच से कमजोर हुई क्षेत्रीय दलों की राजनीति का विश्लेषण करते हुए जानकार कहते हैं कि 90 के दशक में चली राजनीतिक अस्थिरता के कारण लालू-मुलायम जैसे नेताओं ने खुद को क्षेत्रीय हितों का प्रतिनिधि, राज्य की स्वायत्तता का संरक्षक, अपनी जनता के सांस्कृतिक आधार और पिछड़े सामाजिक समूह की आंकाक्षाओं का रक्षक बताया लेकिन उनका व्यवहार दावों के विपरीत रहा। इन सबने बहुजन समाज पार्टी की तर्ज पर जातीय राजनीति शुरु की और इसका उन्हें लाभ मिला लेकिन जल्द व्यक्तिगत जागीर समझने, व्यक्तिगत लाभ, राजनीतिक भ्रष्टाचार और कुशासन ने इन दलों की राजनीतिक जड़ों को हिला दिया। संदेश यह रहा कि राजनीतिक सत्ता निजी संपत्ति की तरह परिवार के सदस्यों को सौंपी जा सकती है और राजनीतिक दल को निजी जागीर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। श्री मोदी के परिवारवाद की राजनीति पर हमले की चपेट में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी क्षेत्रीय दल भी आये।

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