भारतीय भाषाएं ही देश की एकता की सशक्त कड़ी: मनोज सिन्हा

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कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत को एकसूत्र में पिरोने काे समर्पित कार्यक्रम संपन्न

वाराणसी{ गहरी खोज }: भाषावार प्रांतों में विभाजित होने के बावजूद भारत की आत्मा एक है। यही संदेश कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक सूत्र में पिरोने वाले भारतीय भाषा समागम 2025 में गूंजा। समागम में जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना की आत्मा है। भारतीय भाषाएं ही देश की एकता की सशक्त कड़ी हैं, जो हमें विविधता में भी एकता का बोध कराती हैं।

उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी काशी (वाराणसी) में हिन्दुस्थान समाचार समूह की ओर से शनिवार को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के गांधी अध्ययन पीठ सभागार में भारतीय भाषा समागम 2025 का आयोजन किया गया। इस वर्ष का विषय “पंच प्रण : स्वभाषा और विकसित भारत” रहा। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। आयोजन में देशभर की भाषाओं, बोलियों और लोक संस्कृतियों की रंगारंग छटा दिखी। समागम में 22 भारतीय भाषाओं के विद्वानों को भारतीय भाषा सम्मान से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दुस्थान समाचार समूह के अध्यक्ष अरविंद भालचंद्र मार्डीकर ने की। संचालन जितेंद्र तिवारी ने किया। स्वागत निदेशक प्रदीप मधोक ‘बाबा’ ने किया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना की आत्मा है। भारतीय भाषाएं ही देश की एकता की सशक्त कड़ी हैं, जो हमें विविधता में भी एकता का बोध कराती हैं। उन्होंने कहा कि भारत की सांस्कृतिक विरासत की जड़ें वेदों और पुराणों में निहित हैं, जिनका उद्गमस्थान (वाराणसी) मानी जाती है। काशी को वेदों और पुराणों के अनुसार धरती का पहला और अंतिम नगर कहा गया है, जहां से भारतीय भाषाओं की आवाज पूरे देश में गूंजती रही है। इस समागम का उद्देश्य देश की भाषाई विविधता को सम्मान देना और नई पीढ़ी को अपनी मातृभाषा के प्रति गौरव बोध कराना है।

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिए गए ‘पंच प्रण’ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा स्वभाषा के प्रति गर्व और उसका व्यापक उपयोग है। किसी भी राष्ट्र की आत्मा उसकी मातृभाषा में बसती है। जब तक हम अपनी मातृभाषाओं को सम्मान और प्राथमिकता नहीं देंगे, तब तक विकसित भारत का सपना अधूरा रहेगा। भारतीय भाषाएं केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, ज्ञान और पहचान का प्रतीक हैं। आज आवश्यकता है कि युवा वर्ग तकनीकी और वैज्ञानिक शिक्षा के साथ-साथ अपनी मातृभाषा में भी निपुण बनें। जम्मू-कश्मीर ही नहीं, पूरे भारत में हम देख रहे हैं कि मातृभाषा के उपयोग से प्रशासन और शिक्षा दोनों में पारदर्शिता और सहजता बढ़ रही है। आने वाले समय में स्वभाषा ही हमें आत्मनिर्भर और आत्मगौरव से परिपूर्ण बनाएगी। मैं हिंदुस्तान समाचार समूह को इस सार्थक पहल के लिए बधाई देता हूं और विश्वास दिलाता हूं कि स्वभाषा के मार्ग पर चलकर ही हम विकसित भारत के संकल्प को पूरा करेंगे।

शिक्षा में भारतीय मूल्यों को शामिल करना समय की आवश्यकता: नीलकंठ तिवारी

वाराणसी शहर दक्षिणी के विधायक नीलकंठ तिवारी ने राष्ट्र, समाज और शिक्षा के मूल्यों पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद अनेक आंदोलनों और बलिदानों से लोकतंत्र और शांति की नींव पड़ी। समाजहित में कार्य करने वालों का सम्मान करना आज भी हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने बताया कि 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ था, तब शिक्षा संस्थानों की संख्या बेहद कम थी, लेकिन आज देशभर में लगभग 600 विश्वविद्यालय, हजारों महाविद्यालय, आईआईटी और प्रबंधन संस्थान कार्यरत हैं। भारतीय छात्र अपनी प्रतिभा और ज्ञान से विश्व स्तर पर भारत का गौरव बढ़ा रहे हैं। विधायक तिवारी ने चिंता जताई कि कई बार छात्रों को यह स्पष्ट नहीं होता कि भारत की असली पहचान और मूल मूल्य क्या हैं। अन्य देशों की तरह भारत को भी अपनी जड़ों और सांस्कृतिक धरोहर को और मजबूत करना होगा। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इस विषय पर गंभीर चिंतन शुरू हुआ है, जिससे समाज में आत्मविश्वास और गर्व की नई भावना जागृत हुई है। उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली में भारतीय संस्कृति और मूल्यों को छात्रों तक पहुंचाना ही समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यह कदम न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी आत्मबल और आत्मविश्वास को मजबूत करेगा।

