नवरात्रि से पहले जान लें घट स्थापना और मूर्ति की सही दिशा, ताकि मिले मां दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद

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धर्म { गहरी खोज } :नवरात्रि का पर्व केवल भक्ति और आराधना का नहीं बल्कि ऊर्जा और सकारात्मकता का उत्सव भी माना जाता है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा की साधना, व्रत और पूजा विशेष महत्व रखते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कलश स्थापना और मूर्ति की दिशा का सही चुनाव आपके पूरे परिवार के सुख-समृद्धि से जुड़ा होता है? शास्त्रों और पुराणों में स्पष्ट कहा गया है कि अगर पूजा की दिशा सही नहीं हो, तो साधना का पूरा फल नहीं मिल पाता। इसलिए नवरात्रि की शुरुआत करते समय घट स्थापना की सही दिशा पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

स्कन्द पुराण का उल्लेख : उत्तर-पूर्व दिशा का महत्व
स्कन्द पुराण में देवी पूजन और घट स्थापना की विधियों का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें पूजा की शुद्धि, आह्वान मंत्र और नियमों का विस्तार से उल्लेख है। हालांकि इसमें किसी एक दिशा को कठोर रूप से अनिवार्य नहीं बताया गया है, लेकिन उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) को देवताओं का प्रवेश द्वार माना गया है। इस दिशा में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सबसे अधिक होता है। यही कारण है कि कलश स्थापना के लिए इस दिशा को सबसे शुभ और पवित्र माना गया है।

देवी पुराण के अनुसार मूर्ति की दिशा
देवी पुराण में मातृका देवताओं (सप्तमात्रिकाओं) की पूजा का उल्लेख है, जिसमें कहा गया है कि देवी की प्रतिमा या तस्वीर उत्तर की ओर मुख करके रखी जाए। यह संकेत देता है कि उत्तर दिशा में देवी की उपासना विशेष फलदायी होती है। यही कारण है कि नवरात्रि में देवी प्रतिमा को पूर्व या उत्तर दिशा में रखना सबसे शुभ माना गया है।

कलश और मूर्ति की सही स्थापना
कलश स्थापना:

  • कलश को हमेशा उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में रखें।
  • यह स्थान घर में ऊर्जा और सकारात्मकता का केंद्र होता है।
    मूर्ति या तस्वीर की दिशा:
  • देवी प्रतिमा को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके रखें।
  • इससे घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
    भक्त की दिशा:
  • पूजा करने वाला व्यक्ति पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे।
  • यह साधना को सिद्ध करने में मदद करता है।
    क्यों महत्वपूर्ण है सही दिशा
  • पूर्व दिशा को ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक माना गया है।
  • उत्तर दिशा को स्थिरता और समृद्धि प्रदान करने वाली दिशा बताया गया है।
  • ईशान कोण को देवताओं का प्रवेश द्वार कहा गया है, जहां से सकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश करती है।
    यही कारण है कि घट स्थापना और मूर्ति की दिशा को लेकर शास्त्रों में विशेष महत्व दिया गया है।

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