शिक्षा और मातृभाषा का प्रचार देश की एकात्मता के लिए आवश्यक : अतुल बाई कोठारी

समागम के मुख्यवक्ता व आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक व शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव शिक्षाविद् अतुल भाई कोठारी ने भारतीय भाषाओं के संरक्षण, प्रचार और उनके माध्यम से देश की सांस्कृतिक एकता बनाए रखने पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं में शिक्षा, विज्ञान, तकनीक और साहित्य का प्रचार देश की परंपरा और सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखता है। उन्होंने विशेष रूप से यह बताया कि अनुवाद का कार्य केवल साहित्य को साझा करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच संवाद और समझ को बढ़ाने का भी जरिया है। कोठारी ने स्वतंत्रता संग्राम और समाजिक आंदोलनों में भारतीय भाषाओं की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि देश की आज़ादी और समाज सुधार के आंदोलनों में भारतीय भाषाओं ने लोगों को जागरूक करने और देशभक्ति की भावना को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मातृभाषा में शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह बच्चों के समग्र विकास और राष्ट्रीय पहचान के निर्माण के लिए आवश्यक है। अतुल कोठारी ने लोगों से आग्रह किया कि वे अपनी भाषाओं का सम्मान करें, उनका प्रचार-प्रसार करें और देश की एकात्मता को बनाए रखने में सक्रिय भूमिका निभाएं। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय भाषाओं में तकनीकी और शैक्षणिक सामग्री का विकास आवश्यक है ताकि युवा पीढ़ी अपनी मातृभाषा में आधुनिक ज्ञान तक पहुंच सके।

मातृभाषा में देंगे शिक्षा तब भारत फिर बनेगा विश्व गुरू: बीएचयू के कुलपति

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. आनन्द कुमार त्यागी ने कहा कि 75 साल बाद भारत विश्व के आधुनिक देशों में शामिल क्यों नहीं हुआ उसका सबसे बड़ा कारण एक ही है। हम मातृभाषा में शिक्षा देने में सक्षम नहीं हो पाए। प्रधानमंत्री मोदी का प्रयास है कि शिक्षा मातृभाषा में ही दी जाए। जब भाषाएं उन्नति करेंगी तभी भारत उन्नति करेगा। जब तब हम पुस्तकें अपनी भाषा में उपलब्ध नहीं कराएंगे तब तक देश की उन्नति स्वप्न ही बना रहेगा। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जो भी शिक्षा नीति हमारी अभी तक रही। उसमें शिक्षा का केवल एक ही कम्पोनेंट हम लोग एड्रेस करते रहे। जबकि इसमें तीन कम्पोनेंट है। अभी तक हम लोग दो चीजें पूरी तरह भूला बैठे। अ​ब विश्वविद्यालयों में तीनों चीजें पढ़ाई जा रही हैं। ज्ञान भी दिया जा रहा है, मानवीय गुणों का प्रादुर्भाव भी हो रहा है। साथ ही स्किल डेवलपमेंट का भी विकास हो रहा है। काशी विद्यापीठ ने 2021 से नई शिक्षा नीति लागू कर चुका है। भारत एक बार फिर से विश्व गुरु बने, यह तभी संभव है, जब हम शिक्षा मातृभाषा में देंगे। शिक्षा के तीनों पहलुओं को बराबर वेटेज देंगे।

देश को स्व का बोध कराएगा नई शिक्षा नीति

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के कुलपति प्रो. अजीत कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि नई शिक्षा नीति भावी पीढ़ियों को दिशा देगी। देश को स्व का बोध कराएगा। उन्होंने भारतीय भाषाओं की आवाज हिन्दुस्थान समाचार की भूमिका की चर्चा की। कहा कि 1948 में जब इसकी स्थापना हुई थी, तब ये बीज था। आज वट वृक्ष बनकर हम सबको छाया दे रहा है। दिशा दिखा रहा है। भारतीय भाषाओं के विकास के हिंदी का भी विकास होगा। इससे देश की समरसता बढ़ेगी। एक भारत—श्रेष्ठ भारत की संकल्पना एकाकार होगी।

भारतीय भाषाओं के 22 विद्वानों को किया गया सम्मानित

इस अवसर पर 22 भारतीय भाषाओं के विद्वानों को भारतीय भाषा सम्मान से सम्मानित किया गया। इनमें डॉ. अनिल काशीनाथ सर्जे (मराठी), डॉ. एम संतोष कुमार (तमिल), डॉ. कुलदीप सिंह (पंजाबी), डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ (हिंदी), डॉ. शीलवंत सिंह (सिविल सेवा), डॉ. सी. शिवकुमार स्वामी (कन्नड़), प्रो. देवाशीष पात्र (ओड़िया), प्रो. बी. विश्वनाथ (तेलुगु), प्रो. बृजभूषण ओझा (संस्कृत), विनायक बनर्जी (बंगाली), डॉ. भाग्येश वासुदेव झा (गुजराती), मनोज ‘भावुक’ (भोजपुरी), डॉ. प्रेमराज नूपाने (नेपाली), डॉ. बिकाश ज्योति बोरठाकुर (असमिया), डॉ. शिवानी बी (मलयालम), डॉ. तेनजिन नीमा नेगी (तिब्बती भाषा), डॉ. रामकुमार झा (मैथिली भाषा), सुंदर दास गोहरानी (सिंधी), नवनीत कुमार सहगल, डॉ. नीलाक्षी चौधरी (विधि एवं न्याय), डॉ. सौरव राय (पत्रकारिता), संतोष मधुप (पत्रकारिता) शामिल हैं।

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